देश भर में चुनावी माहौल है। एग्ज़िट पोल के नतीजों को लेकर चर्चाओं का दौर जारी है। लेकिन इन सबमें एक चीज पर जो चर्चा नहीं हो रही है वह है मीडिया की भूमिका। पिछले कुछ वर्षों में देश में सुप्रीम कोर्ट से लेकर चुनाव आयोग तक सबकी टूटन बाहर निकल कर आयी लेकिन इस दरकते संघीय ढाँचे पर चर्चा क्यों नहीं? देश की जनता के मौलिक अधिकारों के संरक्षक की प्रतीक इन संवैधानिक संस्थाओं या यूँ कह लें कि सत्ता के विकेंद्रीकरण के स्वरूप के संकट पर जब हमारा मीडिया ध्यान नहीं दे रहा है तो क्या यह माना जाय कि उसके हित अब वे नहीं रहे जिसके लिए उसे लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के रूप में बताया जाता रहा है?