'ठग बंधन'
भाजपा के शीर्ष नेतृत्व की ओर से व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा पूरे चुनाव प्रचार अभियान में विपक्षी दलों में हुई एकजुटता को ‘मिलावटी सरकार’ या 'महामिलावटी गठबंधन' 'ठग बंधन ' कहा गया। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने बार-बार कहा कि अगर इन विपक्षी दलों की सरकार बनती है तो हर दिन कोई एक नया प्रधानमंत्री बनेगा।
भाजपा मतदाताओं के मन में यह बात बैठाना चाहती थी कि स्थायी सरकार के लिए सिर्फ भाजपा ही विकल्प है।
गुजरात मॉडल गायब
पिछले पाँच सालों में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पार्टी ने जितने भी चुनाव लड़े हैं, उनमें प्रचार मुद्दों पर केंद्रित होने की बजाय धर्म, राष्ट्रवाद और विपक्षी दलों से जुड़े पुराने मुद्दों के इर्द गिर्द ही घूमते रहे। गुजरात विधानसभा के चुनाव प्रचार में प्रधानमंत्री के भाषणों से गुजरात मॉडल गायब रहा। ऐसा ही कुछ कर्नाटक, राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ के चुनावों के दौरान भी दिखा। यही नहीं लोकसभा चुनावों के इस प्रचार अभियान में भी भाजपा अपनी सरकार की उपलब्धियों पर वोट माँगने की हिम्मत नहीं जुटा पायी।
अब जब सत्ता से दूर होने के आकलन आने लगे हैं तो भारतीय जनता पार्टी उन नेताओं की तरफ हाथ बढ़ाने के लिए लालायित दिख रही है जो कल तक महामिलावटी की श्रेणी में आते थे।
बड़ी मिलावट बीजेपी में
अगर पार्टियों के गठबंधन को ही प्रधानमंत्री मिलावटी बोलते हैं तो यह भी एक हक़ीक़त है कि उनके सत्ताधारी गठबंधन में यह मिलावट ज्यादा बड़ी है क्योंकि उसमें विपक्ष के मुक़ाबले ज़्यादा राजनीतिक पार्टियों का समावेश है। चुनाव प्रचार शुरू होने से पहले जो विपक्ष सहमा-सहमा सा दिखता था, हर चरण के मतदान के बाद उसका विश्वास बढ़ता गया और अब वह एकजुट होकर वैकल्पिक सरकार की रूपरेखा पेश करने की कोशिश में है।
कोई एक पार्टी सभी की नुमाइंदगी का दावा नहीं कर सकती। आपस में समझौते करके इनका एक साथ आना केंद्र में स्थिरता का प्रतीक है ना कि कोई महामिलावट?
मजबूत सरकार?
साल 2004 में बनी यूपीए की पहली सरकार को इस सन्दर्भ में देखा जा सकता है। मनरेगा, मिड डे मील, खाद्य सुरक्षा, सूचना का अधिकार जैसे फ़ैसले गठबंधन की सरकारों के दौर में ही लिए गए। इसी संदर्भ में अमित शाह के बयान को देखा जाना चाहिए जिसमें वह कहते हैं कि विपक्षी की ओर से मजबूर सरकार का प्रस्ताव दिया जा रहा है, जबकि भाजपा मजबूत सरकार का वादा कर रही है। लोकतंत्र में यह जरूर है कि सरकार आम जनता के सामने मजबूर रहे न कि जनमानस की इच्छाओं के ख़िलाफ़ जाकर मजबूत रहे।
समाज के ताने-बाने को छिन्न-भिन्न करने की कोशिश से लेकर प्रधानमंत्री कार्यालय में शक्तियों को केंद्रित करके कैबिनेट व्यवस्था को तार-तार करने का काम भी देश की जनता ने देखा है।
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