राहुल गांधी के आलोचक ऐसा कोई मौक़ा नहीं छोड़ते जिससे कांग्रेस के इस आक्रामक नेता को विवादों के घेरे में लाया जा सके! कुछ-एक बार तो राहुल स्वयं ही आगे होकर अवसर उपलब्ध करा देते हैं (जैसे अपनी ही सरकार के फ़ैसलों से संबंधित काग़ज़ों को सार्वजनिक रूप से फाड़ना) पर अधिकांशतः आलोचक ही मौक़ों को अपनी राजनीतिक निष्ठाओं के हिसाब से तलाश और तराश लेते हैं।
राहुल को लेकर ताज़ा विवाद अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा की हाल में प्रकाशित एक किताब को लेकर पैदा हुआ है। अंग्रेज़ी में लिखी गई 979 पृष्ठों की किताब ‘A Promised Land’ का हिंदी (और गुजराती!) में अनुवाद होकर प्रकाशित होना बाक़ी है।
किताब में राहुल गांधी को लेकर कुल जमा छह पंक्तियाँ हैं। ऐसा लगता है कि देश भर में संगठित रूप से फैले राहुल के आलोचकों की ‘जमात’ ने लगभग हज़ार पन्नों की अंग्रेज़ी किताब को पूरा पढ़ भी लिया और अपने मतलब के अर्थ भी निकाल लिए जो इस समय चर्चा में हैं।
निक्सन-किसिंजर की टिप्पणियां
ओबामा की किताब को लेकर उठे विवाद के कारण ज़रूरी हो गया है कि अमेरिकी राष्ट्रपतियों द्वारा समय-समय पर भारतीय नेताओं के बारे में की जाने वाली टिप्पणियों से इस संवाद की शुरुआत की जाए। कोई पचास साल पहले जब इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थीं और अटल बिहारी जैसे महान नेता विपक्ष में थे, अमेरिका में डोनल्ड ट्रम्प की ही रिपब्लिकन पार्टी के नेता रिचर्ड निक्सन राष्ट्रपति और हेनरी किसिंजर उनके विदेश मंत्री और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार थे। दोनों ही इंदिरा गांधी से भरपूर नफ़रत करते थे।
इंदिरा गांधी नवम्बर, 1971 में अमेरिका यात्रा पर थीं और उस दौरान उन्हें और भारतीय महिलाओं को लेकर जो अश्लील टिप्पणियाँ निक्सन और किसिंजर ने अपनी आपसी बातचीत के दौरान कीं थीं, वे अब उजागर हो रही हैं।
इंदिरा गांधी को लक्ष्य बनाकर दोनों के बीच की बातचीत के कुछ क्रूर अनुवाद इस प्रकार से उपलब्ध हैं- ‘हिंदुस्तानी औरतें दुनिया में सबसे ज़्यादा बदसूरत होती हैं’, ‘हिंदुस्तानियों को देखकर घृणा होती है’, ‘हमने उस बूढ़ी चुड़ैल के ऊपर थूक ही दिया’, आदि, और भी कई शर्मनाक टिप्पणियाँ! यह कड़वी सच्चाई इतिहास में अपनी जगह क़ायम है कि मुलाक़ात से पहले निक्सन ने इंदिरा गांधी को कितनी देर इंतज़ार करवाया था।
सवाल यह है कि कुख्यात ‘वॉटर गेट’ कांड के खुलासे के पश्चात अपमानजनक तरीक़े से पद छोड़ने के बाद अगर निक्सन भी कोई किताब लिखकर मशहूर होना चाहते या उनकी किसिंजर के साथ की गुप्त बातचीत ही तब सार्वजनिक हो जाती तो अटल जी और तब के अन्य विपक्षी नेताओं की क्या प्रतिक्रिया होती? क्या वे भी इंदिरा जी का आज की तरह ही मज़ाक़ उड़ाते?
