आज भारत में मीडिया के एक बड़े वर्ग ने जनता का सम्मान खो दिया है और वह सत्ताधारी दल के लिए 'गोदी मीडिया' (बेशर्म, बिका हुआ, चाटुकार प्रवक्ता) बन गया है। चौथे स्थान पर रहने और भारतीय लोगों की सेवा करने के बजाय, यह काफी हद तक पहले स्तंभ का हिस्सा बन गया है, जैसा कि प्रख्यात पत्रकार और मैग्सेसे पुरस्कार के विजेता रवीश कुमार ने कहा है। यह बात मौजूदा किसानों के आंदोलन में इनकी भूमिका से भी स्पष्ट है। मीडिया का बड़ा वर्ग सरकार का भोंपू बन गया है।
क्यों और कैसे सरकार का भोंपू बन गया मीडिया?
- विचार
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- 31 Dec, 2020

मीडिया को जातिवाद और सांप्रदायिकता जैसी सामंती ताकतों पर हमला करना चाहिए, धार्मिक कट्टरता की निंदा करनी चाहिए और हमारे समाज का ध्रुवीकरण करने के प्रयास का जमकर विरोध करना चाहिए। मीडिया को लोगों में वैज्ञानिक सोच-विचारों, सामाजिक सद्भाव और एकता को बढ़ावा देना चाहिए और लोगों के सामने वास्तविक मुद्दों से ध्यान हटाने के प्रयास को रोकना चाहिए।
मीडिया की सही भूमिका क्या होनी चाहिए? इसे न्यूयॉर्क टाइम्स बनाम यूएस, 1971 (पेंटागन पेपर्स केस) में अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट के मिस्टर जस्टिस ह्यूगो ब्लैक के इन शब्दों में समझा जा सकता है -