कांग्रेस पार्टी में शीर्ष नेतृत्व से लेकर राज्य स्तर तक इस्तीफ़े और असमंजस का दौर चल रहा है, जबकि आगामी 5 महीने बाद महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। लोकसभा चुनाव नतीजों से उत्साहित बीजेपी-शिवसेना गठबंधन इस बार का विधानसभा चुनाव भी मिलकर ही लड़ने वाले हैं और मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के 220 सीटों पर जीत के दावे ने प्रदेश में राजनीतिक चर्चाओं को गरमा दिया है।
हालिया लोकसभा चुनाव परिणाम देखें तो राज्य की 226 विधानसभा सीटों पर बीजेपी-शिवसेना गठबंधन को बढ़त मिली है, जबकि विपक्षी कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन ने 56 सीटों पर ज़्यादा वोट हासिल किये हैं जबकि छह सीटों पर अन्य को बढ़त मिली है। लोकसभा के चुनाव के इन आँकड़ों को देखें तो बीजेपी-शिवेसना का दावा कोई असंभव-सा नहीं दिखता है, क्योंकि विपक्षी कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपने मौजूदा विधायकों और पार्टी के नेताओं को बचाने की है। कांग्रेस-एनसीपी महागठबंधन में निराशा छाई है। पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष अशोक चव्हाण चुनाव हार चुके हैं, जबकि विधानसभा में विरोधी पक्ष के नेता के पद पर आसीन रहे राधाकृष्ण विखे पाटिल ने पुत्रमोह में चुनाव के दौरान ही बीजेपी का हाथ थाम लिया था। चुनाव के दौरान ही संजय निरुपम को हटाकर मुंबई प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी हासिल करने वाले मिलिंद देवड़ा भी चुनाव हार चुके हैं।
लोकसभा चुनावों में कांग्रेस-एनसीपी महागठबंधन की जिस तरह की हार हुई है, ऐसे में प्रदेश की सत्ता हासिल करने की कवायद इतनी आसान नहीं होगी।
लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र नव निर्माण सेना के प्रमुख राज ठाकरे का कार्ड कारगर साबित नहीं हुआ जबकि बीजेपी की तरफ़ से प्रकाश आम्बेडकर और असदुद्दीन ओवैसी का वंचित आघाडी का कार्ड सटीक साबित रहा और 9 लोकसभा सीटों पर उसने हार-जीत के समीकरण को सीधे-सीधे प्रभावित किया। कांग्रेस के कई नेता अब भी वंचित आघाडी से गठबंधन की बातें कर रहे हैं जबकि वे हक़ीकत को समझ नहीं पा रहे हैं। प्रकाश आम्बेडकर उनसे गठबंधन करने की बजाय अपनी सौदेबाज़ी की क्षमता का आकलन करने की कवायद ज़्यादा करेंगे। वैसे आम्बेडकर ने मीडिया में यह बयान भी दिया है कि वह लोकसभा के मुक़ाबले विधानसभा में ज़्यादा नुक़सान पहुँचाएँगे। 2014 के बाद 2019 में भी कांग्रेस के मुक़ाबले ज़्यादा लोकसभा सीटें जीतने वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस ज़्यादा सीटों की माँग भी कर सकती है या कांग्रेस के बराबर सीटें लेने की कोशिश भी करेगी। हालाँकि एक सीट जीतने के बावजूद कांग्रेस (16.27%) का वोट शेयर राष्ट्रवादी कांग्रेस (15.52%) से ज़्यादा ही है। जबकि बीजेपी को 27.59% और शिवसेना को (23.29% वोट मिले हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव के मुक़ाबले कांग्रेस का इस बार 2% वोट शेयर और एनसीपी का 1% कम हुआ है।
इस विधानसभा में है बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी
2014 के विधानसभा चुनावों में 18% वोट के साथ कांग्रेस ने 42 व 17.2% के साथ एनसीपी ने 41 सीटों पर जीत हासिल की थी। 19.3% वोट के साथ शिवसेना 63 और 27.8% वोट के साथ बीजेपी 122 सीटें जीतने में सफल रही थी। साल 2014 के लोकसभा चुनाव में भी बीजेपी को क़रीब उतने ही वोट (27.3%) मिले थे जितने इस बार मिले हैं और उसके 5 महीने बाद हुए विधानसभा चुनावों में भी यह क़रीब उतना (27.8%) ही रहा था। 2014 का विधानसभा चुनाव शिवसेना -बीजेपी, कांग्रेस-राष्ट्रवादी कांग्रेस सबने अलग-अलग लड़ा था। इस बार मनसे, पीडब्ल्यूपी, स्वाभिमानी शेतकरी संगठन, बहुजन विकास आघाडी (बीवीए) कांग्रेस-राष्ट्रवादी कांग्रेस गठबंधन के साथ हैं।
इस बार लोकसभा चुनाव में प्रकाश आम्बेडकर और असद्दुद्दीन ओवैसी का वंचित आघाडी का जो नया समीकरण बना उससे बीजेपी-शिवसेना गठबंधन को सीधे-सीधे फ़ायदा पहुँचा है और वह विधानसभा चुनाव में भी अपना असर दिखा सकता है।
सूखा, किसानों की आत्महत्या, बेरोज़गारी, आर्थिक मंदी जैसे सारे मुद्दे लोकसभा चुनावों में जिस तरह से धाराशायी हुए हैं उन्हें देखकर तो यही लगता है कांग्रेस-राष्ट्रवादी कांग्रेस को सत्ता में आने के लिए कोई संजीवनी ही ढूंढनी पड़ेगी।
मुंबई कभी कांग्रेस के लिए एक मज़बूत आधार हुआ करती थी अब बीजेपी और शिवसेना के कब्ज़े में चली गयी है। यहाँ की 36 सीटों में से 31 सीटों पर बीजेपी-शिवसेना गठबंधन आगे रही, जबकि पाँच सीटों पर महागठबंधन व अन्य को बढ़त हासिल हुई है। बांद्रा पूर्व विधानसभा में कांग्रेस को मिली बढ़त शिवसेना को हजम नहीं हो रही है क्योंकि पार्टी प्रमुख उद्धव ठाकरे का निवास मातोश्री इसी की हद में है।
लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान पृथक विदर्भ के मुद्दे पर लोगों में सत्ता के ख़िलाफ़ आक्रोश दिखाई देता था लेकिन वहाँ भी बीजेपी ने अच्छा प्रदर्शन किया। विदर्भ की 60 में से बीजेपी-शिवसेना 49 और कांग्रेस-एनसीपी को 11 विधानसभा सीटों पर बढ़त मिली है। हालाँकि 2014 के विधानसभा चुनाव के मुक़ाबले यह प्रदर्शन थोड़ा कमज़ोर रहा। बीजेपी में मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस, केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी समेत राज्य सरकार के कई मंत्री विदर्भ से ही आते हैं।
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