मध्य प्रदेश की कमलनाथ सरकार के सत्ता से बाहर होने के बाद सूबे में बीजेपी की सरकार बनने की तैयारियां तेज हो गई हैं। लेकिन बीजेपी के भीतर भी मुख्यमंत्री की कुर्सी के दावेदार बहुत हैं। तीन बार के मुख्यमंत्री रहे शिवराज सिंह चौहान का नाम इसमें पहले क्रम पर है। दूसरे क्रम पर केन्द्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर हैं। कुछ अन्य नाम भी हैं। बीजेपी विधायक दल का नेता चुनने में हो रही देरी को लेकर यह सुगबुगाहट तेज हो चली है कि ‘कहीं, शिवराज का पत्ता काटने की ‘तैयारी’ तो नहीं चल रही है।
कमलनाथ के इस्तीफा देने के कई घंटों बाद भी बीजेपी विधायक दल का नेता नहीं चुना जा सका है। नेता के नाम को लेकर दिल्ली में मंथन हो रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की जुगल जोड़ी जिस तरह के निर्णय लेने के लिए प्रसिद्ध है, उससे सीएम पद के दावेदारों की बेचैनी बढ़ी हुई है।
सूबे के जो राजनीतिक हालात हैं और विधानसभा में बहुमत के लिए एक-एक विधायक जब कांग्रेस और बीजेपी के लिए बेहद अहम बना हुआ है, ऐसे में नेता के चुनाव में विलंब से दावेदारों के साथ-साथ रणनीतिकारों की पेशानी पर भी बल पड़ रहे हैं।
उपचुनाव की चुनौती है सामने
मध्य प्रदेश विधानसभा में दो सीटें पहले से रिक्त थीं। 22 कांग्रेस विधायकों के इस्तीफ़े के बाद यह संख्या बढ़कर 24 हो चुकी है। साफ है कि आने वाली बीजेपी सरकार के सामने 24 सीटों पर उपचुनाव लड़ने की चुनौती होगी। कांग्रेस पूरा जोर लगायेगी कि उपचुनाव में ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतकर वह स्पष्ट बहुमत हासिल करे अथवा पुनः बड़े दल के रूप में उभरे। बीजेपी की भी यही कोशिश होगी।
संख्याबल में बीजेपी मजबूत
फिलहाल कुल 206 विधायकों के हिसाब से विधानसभा में बहुमत साबित होना है। कांग्रेस के पास 92 विधायक बचे हैं और बीजेपी के पास 107 विधायक हैं। कांग्रेस में जाने की जुगत में जुटे
विधायक नारायण त्रिपाठी कमलनाथ का त्यागपत्र होते ही शिवराज के घर पहुंच गये और बोले, ‘मैं बीजेपी में था, हूं और रहूंगा।’ कमलनाथ सरकार में मंत्री रहे निर्दलीय विधायक प्रदीप जायसवाल भी बीजेपी के साथ खड़े नजर आ रहे हैं। बसपा के दो और सपा का एक विधायक भी अब बीजेपी की ‘गोद’ में है। एक अन्य निर्दलीय विधायक सुरेंद्र सिंह शेरा भी पाला बदलकर बीजेपी के खेमे में आ गए हैं।
तमाम सियासी गहमा-गहमी के बीच सभी की निगाहें बीजेपी विधायक दल के नेता के चुनाव पर टिकी हैं। शिवराज को ‘चाहने वाले’ विधायकों की संख्या अधिक है। बावजूद इसके आलाकमान क्या फैसला लेगा? फिलहाल यह भविष्य के गर्भ में है।
केन्द्रीय मंत्री तोमर ने कहा है कि वह मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की दौड़ में नहीं हैं। तोमर के बयान के बावजूद शिवराज सिंह के चेहरे पर तनाव बना हुआ है। वैसा आत्मविश्वास अभी उनमें नजर नहीं आ रहा है, जैसा हुआ करता है। कमलनाथ सरकार को सत्ता से बाहर कर देने से उन्हें सुकून जरूर मिला है, लेकिन नेता के चुनाव में देरी से उनकी बेचैनी बढ़ी हुई है। शिवराज दिल्ली में हैं।
बीजेपी विधायक दल की बैठक 23 मार्च को आहूत की गई है। केंद्रीय मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान और वरिष्ठ नेता विनय सहस्त्रबुद्धे पर्यवेक्षक बनकर आ रहे हैं।
इसलिए मजबूत है शिवराज का दावा
शिवराज ने 13 साल मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री पद का निर्वहन किया है। जनता में उनकी सीधी पैठ है। मुख्यमंत्री रहते हुए बीसियों बार उन्होंने मध्य प्रदेश के चप्पे-चप्पे को छाना है। राज्य की जनता में वह बेहद लोकप्रिय चेहरा हैं। युवा वोटरों में मामा और महिला वर्ग में भाई के तौर पर उन्होंने खास जगह बना रखी है। सरलता और विनम्रता उनमें कूट-कूटकर भरी है। शिवराज मंत्री और विधायकों को साथ लेकर चलते रहे हैं और आसानी से सभी के लिए उपलब्ध रहते हैं। ये सारी बातें और 24 सीटों पर उपचुनाव, मुख्यमंत्री पद के लिए शिवराज का पलड़ा भारी किए हुए हैं।
जनता से संवाद में पीछे हैं तोमर
शिवराज जैसे तमाम गुण नरेंद्र सिंह तोमर में भी हैं। वह बेहद कुशल संगठक और अच्छे रणनीतिकार हैं। सभी को साथ लेकर चलते हैं। निर्विवाद हैं। प्रशासनिक क्षमता में भी वह शिवराज से कम नहीं हैं। तोमर को बीजेपी और विरोधी खेमे से आने वाले चेहरों को साधने में कोई कठिनाई नहीं आयेगी। लेकिन तोमर की एक कथित बड़ी कमी राज्य की जनता से सीधे संवाद के मामले में शिवराज से कोसों मील पीछे होना माना जा रहा है।
नरोत्तम पर दांव के आसार बेहद कम
मुख्यमंत्री पद की दौड़ में शामिल अन्य दावेदारों में पूर्व मंत्री नरोत्तम मिश्रा भी एक महत्वपूर्ण नाम हैं। कमलनाथ सरकार को सत्ता से बाहर करने के खेल में मिश्रा ने बेहद अहम भूमिका निभाई है। मिश्रा सीएम ‘रेस’ में हैं जरूर, लेकिन पार्टी उन पर दांव खेलेगी, इसके आसार बेहद कम हैं। असल में मिश्रा के कई प्लस प्वाइंट्स हैं तो माइनस प्वाइंट्स की भी कमी नहीं है। शिवराज सरकार में भ्रष्टाचार के कई गंभीर आरोप उन पर लगे। चुनाव के दौरान पेड न्यूज को लेकर एक केस भी उन पर चला। मामला दिल्ली की अदालत तक गया। लेकिन बाद में वह पेड न्यूज के आरोपों से बरी कर दिए गए।
कमलनाथ सरकार बनने के बाद ई-टेंडर घोटाले में मिश्रा को लपेटने के प्रयास हुए। नरोत्तम मिश्रा के कुछ स्टाफर तो इस मामले में सीखचों के पीछे भी धकेले गये। कई महीनों तक जेल में रहे। नाथ सरकार केस को ‘अंजाम’ तक पहुंचा पाती, इसके पहले ही वह चली गई।
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