2004 में नागपुर में दलित महिलाओं के एक समूह ने बलात्कार और यौन शोषण के एक अभियुक्त अक्कू यादव की भरी अदालत में हत्या कर दी थी। फ़िल्म ‘200: हल्ला हो’ उस सच्ची घटना से प्रेरित है। निर्देशक सार्थक दासगुप्ता ने 17 साल पहले हुई उस दिल दहला देने वाली घटना को वर्तमान संदर्भों में प्रासंगिक बनाते हुए अपनी फ़िल्म के ज़रिये यह बताने की कोशिश की है कि दलित-वंचित समूह की महिलाएँ हमारे सामाजिक ढाँचे में किस तरह सबसे निचली पायदान पर हैं।

फिल्म मेलोड्रामा से बच सकती तो हिंदी सिनेमा में दलित विमर्श का एक गंभीर प्रस्थान बिंदु बन सकती थी। फिर भी, यह विषय उठाने के लिए निर्देशक बधाई के हक़दार हैं। देखने लायक फ़िल्म है और जी5 पर देखी जा सकती है।
इन महिलाओं को हर मोर्चे पर शोषण का शिकार होना पड़ता है और सारी संवैधानिक व्यवस्थाओं के बावजूद हमारी समूची न्याय प्रणाली किस तरह दलितों-वंचितों के साथ अन्याय कर रही है।
ऐसे में दलित-वंचित वर्ग का गुस्सा हिंसा के रूप में फूट पड़ता है। यह क़ानूनी तौर पर ग़लत है लेकिन क्या हमारी मौजूदा व्यवस्था कोई और रास्ता छोड़ रही है? फ़िल्म यह सवाल बड़े झन्नाटेदार तरीक़े से उठाती है।