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एमपीः भाजपा अब धर्मांतरण का मुद्दा क्यों खड़ा कर रही है?

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस (8 मार्च) पर मुख्यमंत्री मोहन यादव ने ऐलान किया है, ‘एमपी में बेटियों का धर्मांतरण कराने वाले दोषियों के लिए फांसी की सजा का प्रावधान किया जाएगा।’ मोहन यादव नाबालिगों से दुष्कर्म मामलों में एमपी में फांसी की सजा जैसा कानून लव जिहाद मामलों में लागू करने की मंशा जतला रहे हैं।
मुख्यमंत्री ने कहा है, ‘किसी भी हालत में अब न तो बेटियों का धर्मांतरण होगा, न दुराचरण चलेगा। सरकार का संकल्प है कि इनके साथ कठारेता से पेश आएंगे। खासकर छद्म नाम से बेटियों के साथ गलत काम करने वालों को बख्शा नहीं जाएगा।’
मध्य प्रदेश को राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की प्रयोगशाला के तौर पर देखा या माना जाता है। भारतीय जनता पार्टी की सरकारें राज्य में संघ के एजेंडा को लागू करती नजर आती रही हैं।
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मोहन यादव की पृष्ठभूमि संघ की है। उन्होंने मुख्यमंत्री पद संभालते ही खुले में मांस-मछली की बिक्री के साथ-साथ धार्मिक स्थलों पर ध्वनि विस्तारक यंत्रों के कोलाहल पर अंकुश का निर्णय लिया था। बीते सवा साल के अपने कार्यकाल में यादव ने स्वयं को सनातन और हिन्दुत्व के बड़े पैरोकार के तौर पर स्थापित करने संबंधी तमाम प्रयास किए हैं। भाजपा की प्रत्येक सरकार और उसके मुखिया जब इस दिशा में हर तरह का प्रयास कर रहे हैं, ऐसे में मोहन यादव भी स्वयं को हिन्दुत्व के बड़े पैरोकार के तौर पर स्थापित करने की अपनी मुहिम में जुटे हुए हैं।
मोहन यादव के ताजा एलान के बाद विरोधियों द्वारा सवाल यही खड़ा किया जा रहा है, ‘फांसी की सजा, रेयरेस्ट ऑफ दे रेयर मामलों में देने का प्रावधान है, ऐसे में धर्मांतरण के मामलों को साबित करने के बाद भी क्या वे (मोहन यादव) अपने मकसद में कामयाब हो सकेंगे?’
प्रेक्षकों का अभिमत है कि मोहन यादव ऐलान के माध्यम से हिन्दुत्व के पैरोकार वाली अपनी छवि को चमका रहे हैं। असल में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहते शिवराज सिंह चौहान ने नाबालिगों से दुष्कर्म के मुजरिमों को फांसी की सजा दिलाने का प्रावधान कानून में करने में सफलता पायी थी, लेकिन मप्र में नाबालिगों को फांसी की सजा तो छोड़िए, ऐसे मामलों में कमी लाने जैसा मकसद तक सफल नहीं हो सका है। मप्र रेप और नाबालिगों से दुष्कर्म के मामलों में देश में ऊपरी पायदान पर ही बना हुआ है।
मप्र में साल 2024 में धर्मांतरण के 400 के लगभग मामले सामने आये हैं। ये वो मामले हैं जो पुलिस फाइलों में दर्ज हुए हैं। हर दिन एक से ज्यादा धर्मांतरण का प्रकरण मप्र में हो रहा है, आंकड़े इस बात की तस्दीक कर रहे हैं। धर्मांतरण के ज्यादातर मामले पहचान बदलकर हिन्दू धर्म की युवतियों-किशोरियों को फंसाकर धर्म परिवर्तन कराने एवं शोषण करने से जुड़े हुए हैं।

योगी से आगे निकले यादव

धर्म परिवर्तन का अपराध साबित होने पर एक दर्जन के करीब सूबों में सजा का प्रावधान है। ऐसे सूबों में ओडिशा, अरुणाचल प्रदेश, गुजरात, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, झारखंड, हरियाणा, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश शामिल है।
उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश एवं कर्नाटक में सामान्य धर्मांतरण मामलों मे 1 से 5 सालों की सजा, गुजरात एवं झारखंड में 3 से 10 सालों तक एवं 50 हजार रुपयों के जुर्माने की सजा का प्रावधान है। जबकि उत्तर प्रदेश में तथ्यों को छिपाकर या डरा-धमकाकर धर्म परिवर्तन कराने पर उम्रकैद का प्रावधान है।
ऐसे ही महिला, नाबालिग एवं एससी/एसटी मामलों में उत्तराखंड, यूपी, हिमाचल, कर्नाटक में 2 से 10 सालों की सजा और 50 हजार रुपये के जुर्माने का प्रावधान है। ऐसे मामलों में गुजरात में 7 से 10 साल की सजा, एक लाख रुपये का जुर्माना तथा झारखंड में 4 साल की सजा और एक 1 लाख रुपये के जुर्माने का प्रावधान है।
मप्र का मौजूदा कानूनः मध्य प्रदेश में अभी धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम 1968 (2021 में इसे संशोधित किया गया था के बाद) जबरन धर्मांतरण पर 1 से 5 सालों की सजहा और 25 हजार रुपये के जुर्माने का प्रावधान है। नाबालिग, महिला, एससी एवं एसटी के मामलों में 2 से 10 सालों की सजा और 50 हजार रुपये के जुर्माने का प्रावधान है।
कोई यदि अपना धर्म छिपाकर विवाह करता है तो इस अधिनियम में ऐसे मुजरिम को 3 से 10 सालों की सजा और 50 हजार रुपयों का जुर्माना करने का प्रावधान है। विवाह के जरिए धर्मांतरण करने से पहले अनुमति लेना अनिवार्य है। ऐसा न करने पर विवाह अमान्य होगा। सामूहिक धर्मांतरण के मामलों में 5 से 10 सालों की सजा और 1 लाख रुपए जुर्माना तय है।
मप्र की सरकार धर्मांतरण मामलों में फांसी के प्रावधान को जोड़ने जा रही है। इसके लिए सरकार को केन्द्रीय गृह मंत्रालय से सहमति लेना होगी। राष्ट्रपति से अनुमोदन लेना पड़ेगा। सहमति मिलने पर ही इसे लागू किया जा सकेगा। अभी केन्द्र में भी ऐसा प्रावधान नहीं है। सभी अनुमतियां मिलने पर ही मप्र फांसी के कानून का प्रावधान कर सकेगा। अनुमति मिलीं तो जबरिया धर्मांतरण पर फांसी की सजा के प्रावधान वाला पहला सूबा होने का रिकार्ड भी उसके नाम दर्ज होगा।

वोट बटोरने वाला फैसलाः विवेक तन्खा

सुप्रीम कोर्ट के प्रख्यात वकील एवं राज्यसभा के कांग्रेस सांसद विवेक तन्खा ने कहा है, ‘सीएम का बयान हार्ड लाइनर वोटरों को खुश करने जैसा है।’ उन्होंने सवाल उठाते हुए आगे कहा है, ‘क्या संविधान और सुप्रीम कोर्ट ऐसे कानून को स्वीकार करेंगे? फांसी जघन्य हत्या के रेयरेस्ट ऑफ रेयर केसेज में संभव है। कितनी फांसी पिछले 10 वर्षों में हुई हैं, यह सरकार महिलाओं की सुरक्षा करने में असफल है।’
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क़मर वहीद नक़वी
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