प्रेम कितना जटिल और जानलेवा हो सकता है/होता है, यह अगर आपके जीवन में घटा है तो भी और नहीं घटा है तो भी ; दिलीप कुमार की अदाकारी उस अनुभव को जितनी सघनता से दिखाती है, शायद ही हिंदी सिनेमा में कोई दूसरा अभिनेता कर पाया हो। कुंदन लाल सहगल उनसे पहले देवदास बन चुके थे, शाहरुख़ ख़ान ने उनके बरसों बाद देवदास का किरदार निभाया लेकिन शरत चंद्र के देवदास का अक्स दिलीप कुमार के चेहरे पर जितना प्रामाणिक लगा उतना कहीं और नहीं।
अदालत में दिलीप कुमार ने कहा था- मुझे मधुबाला से मुहब्बत है!
- श्रद्धांजलि
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- 7 Jul, 2021

कहने में रटी-रटाई सी बात लगती है लेकिन उनका जाना सचमुच एक युग का अंत है। मृत्यु दुखद है। शतायु होते तो अच्छा होता लेकिन उम्र के किसी भी आँकड़े से ऊपर, अपनी अदाकारी के बूते पर दिलीप कुमार हिंदी सिनेमा के इतिहास में ही नहीं, दुनिया के सिनेमा में अमर हो चुके हैं।
दिलीप कुमार शायद इकलौते अभिनेता हैं जिन्होंने एक्टिंग की क्राफ्ट को एक मिस्टिकल टच देकर उसका रुतबा बढ़ाया है। प्रेम में नाकामी, जीवन की त्रासदी और मृत्यु को इतना आकर्षक बना देना कि लोग किसी नाकाम इन्सान के किरदार से बेपनाह मुहब्बत करने लग जाएँ, यह सिर्फ़ और सिर्फ़ दिलीप कुमार ने बहुत प्रामाणिक ढंग से किया और ऐसा लगातार करते हुए अदाकारी को एक ऐसी तिलिस्मी ऊँचाई दे दी जहाँ पहुँचना किसी भी अभिनेता का सपना तो हो सकता है लेकिन जहाँ पहुँच पाना सबके बस की बात नहीं।