जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) से शुरू हुआ कथित राष्ट्रवाद का खेल एक दिन राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी को भी पाकिस्तानी क़रार देगा ऐसा आज़ादी के समय शायद ही किसी ने सोचा होगा। राष्ट्रवाद की इस आग में एक दिन देश के महानायक को झुलसाने की कोशिश की जायेगी, यह भी किसी ने नहीं सोचा होगा। लेकिन आज महात्मा गाँधी को पाकिस्तान का राष्ट्रपिता कहा जा रहा है।
जेएनयू में वामपंथी विचारधारा के विद्यार्थियों से शुरू हुआ यह सिलसिला इतना तेज़ी से विकास करेगा इसका अंदाज़ा नहीं था। जब जेएनयू से यह राष्ट्रवादी गुबार उठा था तो देश में बड़े पैमाने पर ध्रुवीकरण हुआ।
मीडिया के एक हिस्से द्वारा परोसे गए वीडियो और चर्चाओं के दौर ने एक नए नारे को जन्म दिया वह है- ‘तुम पाकिस्तानी हो, तुमको यह पसंद नहीं तो पाकिस्तान चले जाओ’।
इस नारे ने देश में न सिर्फ़ बँटवारे के दौर की यादें ताज़ा कर दीं, बल्कि नये तरह के दंगों की शुरुआत भी कर दी। इस नारे का सबसे सहज निशाना था देश का अल्पसंख्यक मुसलिम समाज। उत्तर प्रदेश के दादरी में अख़लाक की हत्या इस झूठ पर कर दी जाती है कि उसके फ़्रीज़ में गोमांस रखा हुआ है। हरियाणा के बल्लभगढ़ में रहने वाले 16 साल के जुनैद की ट्रेन में चाकुओं से गोद कर हत्या हो या राजस्थान के राजसमंद ज़िले में शंभू लाल रैगर द्वारा अफराजुल हक की हत्या या फिर यूपी पुलिस के इंस्पेक्टर सुबोध कुमार की हत्या, इन सभी के पीछे विचारों की समानता को आसानी से देखा जा सकता है।
दाभोलकर, पानसरे, कलबुर्गी व गौरी लंकेश की हत्या क्यों?
नरेन्द्र दाभोलकर, गोविन्द पानसरे, एम.एम. कलबुर्गी और पत्रकार गौरी लंकेश की हत्याओं के पीछे जो प्रमुख वजह सामने आयी हैं वह यही हैं कि उन्होंने इस ख़ास विचारधारा का विरोध किया। इनकी हत्या कर यह संदेश देने की कोशिश की गयी कि 'तुम खामोश रहो'। सोशल मीडिया पर ट्रोल आर्मी खड़ी की गयी कि जो भी उनकी विचारधारा से हटकर बोले उस पर हल्ला करो। राजनेता, कलाकार, पत्रकार, समाज सेवक, सबको निशाने पर लिया गया और टुकड़े -टुकड़े गैंग कहा गया। यह भाषा सिर्फ़ सोशल मीडिया पर नहीं बोली जाती रही बल्कि कुछ न्यूज़ चैनल के एंकर तक यह बोलने लगे। इसका असर यह हुआ कि 30 जनवरी को जहाँ महात्मा गाँधी को श्रद्धा सुमन अर्पण किये जाने चाहिए वहाँ हिंदू महासभा की एक कथित महिला नेता ने गाँधी के पुतले को गोली मारकर नाथूराम गोडसे का 'शहीदी' दिवस मनाया। 30 जनवरी 1948 को नाथूराम गोडसे ने गाँधी की गोली मारकर हत्या कर दी थी।
गोडसे का मंदिर बनाने का प्रयास क्यों?
हिंदू महासभा ने पूर्व में गोडसे के मंदिर और मूर्ति बनाने की भी कई कोशिशें की हैं जिसे पुलिस ने विफल कर दिया। मध्य प्रदेश के ग्वालियर में मंदिर बनाने के लिए गोडसे की मूर्ति का शिलान्यास किया गया। मामला तूल पकड़ने पर पुलिस ने उस परिसर को सील कर दिया। उत्तर प्रदेश के सीतापुर और मेरठ में भी इस प्रकार के प्रयास किये गए। और अब बीजेपी के मध्य प्रदेश के नेता अनिल सौमित्र ने महात्मा गाँधी को पाकिस्तान का राष्ट्रपिता कह डाला।
गोडसे ने महात्मा गाँधी जैसे एक ऐसे शख्स की हत्या की थी जिसे दुनिया सदी का सबसे महान नायक मानती है। क्या यह अकेले गोडसे या उसके कुछ साथियों के बूते की बात हो सकती है? नहीं।
और यही कारण है कि बार-बार गाँधी को मारने या मिटाने का खेल खेला जाता है। इन लोगों को यह तो मालूम है कि गाँधी इस देश के सबसे बड़े प्रतीक हैं जिसे मिटा पाना बहुत मुश्किल है, लेकिन वे हर बार ऐसे ही प्रयास करते रहते हैं। लेकिन वे यह नहीं समझ पाते कि यह प्रतीकात्मकता गाँधी ने किसी जादू से नहीं, बल्कि एक बहुत जटिल जीवन और समाज को साधने की कोशिश से हासिल की थी। वे ऐसा मनुष्य और समाज चाहते थे जो अपने उपभोग में संयमित रहे, अपने आचरण में उदार, जो सबका सम्मान कर सके और जो सबके साझा विकास की बात सोच सके। इसलिए गाँधी को मिटाने से पहले भारतीय जीवन की समरसता और विविधता को मिटाना होगा।
अपनी राय बतायें