मुसलिम नेता असदुद्दीन ओवैसी देश में लगातार संगठित और मज़बूत होते हिंदू राष्ट्रवाद के समानांतर अल्पसंख्यक स्वाभिमान और सुरक्षा का तेज़ी से ध्रुवीकरण कर रहे हैं। यह काम वे अत्यंत चतुराई के साथ संवैधानिक सीमाओं के भीतर कर रहे हैं। मुमकिन है कि उन्हें कांग्रेस सहित अन्य राजनीतिक दलों के उन अल्पसंख्यक नेताओं का भी मौन समर्थन प्राप्त हो जिन्हें हिंदू राष्ट्रवाद की लहर के चलते इस समय हाशिये पर डाला जा रहा है।
बीजेपी और ओवैसी: दोनों को है एक-दूसरे की ज़रूरत?
- विचार
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- 23 Nov, 2020

अतः अब काफ़ी कुछ साफ़ हो गया है कि ओवैसी का एजेंडा बीजेपी के ख़िलाफ़ मुसलिमों द्वारा उस विपक्ष को समर्थन देने का भी नहीं हो सकता जो अल्पसंख्यक मतों को बैसाखी बनाकर अंततः बहुसंख्यक जमात की राजनीति ही करना चाहता है। कांग्रेस के कमज़ोर पड़ जाने का बुनियादी कारण भी यही है।
बिहार के चुनावों में जो कुछ प्रकट हुआ है उसके अनुसार, ओवैसी का विरोध अब न सिर्फ़ बीजेपी के हिंदुत्व तक ही सीमित है बल्कि वे तथाकथित धर्म निरपेक्ष राजनीति को भी अल्पसंख्यक हितों के लिए ख़तरा मानते हैं। बिहार चुनाव में बीजेपी के ख़िलाफ़ विपक्षी गठबंधन का समर्थन करने के सवाल पर वे इस तरह के विचार व्यक्त भी कर चुके हैं।