94 साल की उम्र में मृत्यु शोक का विषय नहीं होती। लेकिन पेरिस में मिलान कुंदेरा के निधन की सूचना आते ही भारत सहित दुनिया के साहित्य प्रेमियों में जिस तरह का शोक दिखा, उससे समझ में आता है कि वे अपने पाठकों के लिए, साहित्य के संसार के लिए किस कदर जीवित और युवा लेखक थे। वे समकालीन संसार के सर्वाधिक लोकप्रिय शास्त्रीय लेखकों में रहे। मूलतः वाम वैचारिकी से संचालित विचारधारात्मक युद्ध में हमेशा विपरीत पाले में गिने गए। हालांकि वे कहते रहे कि वे किसी राजनीतिक और वैचारिक लड़ाई के योद्धा नहीं हैं, वे बस लेखक हैं और उन्हें इसी तरह देखा जाना चाहिए।