मंगलवार देर शाम सिख सियासत के एक युग का अंत हो गया। कुछ समय से बीमार चल रहे प्रकाश सिंह बादल नहीं रहे। बादल पांच बार पंजाब के मुख्यमंत्री रहे और एक बार केंद्र सरकार में कृषि मंत्री। उन्हें पंथक सियासत की धुरी माना जाता था। वह 95 साल के थे और सांस लेने की तकलीफ के चलते उन्हें एक हफ्ता पहले मोहाली में फोर्टिस अस्पताल में दाखिल करवाया गया था। उनकी मृत्यु की पुष्टि लगभग साढ़े आठ बजे की गई। सूत्रों के मुताबिक उनका अंतिम संस्कार बठिंडा जिले के बादल गांव में किया जाएगा।
प्रकाश सिंह बादल का जन्म आठ दिसंबर 1927 को पंजाब के गांव अबुल खुराना में हुआ था। शिरोमणि अकाली दल के प्रधान और सूबे के पूर्व उपमुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल उनके बेटे हैं तो पूर्व केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल बहू। राज्य के पूर्व वित्त मंत्री रहे और अब भाजपा का हिस्सा हो चुके मनप्रीत सिंह बादल उनके भतीजे हैं। प्रकाश सिंह बादल अस्पताल में भर्ती हुए तो केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने लगातार बादल के स्वास्थ्य की जानकारी ली थी।
गौरतलब है कि प्रकाश सिंह बादल ने 1947 में राजनीति शुरू की थी। पहले- पहल उन्होंने सरपंच का चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। तब वह सूबे में सबसे कम उम्र के सरपंच बने थे। 1957 में इन्होंने पहला विधानसभा चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। 1969 में वह दोबारा जीते। तत्पश्चात वह पंचायत राज, पशुपालन और सहकारिता मंत्री बने। प्रकाश सिंह बादल 1970-71, 1977-80, 1997-2002 में मुख्यमंत्री रहे। 2002 में शिरोमणि अकाली दल-भाजपा गठबंधन चुनाव हार गया तो वह विपक्ष के नेता बने। पांच साल के बाद गठबंधन बहुमत में आया तो वह फिर मुख्यमंत्री रहे।
अपने राजनीतिक कैरियर में उन्हें 2022 में पहली बार चुनावी शिकस्त मिली। बेशक ज्यादा उम्र और स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों के चलते वह विधानसभा चुनाव नहीं लड़ना चाहते थे, लेकिन सुखबीर सिंह बादल की जीत के चलते वह चुनाव मैदान में उतरे। दरअसल, सियासत के माहिर खिलाड़ी प्रकाश सिंह बादल हवा का रुख भांप गए थे और बखूबी जानते थे कि इस बार पंजाब में आम आदमी पार्टी की लहर है तथा शिरोमणि अकाली दल हाशिए पर रहेगा। दिग्गज अकाली नेता आपातकाल के बाद गठित मोरारजी देसाई सरकार में सांसद बने और थोड़े वक्त के लिए केंद्रीय कृषि मंत्रालय संभाला।
संघ परिवार की राजनीतिक शाखा भाजपा से उनका रिश्ता कायम रहा और तब टूटा जब पंजाब से चले किसान आंदोलन ने दिल्ली सीमा तक जाकर व्यापक रूप अख्तियार कर लिया।
2002 में कैप्टन अमरिंदर सिंह की अगुवाई में पंजाब में कांग्रेस सरकार वजूद में आई तो प्रकाश सिंह बादल और सुखबीर बादल को भ्रष्टाचार के आरोपों में गिरफ्तार किया गया। भ्रष्टाचार के आरोप बड़े बादल के दामन पर पहला दाग थे। बाद में वह इससे बरी हो गए। अपनी जीवन संध्या में उन्हें बेअदबी कांड और बरगाड़ी गोली कांड में संलिप्त होने के आरोपों का भी सामना करना पड़ा। दो दिन पहले ही पंजाब पुलिस ने उनके खिलाफ चार्जशीट दाखिल की थी। आम आदमी पार्टी की सख्ती के बाद उन्हें अदालत से जमानत लेनी पड़ी थी। सरकार की आलोचना हो रही थी कि बुजुर्ग और जीवन के अंतिम पड़ाव पर खड़े दिग्गज अकाली नेता प्रकाश सिंह बादल से ऐसा बर्ताव किया जा रहा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी बादल के व्यक्तिगत रिश्ते रहे। मोदी जब पहली बार प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने बादल के पांव छूकर उनका खास इस्तकबाल किया था और आशीर्वाद लिया था। मोदी साल 2000 से पहले बतौर प्रभारी अक्सर पंजाब आया करते थे और उनका ठिकाना बादल का चंडीगढ़ आवास तो होता ही था, दिग्गज अकाली नेता का गांव स्थित घर भी होता था। इसकी पुष्टि खुद नरेंद्र मोदी ने तब की-जब प्रकाश सिंह बादल की पत्नी सुरिंदर कौर बादल का निधन हुआ। तो आज राजनीति के एक युग का अंत हो गया! अलविदा प्रकाश सिंह बादल साहिब!
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