एक पत्रकार के तौर पर मेरे लिए तारक सिन्हा पहले ‘इंटरनेशनल’ थे जिनसे मैं अपने करियर की शुरुआत में मिला। बात शायद 2002 की शुरुआत की रही होगी जब वह भारतीय महिला क्रिकेट टीम के कोच बनाये गये थे जिसमें मिथाली राज और झूलन गोस्वामी जैसी प्रतिभायें थीं। सिन्हा की कोचिंग में उस टीम ने साउथ अफ्रीका के दौरे पर ऐतिहासिक जीत दर्ज की थी लेकिन हैरानी की बात है कि उन्हें कभी भी बीसीसीआई ने सहायक कोच के भी लायक नहीं समझा।
तारक सिन्हा: जिन्होंने दर्जनों अंतरराष्ट्रीय क्रिकेटरों को बनाया पर खुद गुमनाम रहे!
- श्रद्धांजलि
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- विमल कुमार
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- 7 Nov, 2021

टीम इंडिया तो चलिए बहुत ही दूर की बात थी, घरेलू क्रिकेट के इतिहास में सबसे कामयाब कोच को बोर्ड ने न तो अंडर-19, न ही इंडिया ए का कोच बनाया और यहाँ तक कि नेशनल क्रिकेट एकेडमी की ज़िम्मेदारी तक नहीं दी। दरअसल, यह पुरानी बीसीसीआई के अहंकारी स्वभाव का हिस्सा था वरना जिस कोच ने बिना किसी सुविधा के एक नहीं बल्कि दर्जनों अंतरराष्ट्रीय क्रिकेटर भारत को दिये, उन्हें बोर्ड ने नाकाम होने तक के लिए भी एक मौक़ा नहीं दिया। लेकिन, सिन्हा इन बातों से हमेशा बेफिक्र रहे। उन्हें क्रिकेट से इतना प्यार था कि उन्होंने बस नई-नई प्रतिभा को तलाश करने में अपना पूरा जीवन बिता दिया।