मध्य प्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को 14 प्रतिशत आरक्षण मिलता है। यह ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण देने की मंडल कमीशन की सिफारिशों की तुलना में बहुत कम है। 2019 में कमलनाथ के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने आरक्षण बढ़ाकर 27 प्रतिशत किया, तो उस पर न्यायालय ने तत्काल रोक लगा दी। अब राज्य सरकार ने उच्च न्यायालय में जिलेवार आंकड़े पेश कर बताया है कि राज्य में 50 प्रतिशत से ज्यादा आबादी ओबीसी की है।
मध्य प्रदेश लोकसेवा आयोग की राज्य सेवा प्रारंभिक परीक्षा 2019 में ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण न दिए जाने को लेकर आरक्षित वर्ग के उम्मीदवारों ने जबलपुर उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी।
सरकार ने पेश किए आंकड़े
दैनिक भास्कर की एक खबर के मुताबिक़, इस याचिका पर सुनवाई के दौरान राज्य सरकार ने 2011 की जनगणना के मुताबिक़ जिलेवार ओबीसी के आंकड़े पेश किए हैं। इसके मुताबिक़ राज्य में ओबीसी की आबादी 50.09 प्रतिशत, अनुसूचित जनजाति (एसटी) की आबादी 21.1 प्रतिशत, अनुसूचित जाति (एससी) की आबादी 16.6 प्रतिशत और आरक्षण न पाने वाले लोगों की आबादी 13.27 प्रतिशत है।
अगर जाति की जनसंख्या के मुताबिक़ आरक्षण की स्थिति देखें तो मध्य प्रदेश में 50.09 प्रतिशत आबादी वाले ओबीसी को 14 प्रतिशत, 21.1 प्रतिशत एसटी को 20 प्रतिशत और 16.6 प्रतिशत ओबीसी को 16 प्रतिशत आरक्षण मिल रहा है। नरेंद्र मोदी सरकार ने 13.21 प्रतिशत सवर्णों के लिए भी आर्थिक आधार पर 10 प्रतिशत आरक्षण कर दिया है।
ओबीसी को सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में पर्याप्त प्रतिनिधित्व न होने की वजह से कमलनाथ सरकार ने 2019 में ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण दिए जाने को मंजूरी दे दी।
सरकार ने 24 जुलाई, 2019 को 27 प्रतिशत आरक्षण देने का विधेयक विधानसभा में पेश किया, जो सर्वसम्मति से पारित हो गया। इस विधेयक को तत्कालीन राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने मंजूरी भी दे दी। सरकार और विधानसभा के इस फैसले को याची आकांक्षा दुबे और अन्य ने उच्च न्यायालय जबलपुर में चुनौती दी। उनका कहना था कि यह इंदिरा साहनी मामले में न्यायालय के फैसले का उल्लंघन है, जिसमें 50 प्रतिशत से ऊपर सीटें आरक्षित न किए जाने का आदेश दिया गया है।
इस याचिका पर सुनवाई करने के बाद उच्च न्यायालय ने अंतरिम आदेश में आरक्षण पर रोक लगा दी। इसके बाद अलग-अलग विभागों के नियुक्तियों के कई मामलों में न्यायालय के फ़ैसले आए। कुल मिलाकर ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण देने का मामला अटक गया।
सवर्णों को 10 प्रतिशत आरक्षण
इस बीच केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने गैर आरक्षित तबके यानी सवर्णों के लिए आर्थिक आधार पर 10 प्रतिशत आरक्षण देने का फैसला किया। मध्य प्रदेश में भी यह आरक्षण लागू है। यह इंदिरा साहनी मामले में 50 प्रतिशत तक आरक्षण सीमित रखने के फैसले का उल्लंघन भी है, क्योंकि केंद्र व राज्यों में इस आरक्षण के लागू होने के बाद अमूमन आरक्षण 60 प्रतिशत के करीब हो गया है।
