नमस्ते जी!आप फ़ोन करें या उनका फ़ोन आए। दोनों ही स्थितियों में उनके पहले शब्द यही होते थे। उसके बाद फिर तबीयत, परिवार और बच्चों के बारे में ज़रूर पूछते थे। दफ़्तर के बारे में पता कर लेते थे। 'सब ठीक है' सुनने के बाद वह काम की बात शुरू करते थे या पत्रकारों की जिज्ञासाओं के जवाब देते थे।
हार्ड कॉपी और फोटो प्रिंट के दौर के पाठक जी!
- श्रद्धांजलि
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- 29 Mar, 2025

कानाफूसी और गॉसिप की दुनिया से होने के बावजूद मैंने कभी उनसे किसी के लिए अपशब्द या बुराई नहीं सुनी। वह ज़रूरतमंद पत्रकारों की मदद किया करते थे। आर. आर. पाठक ज़रूरतमंद फ्रीलांसर से अपनी सामग्री लिखवा कर या अनुवाद करवा कर प्रकारांतर से उनकी आर्थिक मदद कर दिया करते थे।..फ़िल्म पब्लिसिस्ट आर. आर. पाठक के बारे में बता रहे हैं मशहूर फ़िल्म समीक्षक अजय ब्रह्मात्मज।