हुआ केवल यह है कि पिछले तमाम सालों में अमेरिका की रिपब्लिकन पार्टी तो नहीं बदली पर अटल जी जैसे बड़े नेताओं की पार्टियों की राजनीति और उनके प्रतिनिधि ज़रूर बदल गए हैं।
इसे राजनीति के गिरते स्तर और उसकी अगुआई करने वाले नेताओं की देन ही मानना चाहिए कि राहुल गांधी को लेकर अपनी किताब में ओबामा ने जिस आशय की कोई टिप्पणी नहीं की, उसे लेकर कांग्रेस के नेता की भद्द पीटी जा रही है।
देश को प्रतीक्षा करनी चाहिए कि अंततः व्हाइट हाउस छोड़ने के बाद ट्रम्प अगर अपने कार्यकाल को लेकर कोई किताब लिखने का फ़ैसला लेते हैं तो भारत में अपने ‘मित्रों’ और अमेरिका में रहने वाले उन अप्रवासी भारतीयों के बारे में क्या टिप्पणी करते हैं जिनसे टेक्सास प्रांत के ह्यूस्टन में आयोजित ‘हाउडी मोदी’ रैली में ‘अबकी बार ट्रम्प सरकार’ के नारे लगवाए गए थे।
बराक ओबामा ने वास्तव में अपनी किताब में ऐसा कुछ नहीं कहा है कि गांधी परिवार या कांग्रेस संगठन को उस पर शर्मिंदा होना चाहिए।
भारत के लोग अपने दूसरे नेताओं के बारे में भी पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति के ‘मन की बात’ जानना चाहते हैं जिनका ज़िक्र अनजाने में या जान-बूझकर किताब के प्रथम भाग में ओबामा ने नहीं किया होगा।
क्या बताया गया लोगों को
ओबामा ने किताब में उस रात्रि भोज का ज़िक्र किया है जिसमें सोनिया गांधी और डॉ.मनमोहन सिंह के साथ राहुल भी उपस्थित थे। राहुल को लेकर किताब के जिस वर्णन को प्रचारित किया जा रहा है वह इस प्रकार से है- “उनमें एक ऐसे नर्वस और अपरिपक्व छात्र के गुण हैं जिसने अपना होमवर्क किया है और टीचर को इम्प्रेस करने की कोशिश में है लेकिन गहराई से देखें तो उसमें योग्यता की कमी है और किसी विषय पर महारत हासिल करने के जुनून का अभाव है।”
वास्तव में क्या लिखा है
अब किताब में वास्तव जो लिखा गया है उसका अनुवादित अंश इस प्रकार है- ‘‘राहुल गांधी के बारे में यह कि वे स्मार्ट और जोशीले नज़र आए। उनका सुदर्शन दिखना उनकी माँ के साथ मेल खाता था। उन्होंने प्रगतिशील राजनीति के भविष्य पर अपने विचार प्रस्तुत किए। बीच-बीच में वे मुझसे मेरी 2008 की चुनावी मुहिम के बारे में भी जानकारी लेते रहे। वे नर्वस और अनाकार भी नज़र आए जैसे कि एक ऐसा छात्र जिसने अपना होमवर्क कर लिया है और उसे अपने टीचर को बताने को उत्सुक है पर उसके अंदर कहीं या तो विषय पर महारत के कौशल अथवा उसके प्रति अनुराग का अभाव हो।”
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की खूबी यह है कि 2014 में दिल्ली की ज़मीन पर पैर रखते ही उन्होंने अपने गुजरात के सफल प्रयोगों को दोहराते हुए सबसे पहले पार्टी के भीतर के अवरोधों/विरोधों को समाप्त किया। अपने नेतृत्व को लेकर पार्टी के अंदर कोई भी चुनौती नहीं बचने दी।
इसके विपरीत, कांग्रेस में सारी चुनौतियाँ अंदर से ही हैं। राहुल गांधी के साथ तो ट्रेजेडी यह है कि कांग्रेस में उनकी राजनीतिक उम्र की शुरुआत ही 2004 के बाद से हुई पर उन्हें बार-बार यह अहसास दिलाया जाता है कि उनकी उम्र (पचास वर्ष) तक पहुँचने के पहले ओबामा सहित दुनिया की कई हस्तियाँ काफ़ी कुछ हासिल कर चुकीं थीं!
बीजेपी के राष्ट्रवाद पर चिंता
डॉ. मनमोहन सिंह की तारीफ़ों के पुल बांधते हुए ओबामा ने अपनी किताब में लिखा है- “रात्रि भोज के बाद जब वे पत्नी मिशेल के साथ रवाना हो गए तो सोचते रहे कि उनके (मनमोहन सिंह के) बाद क्या होने वाला है! क्या बीजेपी द्वारा पोषित राष्ट्रवाद के ऊपर कांग्रेस पार्टी के प्रभुत्व को क़ायम रखते हुए सोनिया गांधी द्वारा तय की गई नियति के अनुसार कमान राहुल के हाथों में सौंप दी जाएगी?”
उनकी किताब और कांग्रेस में गांधी परिवार, राहुल गांधी और पार्टी के नेतृत्व को लेकर इस समय जो घमासान चल रहा है उसकी कुछ जानकारी तो ओबामा को भी अवश्य ही होगी!
आश्चर्य नहीं होना चाहिए अगर राहुल का मज़ाक़ उड़ाने वालों में कांग्रेस के वे अंदरूनी लोग भी शामिल हों जिन्होंने उनके (राहुल के) बाहरी आलोचकों की तरह ही किताब में लिखी गईं कुछ पंक्तियों और बीजेपी के राष्ट्रवाद पर ओबामा की चिंता को ईमानदारी से नहीं पढ़ा होगा।
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