भारत के कप्तान रोहित शर्मा और अश्विन में एक समानता है। जो मन में है उसे बोलने में दोनों एक क्षण भी नहीं हिचकिचाते। ब्रिसबेन टेस्ट के अंतिम दिन ड्रॉ के बाद पत्रकार परिषद में अश्विन ने रोहित की उपस्थिति में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से बिदाई की घोषणा की। दिलचस्प यह है कि रोहित ने अपने पहले ही क्रिकेट मैच में जो शतक जमाया था, तब नॉन-स्ट्राइकिंग छोर पर अश्विन ही थे। ब्रिसबेन में हालाँकि अश्विन ने पत्रकारों के प्रश्नों के उत्तर नहीं दिए लेकिन रोहित ने बग़ैर संकोच के कहा कि 106 मैचों में 537 विकेट लेने वाले अश्विन को ऑस्ट्रेलिया दौरे की शुरुआत से ही यह लगने लगा था कि अब भारतीय टीम को उनकी ज़रूरत नहीं है। खुद्दार अश्विन ने यही बेहतर समझा कि बजाय टीम के साथ लटके रहने के, टीम को और क्रिकेट को अलविदा कह दें। वह उन्होंने कर दिया।
एक समय था, विश्व क्रिकेट में भारत की स्पिन चौकड़ी की धाक थी। एक स्तरीय तेज गेंदबाज़ के अभाव में हालत यह भी थी कि पाँचवें- छठे ओवर में ही स्पिन गेंदबाज़ को बुलाना पड़ता था। उस चौकड़ी में दक्षिण के दो ऑफ़ स्पिन गेंदबाज़ प्रसन्ना और वेंकट राघवन सम्मिलित थे। प्रसन्ना एक आक्रामक, सामान्य से ज़्यादा उछाल दे कर बल्लेबाज़ को ललचा कर अपने जाल में फँसाने वाले तो वेंकट अचूक गेंदबाज़ी, असीमित धैर्य और समय आने पर बल्लेबाज़ी भी करने वाले। रविचंद्रन अश्विन ऑफ़ स्पिन गेंदबाज़ी में प्रसन्ना और वेंकट राघवन का आदर्श मिश्रण रहे। प्रसन्ना जैसा आक्रमण, वेंकट का धैर्य और उन दोनों की तरह इनजीनियरिंग दिमाग़ (जी हाँ, ये तीनों ही उच्च शिक्षा प्राप्त इंजीनियर हैं) के कारण ही 106 मैचों में 537 विकेट के साथ टेस्ट में भारत के लिए दूसरे सबसे अधिक विकेट लेने वाले गेंदबाज के रूप में खेल से संन्यास ले लिया। उनकी महत्ता इससे भी समझी जा सकती है कि सबसे कम पारियों में 300 टेस्ट विकेट लेने का रिकॉर्ड उनके नाम है।
अपने खेल जीवन में भारतीय क्रिकेट में अश्विन का योगदान कई मायनों में महत्वपूर्ण रहा है। सीमित ओवरों के क्रिकेट में, 2011 विश्व कप और 2013 चैंपियंस ट्रॉफी जीतने वाली टीमों का हिस्सा होना उनके करियर का मुख्य आकर्षण रहा है। लेकिन ये तो हुई आँकड़ों की बात। इसके परे देखें तो अश्विन के रूप में भारतीय क्रिकेट से एक ऐसे क्रिकेटर ने विदाई ली है जो क्रिकेट का खेल भी पूरे धैर्य के साथ शतरंज की तरह खेलता था। ऐसे अथाह क़िस्से हैं जो उन्हें अन्य गेंदबाज़ों से अलग करते हैं। शतरंज के माहिर खिलाड़ी अश्विन कहते हैं, ‘मेरी क्रिकेट में सफलता का श्रेय मेरे शतरंज ज्ञान को भी है। मैंने शतरंज से ही सीखा कि अंतिम जीत के लिए प्रारम्भ में कुछ मोहरे (फ़ील्डर) खोने में कुछ भी ग़लत नहीं।’ 2016 के आईपीएल में अश्विन ने ए बी डिविलियर्स को ऐसे ही फँसाया। मिड विकेट को हटा कर धीमी और वाइड गेंदें डाल कर डिविलियर्स को ललचाया कि वो हवा में गेंद खेंले। कुछ चौके लगे भी। लेकिन अचानक एक धीमी गेंद के मोह में डिविलियर्स ने छक्का मारने की कोशिश की लेकिन पकड़े गए। डेविड वार्नर, ऐलिस्टर कुक और बेन स्टोक्स तो उनके ख़ास मुर्ग़े थे।
अश्विन का क्रिकेट केवल गेंदबाज़ी के हुनर का क्रिकेट नहीं था। वो खिलाड़ी के मन मस्तिष्क में भी छेड़छाड़ करते थे। आईपीएल के ही एक मैच में जब पोलार्ड अश्विन के सामने आए तो उन्होंने पोलार्ड को बस इतना कहा कि मैंने आपकी कमजोरी पकड़ ली है और उसी के अनुसार बॉलिंग करूँगा। बस! पोलार्ड अपना खेल भूलकर अतिरिक्त सावधानी के साथ खेलने लगे और आउट हो गए। जब वो लौट रहे थे, अश्विन ने कहा मैं तो मज़ाक़ कर रहा था। डेविड वॉर्नर भी अश्विन को भूल नहीं सकते। 2017 के बंगलुरु टेस्ट में अश्विन ने उन्हें लगातार ऑफ़ स्पिन आक्रमण कर व्यस्त रखा और फिर उसी ऐक्शन और उसी लेंथ के साथ अचानक एक आर्मर गेंद फेंकी जो ठीक विपरीत दिशा में स्पिन हुई। बल्लेबाज़ की सोच के आगे जा कर सोचना अश्विन की विशेषता रही है।
