यह पत्रकारिता का बहुत बड़ा नुक़सान है। यह लखनऊ का बहुत बड़ा नुक़सान है। उन लोगों के लिए बहुत बड़ा सदमा है जिन्हें कमाल ने आवाज़ दी, दिखाया और दुनिया के सामने उजागर किया। उन दर्शकों के लिए एक बहुत बड़ी जगह खाली हो गई है जो कमाल की नज़रों से न जाने क्या-क्या देखते थे, और बिलकुल अलग अंदाज़ में वो सुनते थे जो सिर्फ़ कमाल ही लिख सकते थे, कमाल ही कह सकते थे और कमाल ही सुना सकते थे।