मध्य प्रदेश विधानसभा चुनावों के लिए 39 उम्मीदवारों की दूसरी सूची भाजपा ने जारी की। इस सूची में मोदी काबीना के तीन सदस्यों सहित मध्य प्रदेश कुल 7 लोकसभा सदस्यों को विधानसभा चुनाव का उम्मीदवार घोषित किया गया है। जाहिर सी बात है कि यह सूची पीएम मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के अनुमोदन के बाद ही जारी की गई है। लेकिन इस सूची ने मध्य प्रदेश में भारी राजनीतिक फेरबदल के संकेत दे दिए हैं। बात सीधी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की कुर्सी तक आ पहुंची है। यह लिस्ट बताती है कि चुनाव के बाद अगर भाजपा सत्ता में लौटती है तो शिवराज सिंह ठिकाने लगा दिए जाएंगे यानी अगली बार मुख्यमंत्री नहीं बनाया जाएगा।
मध्य प्रदेश में भाजपा की हालत खस्ता है, यह बात स्वयं भाजपा के आंतरिक सर्वे में सामने आयी है। मीडिया रिपोर्ट और सर्वे भी राज्य से भाजपा की सरकार के सफाये के संकेत दे रहे हैं।
बीजेपी की दूसरी लिस्ट में जिन 39 उम्मीदवारों का ऐलान किया गया है, उनमें केन्द्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, प्रह्लाद पटेल और फग्गन सिंह कुलस्ते के नाम हैं। तोमर मुरैना, पटेल दमोह और कुलस्ते मंडला से पार्टी के सांसद हैं। तीन केन्द्रीय मंत्रियों के अलावा बीजेपी ने सीधी से सांसद रीति पाठक, सतना से सांसद गणेश सिंह, नर्मदापुरम (लोकसभा 2019 के चुनाव में सीट का नाम होशंगाबाद था) से सांसद उदय प्रताप सिंह और जबलपुर से सांसद राकेश सिंह को टिकट दिया है।
पहली सूची में भी 39 प्रत्याशियों के नाम थे। पहली सूची में वह सीटें थीं जो भाजपा जीत पाने में असफल हुआ करती है। यानी एक भी सीट 2018 में उसे मिली नहीं थी। भाजपा की 39 उम्मीदवारों की दूसरी सूची में भी 35 सीटें 2018 के चुनाव में कांग्रेस के ही पास थीं। कुल 4 सीटें भाजपा के खाते में आयीं थीं। चार सीटों में आगर मालवा सीट पर भाजपा के लिए जीत दर्ज करने वाले विधायक मनोहर ऊंटवाल का 2020 में निधन हो गया था। भाजपा ने अपनी दूसरी सूची में जो उम्मीदवार घोषित किये हैं, उनमें तीन विधायकों के टिकिट काटे गये हैं। जो तीन टिकट कटे हैं, उनमें नरसिंहपुर से जालम सिंह पटेल की जगह प्रह्लाद पटेल, मैहर से नारायण त्रिपाठी के स्थान पर श्रीकांत चतुर्वेदी और सीधी से मौजूदा विधायक केदारनाथ शुक्ला की जगह रीति पाठक को टिकट दिया गया है।
प्रेक्षकों का कहना है कि ‘भाजपा ने तीन केन्द्रीय मंत्रियों सहित कुल 7 सांसदों को सोची-समझी रणनीति के तहत चुनाव मैदान में उतारा है। संभवतया वह मानकर चल रही है कि पर्याप्त वक्त है, लिहाज़ा लोकसभा के 2024 के चुनाव में मध्य प्रदेश में नतीजा 2019 के माफिक करने की जुगत लगाई जा सकती है।’
शिव ‘राज’ का क्या होगाः मध्य प्रदेश भाजपा की दूसरी सूची ने स्पष्ट कर दिया है कि 2023 में मोदी-शाह की जोड़ी के प्रयोग ‘कामयाब’ हो जाते हैं तो पांचवीं बार मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान कदापि नहीं होंगे। वैसे भी अमित शाह पत्रकारों के सवालों के जवाब में भोपाल में संकेत दे चुके हैं कि मुख्यमंत्री पद को लेकर पार्टी को आगे क्या करना है? शाह ने कहा था कि इसकी चिंता पत्रकार न करें, सही समय आने पर बीजेपी अपने निर्णय से मीडिया को अवगत करा देगी।
ऐसा कहना ग़लत नहीं होगा कि सात सांसदों को उतारकर बीजेपी के क्षत्रपों ने साफ कर दिया है, ‘मध्य प्रदेश में शिवराज का युग समाप्ति के क़रीब है।’
