94 साल की उम्र में मृत्यु शोक का विषय नहीं होती। लेकिन पेरिस में मिलान कुंदेरा के निधन की सूचना आते ही भारत सहित दुनिया के साहित्य प्रेमियों में जिस तरह का शोक दिखा, उससे समझ में आता है कि वे अपने पाठकों के लिए, साहित्य के संसार के लिए किस कदर जीवित और युवा लेखक थे। वे समकालीन संसार के सर्वाधिक लोकप्रिय शास्त्रीय लेखकों में रहे। मूलतः वाम वैचारिकी से संचालित विचारधारात्मक युद्ध में हमेशा विपरीत पाले में गिने गए। हालांकि वे कहते रहे कि वे किसी राजनीतिक और वैचारिक लड़ाई के योद्धा नहीं हैं, वे बस लेखक हैं और उन्हें इसी तरह देखा जाना चाहिए।
जब मिलान कुंदेरा बोले थे- कवि ही नहीं, कहानीकार भी सत्ता पक्ष में लिखते दिखे
- श्रद्धांजलि
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- 13 Jul, 2023

'द अनबियरेबल लाइटनेस ऑफ बीइंग' के लेखक और प्रसिद्ध साहित्यकार मिलान कुंदेरा का निधन हो गया। जानिए, दुनिया भर में किस रूप में उन्हें याद किया जा रहा है।
लेकिन क्या किसी लेखक को बस लेखक की तरह देखा जा सकता है? शायद यह एक विडंबनामूलक चाह थी जिसका वास्ता मिलान कुंदेरा के इस एहसास से भी था कि वे दुनिया में गलत पाले में खड़े लेखक की तरह देखे जाते हैं। दरअसल, विडंबनाएं उम्र भर मिलान कुंदेरा का पीछा करती रहीं। वे चेकोस्लोवाकिया में पैदा हुए, फ्रांस में रहने लगे, खुद को फ्रांसीसी नागरिक कहलाना पसंद करते रहे और कई बार उनकी किताबें चेक से पहले फ्रेंच में ही छपती रहीं।