साप्ताहिक टैबलॉयड 'ब्लिट्ज' को बंद हुए बरसों हो गए हैं और इसके संस्थापक-संपादक हरफनमौला पत्रकार रूसी करंजिया (रुस्तम खुर्शीदजी करंजिया) उर्फ आर.के. करंजिया भी 1 फरवरी, 2008 को इस दुनिया को अलविदा कह गए थे। दोनों की याद लाखों लोगों के जेहन में अभी भी ताजा है। 'ब्लिट्ज' और करंजिया एक-दूसरे के पूरक थे और दोनों के पाठक-प्रशंसक लाखों की तादाद में थे। भारत में तथ्यात्मक खोजी पत्रकारिता की बुनियाद रखने और उसे मान्यता दिलाने का श्रेय इन दोनों को जाता है। आर.के. करंजिया अपने आप में भारतीय पत्रकारिता का एक स्कूल थे और उनके जिक्र के बग़ैर पत्रकारिता का इतिहास सदा अधूरा रहेगा।
‘नेहरूवादी पत्रकार’ आर.के. करंजिया के जिक्र के बग़ैर अधूरा रहेगा पत्रकारिता का इतिहास
- श्रद्धांजलि
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- 2 Feb, 2020

भारत में तथ्यात्मक खोजी पत्रकारिता की बुनियाद रखने और उसे मान्यता दिलाने का श्रेय 'ब्लिट्ज' और करंजिया, दोनों को जाता है।
ताउम्र 'नेहरूवादी पत्रकारिता' की
'कांग्रेसी वामपंथी' रहे इस दिग्गज पत्रकार ने ताउम्र 'नेहरूवादी पत्रकारिता' की और एक से एक कीर्तिमान स्थापित किए, जिनकी दूसरी कोई मिसाल नहीं है। बेशक ढलती उम्र में, जब देह और दिलो-दिमाग लगभग शिथिल हो गया था तब उन्होंने दक्षिणपंथी ख़ेमे में लड़खड़ाते हुए पांव रखे लेकिन वहां ज्यादा दिन नहीं टिक पाए। जो शख्स नेहरू का शाश्वत मुरीद रहा हो और जिसकी कलम फासीवाद पर तीखे प्रहार करती हो वह ज्यादा दिन बाहोश, विपरीत रास्तों पर चल भी कैसे सकता था? जवाहरलाल नेहरू की छाप उनकी आख़िरी सांस तक पर थी!