वह एक बाग़ी शहजादा था जिसने अपनी मोहब्बत के लिए मुल्क की सल्तनत छोड़ दी थी और हिंदुस्तान के सबसे ताक़तवर बादशाह से टकराने की हिम्मत दिखाई थी। अगर 'मुग़ल-ए-आज़म' में अकबर की भूमिका अदा कर रहे पृथ्वीराज कपूर की जलती हुई आँखों के मुक़ाबले सलीम बने दिलीप कुमार की कौंधती हुई निगाहें नहीं होतीं तो शायद फ़िल्म का जादू कुछ बुझ जाता- इन्हीं निगाहों ने अनारकली यानी मधुबाला की सहमी हुई आँखों को वह राहत, तसल्ली और ताक़त दी जिसके बूते उसने कहा था- ‘यह कनीज हिंदुस्तान के बादशाह को अपने क़त्ल का जुर्म माफ़ करती है।’