सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि मीडिया का सेल्फ रेगुलेशन नाकाम हो गया है। अदालत ने यह भी कहा कि वो चैनलों पर नियंत्रण के लिए गाइडलाइंस जारी करेगा। सवाल है कि क्या इससे नफरती मीडिया पर रोक लग पाएगी? और फिर अभिव्यक्ति की आज़ादी का क्या होगा? आलोक जोशी के साथ क़मर वहीद नकवी और राहुल देव।
भारत के चीफ जस्टिस एन.वी. रमना ने मुंबई प्रेस क्लब के एक कार्यक्रम को
डिजिटल माध्यम से संबोधित करते हुए मीडिया को ढेर सारी नसीहतें दी। यह भी
कहा कि न्यायपालिका और मीडिया को साथ-साथ चलना चाहिए। चीफ जस्टिस रमना की
क्या-क्या नसीहतें हैं, यहां पढ़िए।
आज भारत में मीडिया के एक बड़े वर्ग ने जनता का सम्मान खो दिया है और वह सत्ताधारी दल के लिए 'गोदी मीडिया' (बेशर्म, बिका हुआ, चाटुकार प्रवक्ता) बन गया है।
खबरिया चैनलों के स्टूडियो में अदालतों का सजना और जांच एजेंसियों के आधिकारिक बयान आने से पहले अपने एजेंडे के मुताबिक़ बहुत कुछ फर्जी खबरें परोसना बदस्तूर जारी है।
एनबीए ने टीआरपी देने वाली एजेंसी बार्क से टीवी 9 भारतवर्ष के ख़िलाफ़ शिकायत की है कि उसने ग़लत तरीक़ों से टीआरपी बढ़ाई है और उसके ख़िलाफ़ कार्रवाई की जाए। लेकिन क्या सचमुच में ऐसा है या फिर ये शिकायत टीवी 9 भारतवर्ष की वज़ह से नीचे फ़िसले न्यूज़ चैनलों की टुच्ची लड़ाई का हिस्सा है? पेश है वरिष्ठ पत्रकार और मीडिया विशेषज्ञ मुकेश कुमार की रिपोर्ट
पत्रकारिता आज़ादी के दौर में मिशन थी, बाद में प्रोफ़ेशन बन गयी और अब टीवी चैनलों के शोर के दौर में प्रहसन हो चुकी है। इस पत्रकारिता का सूत्र वाक्य है - सनसनी सत्यं, ख़बर मिथ्या।
मतदान की समाप्ति के बाद एग्ज़िट पोल पर चर्चाएँ जारी हैं। लेकिन इन सबमें एक चीज पर जो चर्चा नहीं हो रही है वह है मीडिया की भूमिका। लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पर चर्चा क्यों नहीं?