शिखर धवन, मुरली विजय, चेतेश्वर पुजारा, सचिन तेंदुलकर, विराट कोहली और धोनी पेवेलियन में लौट चुके थे। जब अश्विन खेलने उतरे तब अपना पहला टेस्ट मैच खेल रहे रोहित शर्मा 50 के ऊपर खेल रहे थे। साँतवें विकेट के लिए दोनों ने 280 रन की भागीदारी की।
रोहित ने 177 तो अश्विन ने 124 रन बनाए। ऐस्विन की पारी देखने योग्य पारी थी। न केवल उन्होंने अपनी विकेट बचाकर रखी, वरन समय समय पर हाथ खोलकर (11 चौके) बिंदास बल्लेबाज़ी भी की। इस भागीदारी ने भारत को मज़बूत स्थिति में (अंतत: भारत जीता) तो लाया ही, रोहित और अश्विन की दोस्ती की नयी कहानी शुरू हुई जो आज भी जारी है।
आज जब हम अश्विन के क्रिकेट जीवन की चर्चा कर रहे हैं तो उस बात की भी चर्चा की जानी चाहिए जिसके कारण विश्व क्रिकेट में वो विवादों में रहे हैं। यह विवाद है माँकडिंग का। माँकडिंग, कहते हैं जब एक गेंदबाज नॉन-स्ट्राइकिंग बल्लेबाज को रन आउट कर देता है। मतलब गेंदबाज द्वारा गेंद छोड़ने से पहले ही जब नॉन-स्ट्राइकिंग बल्लेबाज क्रीज छोड़ देता है तो गेंदबाज़ गेंद डालने के पहले ही स्टम्प्स उड़ाकर बल्लेबाज़ को रन आउट कर देता है। यह नाम महान भारतीय ऑलराउंडर वीनू मांकड़ से लिया गया है, जिन्होंने 1947 में सिडनी टेस्ट में ऑस्ट्रेलिया के बिल ब्राउन को इसी अंदाज में रन आउट किया था।
हालांकि क्रिकेट के नियम गेंदबाजों को बल्लेबाज को रन आउट करने की इजाजत देते हैं, लेकिन क्रिकेट का अभिजात्य विश्व इसे खेल की भावना के खिलाफ मानते हैं। अश्विन को विश्व क्रिकेट में इसी बात के लिए विलेन माना जाता रहा है। अश्विन ने कई बार इस नियम का उपयोग किया और हर बार विवादों में फँसे। श्रीलंका के विरुद्ध अश्विन ने 2012 के एकदिवसीय मैच में खुद को मांकडिंग की स्थिति में पाया था जब उन्होंने लाहिरू थिरमाने को मांकडिंग किया। उस समय थिरमाने 44 पर खेल रहे थे। पहले तो अम्पायर को लगा शायद अश्विन अपील को लेकर गम्भीर नहीं हैं। लेकिन जब अश्विन अड़े रहे तो अम्पायर ने पहले कैप्टन विरेंद्र सहवाग को बुलाया और समझाया कि यह भले ही नियम में हो लेकिन क्रिकेट की स्पिरिट के ख़िलाफ़ है। विरेंद्र सहवाग सोच ही रहे थे कि सचिन बीच में गए और अपील वापस ली। जब अश्विन को बाद में पूछा गया कि क्या यह सही था, उनका कहना था, ’बतौर गेंदबाज़ रनअप लेते समय मैं आधा इंच जगह भी नहीं ले सकता तो बल्लेबाज़ को एक यार्ड का लाभ क्यों?
इसमें दो मत नहीं कि अश्विन को भारतीय क्रिकेट में वो इज्जत नहीं मिली, जिसके वो हक़दार थे। वे सही भी है। आख़िर किस गेंदबाज़ ने एक दिवसीय मुक़ाबले में एक ओवर में बग़ैर एक रन दिए 4 बल्लेबाज़ों को आउट किया। इसीलिए अश्विन के मन में शायद हमेशा एक तरह की कुंठा रही। शायद इसलिए कि उन्हें ‘अच्छा’ तो माना गया लेकिन ‘सर्वश्रेष्ठ‘ नहीं। इसीलिए 2021 के इंग्लैंड दौरे पर जब रवि शास्त्री ने उन्हें लाइव प्रसारण में पूछा क़ि उन्होंने बेन स्टोक्स और जो रूट जैसे धुरंधर बल्लेबाज़ों को कैसे आउट किया तो अश्विन का जवाब था, ’कुछ नहीं सर, विकेट और फ़ील्डर्ज़ ने सहयोग दिया’। सवाल यही है कि इस क्रिकेटिंग जिनीयस के ज्ञान का उपयोग भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड करता है या नहीं?
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