उस लरजती हुई आवाज़ में बेहद सहज, सघन, शालीन आत्मीयता की छवियाँ भी उभरती थीं और प्रतिरोध के दृढ़ स्वर भी बिल्कुल स्पष्ट अभिव्यक्त होते थे, बिना किसी मुरव्वत या हिचकिचाहट के। मंगलेश डबराल हमारे समय के बहुत महत्वपूर्ण प्रतिष्ठित कवि, लेखक, पत्रकार तो थे ही, मौजूदा निज़ाम के ख़िलाफ़ लगातार बुलंद रहने वाली एक प्रमुख आवाज़ थे। उनके कविता संग्रहों ‘पहाड़ पर लालटेन’, ‘घर का रास्ता’, ‘हम जो देखते हैं’, ‘आवाज़ भी एक जगह है’ और ‘नए युग में शत्रु’ में अपने आसपास की निजी आत्मीय छवियों के अलावा एक वृहत्तर समाज और सत्ता के विविध रूपों की शिनाख्त भी मिलती है।
मंगलेश: आत्मीयता और प्रतिरोध के स्वरों का संगतकार
- श्रद्धांजलि
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- 11 Dec, 2020

मंगलेश जी कोई अभिजात्य शब्दशिल्पी नहीं थे, जन आंदोलनों के पक्ष में और सत्ता के ख़िलाफ़ सड़क पर उतर कर प्रतिरोध करने वालों में से थे। एक ऐसे समय में जब सत्ता की चरण वंदना की होड़ लगी हुई हो, मंगलेश डबराल अपनी दो टूक टिप्पणियों की वजह से हमेशा निशाने पर रहे। असहिष्णुता के मुद्दे पर साहित्य अकादेमी सम्मान लौटने के लिए उन पर 'अवार्ड वापसी गैंग' के नाम पर बेहद घटिया हमले किये गए।