लगेगी आग तो आएँगे घर कई ज़द में
राहत इंदौरी: लहू से मेरी पेशानी पे हिन्दुस्तान लिख देना!
- श्रद्धांजलि
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- 15 Aug, 2020

बहुत से लोगों को शायद यह मालूम न हो कि हाल के दिनों में अपनी आग उगलती शायरी के लिए बेहद लोकप्रिय होने वाले राहत इंदौरी ने फ़िल्मों में ‘नींद चुराई मेरी किसने ओ सनम, तूने’ जैसे रोमांटिक गाने लिखे हैं। उन्हें दर्शकों, श्रोताओं से रिश्ता जोड़ने का तरीक़ा आता था। मुशायरों में भी राहत इंदौरी तीखी सियासी शायरी के साथ-साथ युवाओं से रूमानी बातें भी ख़ूब करते थे।
यहाँ पे सिर्फ़ हमारा मकान थोड़ी है
जो आज साहिबे मसनद हैं कल नहीं होंगे
किराएदार हैं ज़ाती मकान थोड़ी है
सभी का ख़ून है शामिल यहाँ की मिट्टी में
किसी के बाप का हिन्दोस्तान थोड़ी है
राहत इंदौरी के ये शेर पिछले कुछ बरसों में देश के हालात से नाराज़ आम आदमी का बयान बन गए थे। वो विवादास्पद क़ानून सीएए के ख़िलाफ़ चल रहे आंदोलन का मंच हो, छात्रों का प्रतिरोध हो, धरना हो, प्रदर्शन हो, हर मंच पर ये शेर एक जोशीला माहौल बना देते थे। हर मुशायरे में जहाँ राहत इंदौरी मौजूद रहते थे, लोग ख़ुद उनकी आवाज़ में इन्हें सुनने की फरमाइश करते थे, इसरार करते थे और उनकी बुलंद आवाज़ और बेख़ौफ़, बेबाक अंदाज़ में सुन लेने के बाद तालियों की गड़गड़ाहट देर तक माहौल में गूंजती रहती थी। अब वह बुलंद आवाज़ खामोश हो गयी है। कोरोना की महामारी ने हमसे हमारे समय का एक बहुत तेज़तर्रार, सक्रिय रचनाकार छीन लिया जो अपने शब्दों के ज़रिये सत्ता और व्यवस्था को चुनौती देने की हिम्मत और बाकमाल हुनर रखता था।