पिछले दिनों सरकार ने नई शिक्षा नीति की घोषणा की। नई शिक्षा नीति में भाषा और कला को लेकर कई उत्साहवर्धक घोषणाएँ की गई हैं। इन घोषणाओं में साफ़ तौर पर यह कहा गया है कि संस्कृति को मज़बूत करने के लिए यह आवश्यक है कि भाषा को मज़बूती प्रदान की जाए। शब्दकोश से लेकर अनुवाद तक की महत्ता के बारे में बात की गई है। एक और महत्वपूर्ण बात जो इस नई शिक्षा नीति में कही गई है वो यह है कि ‘भारत इसी तरह सभी शास्त्रीय भाषाओं और साहित्य का अध्ययन करनेवाले अपने संस्थानों और विश्वविद्यालयों का विस्तार करेगा और उन हज़ारों पांडुलिपियों को इकट्ठा करने, संरक्षित करने और अनुवाद करने और उनका अध्ययन करने का मज़बूत प्रयास करेगा, जिस पर अभी तक ध्यान नहीं गया है। इसी प्रकार से सभी संस्थानों और विश्वविद्यालयों में जिसमें शास्त्रीय भाषाओं और साहित्य पढ़ाया जा रहा है, उनका विस्तार किया जाएगा। अभी तक उपेक्षित रहे लाखों अभिलेखों के संग्रह, संरक्षण, अनुवाद और अध्ययन के दृढ़ प्रयास किए जाएँगे।‘ इस शिक्षा नीति में यह एक बेहद महत्वपूर्ण प्रयास होगा।
नई शिक्षा नीति: पांडुलिपि मिशन की जगह राष्ट्रीय प्राधिकरण जैसी संस्था क्यों नहीं?
- विचार
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- 2 Aug, 2020

नई शिक्षा नीति में ज़ोर दिया गया है लेकिन अगर सरकार पांडुलिपियों को लेकर गंभीरता से काम करना चाहती है तो उसको पांडुलिपि मिशन को भंग करके राष्ट्रीय पांडुलिपि प्राधिकरण जैसी संस्था का गठन करना होगा।
हमारे प्राचीन ग्रंथों को सहेजने का प्रयास होना चाहिए। कई बार कई तरह के सर्वेक्षणों में यह बात सामने आ चुकी है कि पूरी दुनिया में भारत के पास सबसे अधिक पांडुलिपियाँ हैं लेकिन साथ ही ये बात भी सामने आती हैं कि हमारे देश में इन पांडुलिपियों के संरक्षण की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। एक अनुमान के मुताबिक़ हमारे देश में इस वक़्त दो करोड़ से अधिक पांडुलिपियाँ हैं जिनको संरक्षित करने की सख़्त आवश्यकता है।