तो फिर शिवराज का क्या होगा? इश सवाल के कई जवाब हैं। इन जवाबों में पहली संभावना है, ‘शिवराज फिलहाल मध्य प्रदेश में पार्टी प्रत्याशियों को पूरी ताक़त के साथ चुनाव लड़ायेंगे, शायद बुदनी विधानसभा (उनकी पारंपरिक सीट से) उम्मीदवार कोई और होगा।’ दूसरी संभावना है, ‘पार्टी, शिवराज का इस्तेमाल अब केन्द्र की राजनीति में कर सकती है। उनका उपयोग, संगठन में होगा या केन्द्र की सत्ता में? यह आने वाला वक्त स्पष्ट करेगा।’
कांग्रेस में भी मुश्किलें कम नहींः मध्य प्रदेश कांग्रेस जनआक्रोश यात्रा निकाल रही है। अलग-अलग नेताओं को यात्रा की जिम्मेदारियां दी गई हैं। यात्रा में आये दिन टिकट के दावेदार और कबीलों में बंटी कांग्रेस के महत्वाकांक्षी नेताओं के विवाद सामने आ रहे हैं। एक-दूसरे को नीचा दिखाने का अवसर छोड़ने और एकजुट हो जाने के लिए नेता-कार्यकर्ता तैयार नहीं है।
ज्योतिरादित्य नहीं, लेकिन घर वापसी से बेचैनी
मध्य प्रदेश के 2018 के चुनाव तक कमल नाथ और दिग्विजय सिंह गुट के अलावा ज्योतिरादित्य सिंधिया बेहद प्रभावी गुट था। उनके जाने से ग्वालियर-चंबल सहित अन्य उन इलाकों के दूसरी एवं तीसरी पंक्ति के नेताओं ने राहत की सांस ली थी जो सिंधिया के छाते के नीचे अपना खोमचा लगा नहीं पाते थे। सिंधिया आज कांग्रेस में नहीं हैं, लेकिन उनके समर्थकों की घर वापसी ने खोमचा लगा लेने अथवा लगाने को तैयार नेताओं का गणित गड़बड़ाना आरंभ कर दिया है। टिकटों की आस और उम्मीद ने फिलहाल ऐसे महत्वाकांक्षी नेताओं को ‘अनुशासन’ में बांधा हुआ है। यह तय है कांग्रेस जब अपने उम्मीदवारों का ऐलान करेगी तो ‘एकजुट’ नजर आ रही कांग्रेस में भी कुछ वैसे ही नज़ारे पेश आयेंगे जो बीजेपी में दिखलाई पड़ रहे हैं।
क्या कहते हैं पिछले आंकड़े
वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में राज्य की कुल 230 सीटों में भाजपा ने 121 सीटें गवाईं थीं और सत्ता से बाहर हो गई थी। मगर 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा और मोदी का जादू राज्य के वोटरों के सिर चढ़कर बोला था। कुल 29 सीटों में 28 पर जीत दर्ज कर भाजपा ने इतिहास रच दिया था। दिलचस्प आंकड़ा यह भी रहा था कि कुल 29 लोकसभा सीटों के विधानसभावार चुनाव नतीजों में 205 पर भाजपा ने जीत दर्ज की थी।प्रेक्षकों का मानना है कि ‘भाजपा ने तीन केन्द्रीय मंत्रियों सहित कुल 7 सांसदों को सोची-समझी रणनीति के तहत चुनाव मैदान में उतारा है। संभवतया वह मानकर चल रही है कि पर्याप्त वक्त है, लिहाज़ा लोकसभा के 2024 के चुनाव में मध्य प्रदेश में नतीजा 2019 के माफिक करने की जुगत लगाई जा सकती है।’ प्रेक्षकों का सोच दमदार है। दरअसल विधानसभा चुनावों में 60-65 दिन ही बचे हैं। मैदानी हकीकत के मद्देनज़र मध्य प्रदेश की सरकार में वापसी के लिए ऐसा दांव जरूरी है। सबकुछ रणनीति के अनुसार रहा और सरकार बनाने में सफलता मिल गई तो कई विकल्प भाजपा के पास हो जायेंगे।
मसलन, मौजूदा सांसद यदि विधायक का चुनाव जीत जाता है तो उसे आवश्यकता एवं परिस्थितयों के अनुसार विधानसभा में बनाये रखने और नये चेहरे को उतारने का अवसर होगा। यदि मौजूदा सांसद ही अपरिहार्य हुआ तो विधानसभा से त्यागपत्र दिलाकर या विधानसभा में रहते हुए लोकसभा चुनाव लड़ा लेने का प्रयोग कर डालेंगे, वगैरह-वगैरह। सचमुच, भाजपा के रणनीतिकारों ने जो दांव खेला है, उसने कांग्रेस खेमे की चिंता बढ़ा दी है। विधानसभा में एक-एक सीट महत्वपूर्ण है। भाजपा में जबरदस्त अंतर्कलह है तो कांग्रेस में भी विवादों की कमी नहीं है।
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