बासु भट्टाचार्य जब हिंदी के मशहूर उपन्यासकार फणीश्वर नाथ रेणु की कृति ‘तीसरी कसम उर्फ़ मारे गए गुलफाम’ पर आधारित फ़िल्म ‘तीसरी कसम’ का निर्देशन कर रहे थे तो उनके साथ सहायक निर्देशक के रूप में जुड़े थे बासु चटर्जी। जब बासु चटर्जी ने फ़िल्म बनाने का फ़ैसला किया तो उन्होंने चुना हिंदी के उपन्यासकार राजेन्द्र यादव की कृति ‘सारा आकाश’ को। यह महज संयोग था या एक प्रयोग, इसका तो पता नहीं लेकिन बासु चटर्जी की इस फ़िल्म को मृणाल सेन की फ़िल्म ‘भुवन शोम’ के साथ समांतर सिनेमा की शुरुआती फ़िल्म माना जाता है।
श्रद्धांजलि: प्रयोगधर्मी फ़िल्मकार बासु चटर्जी की कमी खलेगी
- श्रद्धांजलि
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- 5 Jun, 2020

मशहूर फिल्मकार बासु चटर्जी का गुरुवार को निधन हो गया है। वह 93 वर्ष के थे। बासु चटर्जी के निधन से हिंदी सिनेमा ने एक प्रयोगधर्मी व्यक्तित्व को खो दिया जिसकी जगह की भारपाई जल्दी संभव नहीं।
हिंदी फ़िल्मों की दुनिया में जब राजेश खन्ना का डंका बज रहा था, राजेश खन्ना की फ़िल्मों के रोमांस का जादू जब हिंदी के दर्शकों के सर चढ़कर बोल रहा था, लगभग उसी दौर में हिंदी फ़िल्मों में समांतर सिनेमा का बीज भी बोया जा रहा था। एक तरफ़ राजेश खन्ना का सपनों की दुनिया में ले जानेवाला रोमांस था तो दूसरी तरफ़ आम मध्यमवर्गीय परिवारों का अपने संघर्षों के बीच प्रेम का अहसास दिलानेवाली फ़िल्में। बासु चटर्जी ने अपनी पहली फ़िल्म सारा आकाश में इस तरह के प्रेम का ही चित्रण किया। जहाँ प्रेम तो है पर अपने खुरदरे अहसास के साथ।