एक ज़माने में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के सबसे विश्वस्त मित्रों में से एक जॉर्ज फर्नाडिस कहा करते थे कि "राजनीति में कामयाबी के लिए धैर्य की ज़रूरत होती है। अगर कल्याण सिंह ने धैर्य दिखाया होता तो वो ही वाजपेयी के बाद बीजेपी के कप्तान होते।" क्या ऐसा हो सकता था, यह अब बहस का विषय भले ही हो,लेकिन एक ज़माने में बीजेपी के 'हिन्दू ह्रदय सम्राट' बन गए और बाबरी मसजिद ढहाने के 'हीरो' मुख्यमंत्री के लिए धैर्य रखना तब आसान नहीं था जब उन्हें लगने लगा कि वाजपेयी राष्ट्रीय राजनीति की ज़रूरत के लिए मायावती को यूपी का सीएम बनाए रखना चाहते हैं।
यूपी का समीकरण
बात 1997 की है जब बीजेपी और बीएसपी के बीच यूपी में 6-6 महीने सरकार चलाने का फॉर्मूला बना।
वाजपेयी और कांशीराम के बीच हुए इस समझौते के बाद मायावती पहले 6 महीने के लिए मुख्यमंत्री बनी थी, लेकिन 6 महीने बाद जब कल्याण सिंह का नंबर आया तो एक महीने बाद ही बीएसपी ने समर्थन वापस ले लिया।
इस कहानी के बाद क्या हुआ सब जानते हैं कि किस तरह कल्याण सिंह ने कांग्रेस और बीएसपी को तोड़कर अपनी सरकार बचा ली।
क्या कहा था वाजपेयी के बारे में?
कल्याण सिंह के बजाय जगदम्बिका पाल को मुख्यमंत्री बनाने के फ़ैसले के ख़िलाफ़ वाजपेयी आमरण अनशन पर बैठ गए थे। बीजेपी अदालत में चली गई। नतीजतन कल्याण सिंह की बहाली हो गई। फिर 1998 में जब वाजपेयी 13 महीनों की सरकार बनी और विश्वास मत में हारने के बाद गिर गई।
तब लखनऊ में एक प्रेस कान्फ्रेंस में कल्याण सिंह से किसी ने सवाल पूछा- 'क्या आपको विश्वास है कि वाजपेयी दोबारा पीएम बन पाएंगें?' तो कल्याण सिंह ने कहा कि "मैं भी चाहता हूं कि वे पीएम बनें, लेकिन पीएम बनने से पहले एम पी बनना पड़ता है।"
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हटाए गए कल्याण सिंह
1998 के चुनाव में बीजेपी को यूपी में 58 सीटें मिली थी लेकिन 1999 में उससे आधी 29 सीटें रह गईं। हालांकि वाजपेयी ना केवल लखनऊ से जीते बल्कि एनडीए में सहयोगी दलों की मदद से फिर प्रधानमंत्री भी बन गए।
फिर कल्याण सिंह को हटाने की मांग होने लगी और 12 नवम्बर 1999 को कल्याण सिंह का इस्तीफ़ा हो गया और फाइलों में पड़े नेता रामप्रकाश गुप्त को सीएम बनाया गया।
इस पर कल्याण सिंह ने वाजपेयी को ब्राह्मणवादी मानसिकता वाला नेता बताया। पार्टी ने पहले सस्पेंड किया और फिर 9 दिसम्बर 1999 को उन्हें 6 साल के लिए पार्टी से निकाल दिया।
कल्याण-मुलायम
कल्याण सिंह ने नई पार्टी बना ली, लेकिन साल 2002 के चुनाव में उन्हें सिर्फ़ चार सीटें मिली। अगस्त 2003 में यूपी में मुलायम सिंह यादव की सरकार में कल्याण सिंह की पार्टी शामिल हो गई।
कारसेवा पर गोली चलाने वाले और कारसेवकों के लिए कुर्सी गंवाने वाले दो नेताओं का मिलन लोगों को हजम नहीं हुआ। साल 2004 के चुनाव में कल्याण सिंह के नेतृत्व में बीजेपी ने चुनाव लड़ा, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ, पार्टी तीसरे नंबर रही। दोनों एक दूसरे से अलग हो गए।
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साल 2009 का लोकसभा चुनाव कल्याण सिंह ने एसपी के समर्थन से लड़ा और लोकसभा पहुंचे, लेकिन मुलायम सिंह को नुक़सान हुआ, दोनों नेताओं के बीच दोस्ती ख़त्म हो गई। कल्याण सिंह फिर से अपनी पार्टी को मजबूत करने लगे ,साल 2012 में यूपी में उन्होंनें बीजेपी के ख़िलाफ़ चुनाव लड़ा ,लेकिन उनकी पार्टी हार गई और बीजेपी भी।
मंडल-कमंडल
