नमस्ते जी!
आप फ़ोन करें या उनका फ़ोन आए। दोनों ही स्थितियों में उनके पहले शब्द यही होते थे। उसके बाद फिर तबीयत, परिवार और बच्चों के बारे में ज़रूर पूछते थे। दफ़्तर के बारे में पता कर लेते थे। 'सब ठीक है' सुनने के बाद वह काम की बात शुरू करते थे या पत्रकारों की जिज्ञासाओं के जवाब देते थे।
कैसे हो गए आर. आर.!
इसके विपरीत उनके समकालीन पीआरओ गोपाल पांडे अंग्रेजी प्रकाशनों के अंग्रेजीदां पत्रकारों को प्राथमिकता देते थे। उनके पास अमिताभ बच्चन समेत कुछ अग्रणी बैनर की फ़िल्में रहती थीं, जबकि आर. आर. पाठक के पास बड़ी के साथ मझोली और छोटी फ़िल्में भी हुआ करती थीं। पाठक जी भाषायी पत्रकारों के बीच बेहद सम्मानित और लोकप्रिय थे। शायद इसी कारण उन्हें नए और लॉन्चिंग स्टार की फ़िल्में अधिक मिलती थीं। और हाँ, उनका पूरा नाम राजाराम पाठक था। कहते हैं नंदू तोलानी ने उनका नाम ‘आर.आर.’ मशहूर किया था।अमिताभ बच्चन के आक्रामक प्रचार और ‘वन मैन इंडस्ट्री’ के दौर में उन्होंने धर्मेंद्र सरीखे कलाकारों को भी चर्चा के केंद्र में रखा। उन्होंने आमिर ख़ान, अजय देवगन, अक्षय खन्ना और रितिक रोशन की पहली फिल्मों का धुआँधार प्रचार किया।
हार्ड कॉपी से डिजिटल एज तक
भाषायी पत्र-पत्रिकाओं और पत्रकारों से उनके संपर्क और प्रभाव के सभी स्टार क़ायल थे। यही कारण है कि हार्ड कॉपी से डिजिटल एज में आने के बाद भी रितिक रोशन और उनके पिता राकेश रोशन ने उन्हें अपने साथ रखा। वह अपने निर्माताओं के साथ लगे रहे।पाठक जी उन आरंभिक पीआरओ में से एक थे जिन्होंने स्टारों के इंटरव्यू और पत्रकारों के मेलजोल पर अधिक ज़ोर दिया।
पत्रिकाओं का ज़माना
प्रिंट मीडिया के उस दौर में फ़िल्मी पत्रिकाओं और अख़बारों की भरमार थी। अख़बारों ने रंगीन होना शुरू किया था और अपने पृष्ठ को आकर्षक बनाने के लिए कुछ संकोच भाव से ही सही, फ़िल्मों की रंगीन तसवीरों के लिए जगह बना रहे थे। पत्रिकाओं में फ़िल्म स्टारों (हीरो-हीरोइन) की तसवीरों के साथ फ़िल्म संबंधी ताज़ा ख़बरें छपा करती थीं।पत्रकारों की फरमाइश
आर. आर. पाठक ने रूपतारा स्टूडियो के दौर में पीआरशिप शुरू किया। रितिक रोशन के नाना जे ओमप्रकाश के दफ़्तर से सटे उनका ऑफिस था। तब के पत्रकार बताते हैं कि जे ओमप्रकाश की इंपोर्टेड कार के आसपास अगर फिएट दिखाई पड़ जाती थी तो वह समझ जाते थे कि आर. आर. पाठक दफ़्तर में मौजूद हैं। वहाँ से वह ट्रेड मैगजीन और कुछ पत्र-पत्रिकाओं के दफ्तर में रूटीन चक्कर लगाते थे। पत्रकारों की फरमाइश और ज़रूरत के अनुसार उनका स्टाफ तसवीर और प्रेस रिलीज़ के साथ संबंधित सामग्री लिए हाज़िर हो जाता था।पत्रकारों में लोकप्रिय
उन दिनों अधिकांश पीआरओ का दायरा मुंबई की अंग्रेजी पत्र-पत्रिकाओं तक सीमित था जबकि पाठक जी दिल्ली के पत्रकारों के बीच भी अच्छे-ख़ासे लोकप्रिय थे। नतीजतन उनकी पहुँच हिंदी पत्र-पत्रिकाओं में ज्यादा थी। दूर-दराज के पत्रकारों से भी वह नियमित संपर्क में रहते थे। इस वजह से मुंबई में सक्रिय और शक्तिशाली निर्माता और पीआरओ उनकी मदद लिया करते थे। वह बगैर वैमनस्य के सभी की मदद करते थे।आर. आर. पाठक ज़रूरतमंद फ्रीलांसर से अपनी सामग्री लिखवा कर या अनुवाद करवा कर प्रकारांतर से उनकी आर्थिक मदद कर दिया करते थे।
मीडिया टाईअप
पुराने पाठकों को याद होगा कि दैनिक जागरण में आगामी फ़िल्मों की झलक चौथाई या आधे पृष्ठ में छपा करती थी। बाद में उसकीं नक़ल सभी हिंदी अख़बारों ने की। उन्होंने दैनिक जागरण से मीडिया टाईअप के मेरे सुझाव का समर्थन किया। उन्होंने मेरे और निर्माता राकेश रोशन के साथ पूरी रणनीति बनाई। किसी भी मीडिया हाउस से फ़िल्म का वह पहला बड़ा मीडिया टाईअप था।कहो ना प्यार है!
मुझे अच्छी तरह याद है कि मुंबई से लखनऊ की फ्लाइट लेते समय राकेश रोशन को आम यात्रियों ने पहचाना और उनके ऑटोग्राफ लिए। रितिक रोशन को अधिक तवज्जो नहीं मिली, लेकिन उन दो दिनों में दैनिक जागरण में ‘कहो ना प्यार है’ से सम्बंधित छपी ख़बरों का ऐसा असर हुआ कि रिलीज़ के बाद कानपुर से लौटते समय कानपुर-लखनऊ हाईवे और फिर लखनऊ एयरपोर्ट पर हमें पुलिस एस्कॉर्ट की ज़रूरत पड़ी।सुरक्षा गार्डों की मदद से ही रितिक रोशन एयरपोर्ट में दाखिल हो पाए और विमान में सवार हुए। मैंने प्रत्यक्ष रूप से ‘रातों-रात स्टार’ बनते रितिक रोशन को देखा था।
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