दिल्ली के नेशनल गैलरी ऑफ़ मॉडर्न आर्ट में इन दिनों एक कला-प्रदर्शनी चल रही है जिसमें देश के 13 जाने-माने कलाकारों की कलाकृतियां शामिल हैं। यह प्रदर्शनी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यक्रम ‘मन की बात’ से प्रेरित कृतियों की है। ‘मन की बात’ की सौ किस्तें पूरी होने के उपलक्ष्य में जो विराट कार्यक्रम देश भर में आयोजित किया गया, यह प्रदर्शनी उसी का हिस्सा है। प्रधानमंत्री भी यह कला-प्रदर्शनी देखने पहुंचे। चूंकि प्रधानमंत्री गए तो उनके पीछे-पीछे मीडिया भी पहुंचा, वरना मीडिया का जो मौजूदा चरित्र है, उसमें कलाओं के प्रति संवेदनशीलता या सरोकार बहुत दूर की चीज़ है।
राजा की खिड़की पर खिला कला का फूल
- विचार
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- 23 May, 2023

हमारे समय के कलाकार क्या कर रहे हैं? क्या वे झूठी प्रेरणाओं पर अपने चित्र बना रहे हैं? ‘मन की बात’ की सौ क़िस्तें पूरी होने पर चित्र बनाना क्या उनकी अंत:प्रेरणा का नतीजा है?
लेकिन यह सरोकार क्यों रहे? कला की दुनिया में ऐसा क्या हो रहा है जिसकी वजह से उसे देखा जाए? कला करती क्या है? क्या वह किन्हीं राजनीतिक या सामाजिक मुद्दों की प्रचार सामग्री भर होती है? क्या उसका काम लोगों के बीच कोई संदेश पहुंचाना भर होता है? निस्संदेह कलाओं के बारे में यह आम राय है कि उनका काम लोगों को सुशिक्षित करना और संस्कार देना है। निश्चय ही इस राय में ग़लत कुछ नहीं है। लेकिन समझना यह ज़रूरी होता है कि कलाएं यह काम सपाट ढंग से करें तो कला नहीं रह जातीं। उनके संप्रेषण का एक सूक्ष्म तरीक़ा होता है। किसी कलाकार से इसीलिए यह अपेक्षा की जाती है कि वह जो कुछ रचे, अपने भीतर की प्रेरणा से रचे, उसका एक स्वायत्त संसार हो जिसमें वह दिए हुए मूल्यों या दृश्यों को अपने ढंग से बदल या पुनर्परिभाषित कर सके। इसी क्रम में यह भी उसका दायित्व बनता जाता है कि वह अपने समाज की राजनीतिक-सामाजिक विसंगतियों, विरूपताओं को पहचाने और अपनी कला में उसे व्यक्त करने का रास्ता खोजे। एक कलाकार का आत्मसंघर्ष इस तरह सामाजिक संघर्ष का भी हिस्सा होता है।