बड़े लोगों की कहानियों में अक्सर दिल की चोट का बड़ा अहम किरदार होता है। ज़िंदगी में कभी कहीं कोई ऐसी बात हो जाती है जो दिल को ऐसी लग जाती है कि ज़िंदगी का रास्ता ही बदल जाता है। अनंत तक पहुँचते आध्यात्मिक सुरों के सर्जक और साधक पंडित जसराज की भावविभोर कर देने वाली गायकी की कहानी भी एक चुभते हुए क़िस्से से शुरू हुई थी।
स्मृति शेष: पंडित जसराज- अनंत में गूंजता आध्यात्मिक आलाप
- श्रद्धांजलि
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- 18 Aug, 2020

पंडित जसराज ने आध्यात्मिक गायन के ज़रिए शास्त्रीय संगीत की दुनिया में अपनी एक अलग पहचान बनाई। संगीत समारोहों में पंडित जसराज बेहद तल्लीनता के साथ अपने सुरों में डूब कर गायन प्रस्तुत करते थे। उन्हें देखकर ऐसा लगता था जैसे वह अपनी सुधबुध खो बैठे हों। वह दृश्य अपने समूचेपन में एक अद्भुत आलोक का सृजन करता था।
हरियाणा के हिसार ज़िले के एक छोटे से गाँव पीली मंडोरी में 28 जनवरी, 1930 को जन्मे पंडित जसराज को तीन साल की उम्र में उनके शास्त्रीय संगीत गायक पिता पंडित मोतीराम ने सुर सिखाने शुरू ही किये थे कि नियति ने अपना क्रूर खेल दिखा दिया। महज़ चार साल की उम्र में पंडित जसराज के सिर से पिता का साया उठ गया। पिता के गुज़र जाने के बाद जसराज के संगीत गुरु बने उनके उनके भाई पंडित प्रताप नारायण और पंडित मणिराम। पंडित जसराज अपने भाइयों की शागिर्दी में तबले पर हाथ आज़माने लगे।