भारत में बहुत सारे लोगों को ये समझ में नहीं आ रहा होगा कि आखिर साउथ अफ्रीका के विकेटकीपर बल्लेबाज़ क्विंटन डि कॉक को लेकर इतना बवाल क्यों मचा हुआ है? कहने को तो डि कॉक ने वेस्टइंडीज़ के ख़िलाफ़ हुए वर्ल्ड कप मैच में अपने साथी खिलाड़ियों के साथ घुटने के बल पर बैठने का निर्णय नहीं लिया जो “ब्लैक लाइव्स मैटर्स” मूवमेंट के लिए पूरी दुनिया में चल रहा है।
साउथ अफ़्रीका क्रिकेट में अभी भी हैं नस्लवादी खिलाड़ी?
- खेल
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- 28 Oct, 2021

ऐसा नहीं है कि साउथ अफ्रीका का हर श्वेत खिलाड़ी डि कॉक की ही तरह सफेद रंग की सर्वोच्चता में सबसे ज़्यादा भरोसा रखता हो लेकिन इतना ज़रुर है कि विकेटकीपर बल्लेबाज़ के इस कदम ने बाकी साथी खिलाड़ियों को शक के घेरे में डाल दिया है।
इंग्लैंड जैसे देश ने भी इस पूरे अभियान को अपना समर्थन दिया है लेकिन साउथ अफ्रीका के किसी श्वेत खिलाड़ी का ऐसा करने से इनकार करना काफी अचंभित करने वाला फैसला है।
क्यों की टीम और मुल्क की अनदेखी?
हर खिलाड़ी अक़सर ये दलील देता है कि कोई भी खिलाड़ी खेल से बड़ा नहीं, और टीम से बड़ा कोई नहीं, तो ऐसे में डि कॉक ने कैसे खुद को टीम से बड़ा मान लिया? और इस मामले में टीम तो छोड़िये उन्होंने खुद को देश से ऊपर मान लिया। उनका ये फैसला साफ करता है कि अब भी नयी पीढ़ी के श्वेत खिलाड़ियों में अपनी सफेद चमड़ी का गुरुर तनिक भी ख़त्म नहीं हुआ है।