इसके बावजूद किसी उच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय ने मोदी सरकार के इस आरक्षण पर एक मिनट के लिए भी रोक नहीं लगाई और वह जारी है।
अब राज्य सरकार ने 2011 में हुई जनगणना के मुताबिक़ ओबीसी की संख्या साफ कर दी है। इसके मुताबिक़ भोपाल में ओबीसी की आबादी सबसे ज्यादा 63.14 प्रतिशत है और 61.69 प्रतिशत आबादी के साथ इंदौर दूसरे स्थान पर है। मंदसौर और नीमच में भी ओबीसी की आबादी 61 प्रतिशत से ऊपर है।
कुल मिलाकर ओबीसी की आबादी 50 प्रतिशत से ऊपर होने के बावजूद राज्य में 14 प्रतिशत आरक्षण ही ओबीसी के लिए है। वहीं राज्य सरकार के मुताबिक़ राज्य में सवर्णों यानी गैर आरक्षित तबक़े की आबादी 13.21 प्रतिशत है, उनके लिए भी राज्य में 10 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान कर दिया गया है।
हो रहा नुक़सान
आंकड़ों के मुताबिक़, ओबीसी को सबसे ज्यादा नुकसान हो रहा है। यह स्थिति सिर्फ मध्य प्रदेश की ही नहीं है। मंडल कमीशन की रिपोर्ट के मुताबिक़ देश भर में ओबीसी की आबादी 52 प्रतिशत है और उसे केंद्र सरकार व कुछ राज्य महज 27 प्रतिशत आरक्षण देते हैं। आरक्षण मिलने के बावजूद केंद्रीय विश्वविद्यालयों व तमाम सरकारी संस्थानों में ओबीसी की आबादी नगण्य है और उच्च पदों पर बमुश्किल 5 प्रतिशत ओबीसी हैं।
बीजेपी की विभिन्न सरकारों ने तरह-तरह के नियम लाकर ओबीसी को आरक्षण से वंचित किया है, जिसकी वजह से उन्हें सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में घुसने नहीं दिया जाता है।
प्रधानमंत्री मोदी भले ही खुद को चुनावी मंच से पिछड़ा घोषित करते हैं, लेकिन हकीकत यह है कि पिछड़ों के प्रतिनिधित्व को लेकर सरकार पूरी तरह खामोश है।
ओबीसी आरक्षण देने में आनाकानी
मेडिकल कॉलेज में प्रवेश के लिए नीट परीक्षा होती है। उसमें केंद्र की सीटों पर ओबीसी आरक्षण न होने की वजह से हर साल ओबीसी विद्यार्थियों को करीब 11,000 मेडिकल सीटों का नुकसान होता है। केंद्र सरकार ने इसमें गरीबी के आधार पर सवर्णों के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण दे दिया है, लेकिन वह ओबीसी आरक्षण देने को तैयार नहीं है।
इस मामले में तमिलनाडु की स्टालिन सरकार न्यायालय में गई और उसने नीट परीक्षा स्थगित करने की अपील की।
तमिलनाडु बीजेपी के महासचिव कारू नागराजन ने मद्रास उच्च न्यायालय में मुकदमा दर्ज कर बगैर ओबीसी आरक्षण के ही मेडिकल एडमिशन टेस्ट कराने की अपील कर दी।
दिलचस्प यह है कि ओबीसी तबका आरक्षण को लेकर मुखर नहीं है। यह इस तबके का पिछड़ापन ही है कि उसे नहीं पता कि प्रशासनिक नौकरियों, विश्वविद्यालयों की नौकरियों सहित आईआईटी, आईआईएम और मेडिकल कॉलेजों में ओबीसी नगण्य हैं।
ओबीसी तबके की तरफ से मांग न उठने के कारण राजनेता भी मुखर होकर ओबीसी के पक्ष में नहीं आते हैं। भारतीय समाज का एक बड़ा तबका तमाम धांधलियों के कारण उच्च पदों और बेहतर शिक्षा से वंचित है, जिसकी आबादी 50 प्रतिशत से ऊपर है।
अपनी राय बतायें