इसमें संदेह नहीं कि नरेंद्र कोहली बहुत शालीन व्यक्ति थे- लेखक के तौर पर मिली अपनी प्रसिद्धि से बहुत अभिभूत भी‌ नज़र नहीं आते थे। बेशक, अंग्रेज़ी में होते तो शायद अमिष त्रिपाठी या चेतन भगत जैसी शोहरत उनके हिस्से भी होती। निस्संदेह वे इन दोनों से कहीं गंभीर लेखक थे, जो शायद हिंदी के साहचर्य ने उन्हें बनाया।