‘झूठों ने झूठों से कहा है सच बोलो

इस हालत के लिए मुख्य रूप से चैनलों के मालिकान और संपादकगण कसूरवार हैं। मालिकों का ज़्यादा फोकस हमेशा रेवेन्यू पर रहा, कंटेंट पर नहीं, वर्ना किसी भी कीमत पर टीआरपी हासिल करने का दबाव नहीं होता और समूचे इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का यह हाल नहीं होता। पत्रकारिता की साख और सम्मान को गिराने में टीवी न्यूज़ मीडिया ने प्रिंट के मुक़ाबले बहुत तेज़ी से शर्मनाक योगदान दिया है और इसकी क़ीमत पूरी इंडस्ट्री को चुकानी पड़ेगी।
सरकारी एलान हुआ है सच बोलो
घर के अंदर झूठों की एक मंडी है
दरवाज़े पर लिखा हुआ है सच बोलो’