देवीलाल को रास्ते से हटाने के लिए वी पी सिंह ने 1990 में मंडल-कमंडल की राजनीति शुरू की थी, तब ही बीजेपी ने राम मंदिर निर्माण आंदोलन को राजनीतिक तौर पर हाथ में लिया।
देश में राजनीति दो हिस्सों में बंट गई, एक तरफ मंडल की राजनीति करने वाले और दूसरे मंदिर की राजनीति के साथ, लेकिन कल्याण सिंह देश के शायद अकेले राजनेता होगें जिन्होंने दोनों राजनीति एक साथ की।
बीजेपी में सोशल इंजीनियरिंग को आगे बढ़ाने वाले नेता का नाम कल्याण सिंह है। ब्राह्मण-बनियों की पार्टी माने जाने वाली बीजेपी में पिछड़ों और दलितों के पहले नेता रहे कल्याण सिंह।
बाबरी विध्वंस
कल्याण सिंह आठ बार विधायक भी रहे, दो बार यूपी के मुख्यमंत्री, एक बार लोकसभा सांसद और फिर राजस्थान के राजभवन में गवर्नर भी।
1992 में बीजेपी को यूपी में 425 में से 221 सीटें मिली थी, शपथ लेने के बाद पूरे मंत्रिमंडल के साथ पहुंचे अयोध्या और शपथ ली- 'कसम राम की खाते हैं, मंदिर यहीं बनाएंगें', अगले साल कारसेवकों ने बाबरी मस्जिद गिरा दी और जब वहां ज़मीन समतल हो गई तो कल्याण सिंह ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा दे दिया, जब तक केन्द्र सरकार हरकत में आती काम हो चुका था।
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दिल्ली में दिन भर गोपनीय तरीके से बैठे रहे प्रधानमंत्री नरसिंहराव ने शाम को सरकार को बर्खास्त कर दिया।
फिर 1993 में जब चुनाव हुए तो बीजेपी की सीटें तो घट गईं, लेकिन वोट बढ़ गए। बीजेपी की सरकार नहीं बन पाई। साल 1995 में बीजेपी और बीएसपी ने मिलकर सरकार तो बनाई, लेकिन मुख्यमंत्री नहीं बन पाए। बाद में बीजेपी ने हाथ खींच कर सरकार गिरा दी।
राष्ट्रपति शासन
एक साल तक राष्ट्रपति शासन रहा। 17 अक्टूबर 1996 को जब 13 वीं विधानसभा बनी तो लेकिन किसी को बहुमत नहीं मिला, बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनी लेकिन सीटें 173 मिली जिससे सरकार नहीं बन सकती थी।
समाजवादी पार्टी को 108, बीएसपी को 66 और कांग्रेस को 33 सीटें मिली । तब के राज्यपाल रोमेश भंडारी ने राज्य में राष्ट्रपति शासन 6 महीने और बढ़ाने की सिफ़ारिश कर दी। एक साल से पहले ही राष्ट्रपति शासन चल रहा था।
फिर सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फ़ैसले पर रोक लगाते हुए केन्द्र के राष्ट्रपति शासन को बढ़ाने के निर्णय को मंज़ूरी दे दी। लेकिन 1997 में हिन्दुस्तान की राजनीति में नया प्रयोग हुआ अगड़ों और पिछड़ों की पार्टी ने 6-6 महीने सीएम रहने के लिए हाथ मिला लिए।
साल 2014 में जब बीजेपी में राष्ट्रीय स्तर पर नरेन्द्र मोदी आए तो कल्याण सिंह की एक बार फिर बीजेपी में वापसी हो गई। इस बार उन्होंने कसम खाई कि 'जिदगी की आखिरी सांस तक अब बीजेपी का रहूंगा।'
राज्यपाल
कल्याण सिंह को राज्यपाल बना कर राजस्थान भेज दिया गया। जयपुर राजभवन में भी उनका मन लखनऊ की राजनीति में लगा रहा। राजभवन के बाद वे फिर से यूपी की राजनीति में सक्रिय हो गए।
लेकिन बाबरी मस्जिद को ढहाते वक्त जो नेता यूपी का मुख्यमंत्री था। कारसेवकों पर गोली नहीं चलाने का ना केवल आदेश दिया बल्कि उसकी ज़िम्मेदारी भी ली और सुप्रीम कोर्ट की सज़ा का सामना भी एक दिन तिहाड़ जेल में रह कर किया।
लेकिन जब अगस्त, 2020 में राम मंदिर निर्माण के लिए शिलापूजन कर रहे थे तब किसी ने कल्याण सिंह को याद नहीं किया, लेकिन कल्याण सिंह को बीजेपी कार्यकर्ताओं के दिल से निकालना किसी के बस की बात नहीं।
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