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एमपी विधानसभा चुनावः सप्तऋषियों को दांव पर लगाने की विवशता 

मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव भाजपा के लिए सचमुच 2018 के चुनावों की ही तरह एक गंभीर चुनौती हैं, इस बात का प्रमाण भाजपा द्वारा जारी प्रत्याशियों की दूसरी सूची से प्रमाणित हो गयी है। एक तो भाजपा नेतृत्व को दूसरी सूची जारी करने में पूरे दो महीने लग गए और जब सूची आयी भी तो उसने किसी को चौंकाया नहीं क्योंकि सबको पता था कि भाजपा इस बार चुनावी मैदान मारने के लिए अपने तमाम वर्तमान सांसदों को भी मैदान में उतारेगी। इस बात में चौंकाने वाली बाते सिर्फ इतनी है कि भाजपा को अपने अनेक केंद्रीय मंत्री तक दांव पर लगाना पड़े हैं। 

जिन सांसदों को पहली सूची में विधानसभा चुनाव के लिए प्रत्याशी बनाया गया है उन्हें भाजपा का ' सप्तऋषि ' कहा जाता है। किसी भी राजनितिक दल द्वारा अपने वर्तमान सांसदों को विधानसभा चुनावों में उतारना कोई नया प्रयोग नहीं है किन्तु जिन हालात में भाजपा को ये सब करना पड़ा है उसे समझा जा सकता है। भाजपा की मप्र इकाई में इस समय भयानक असंतोष और बिखराव है, ऐसे में सांसदों का इस्तेमाल भाजपा नेतृत्व की विवशता कही जा सकती है। मध्यप्रदेश में जिन 07 सांसदों को मोर्चे पर भेजा गया है उनमने से एक केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और पार्टी के राष्ट्रीय महामंत्री कैलाश विजयवर्गीय एक जमाने में भाजपा की शिवराज सिंह चौहान के ' संकटमोचक ' माने जाते थे। पार्टी में जब-जब संकट आया इन दोनों ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की आगे बढ़कर मदद की थी। 

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मजे की एक बात ये भी है कि जिन सांसदों को विधानसभा चुनाव के लिए प्रत्याशी बनाया गया है उनमने से नरेंद्र सिंह तोमर, कैलाश विजयवर्गीय, प्रह्लाद पटेल और फग्गन सिंह कुलस्ते का नाम अनेक बार शिवराज सिंह चौहान के विकल्प के रूप में भी उछला किन्तु इन चारों के भाग्य में शायद मुख्यमंत्री बनना लिखा नहीं था सो हर बार फैसला टल गया और शिवराज सिंह चौहान साफ़ बच गए। केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर मुरैना जिले की सबसे आसान माने जाने वाली दिमनी सीट से प्रत्याशी बनाये गए है। ये पहले सुरक्षित सीट थी और लम्बे समय तक भाजपा के कब्जे में रही । बाद में इस सीट से बसपा और कांग्रेस भी जीती। 

कैलाश विजयवर्गीय को भी इंदौर -1 सीट से प्रत्याशी बनाया गया है, उनके लिए भी ये सीट जीतना आसान काम है । इन दोनों नेताओं को शायद ये आसान सीटें इसलिए दी गयीं ताकि ये दोनों पूरे प्रदेश में चुनाव प्रचार के लिए समय दे सके । तोमर तो प्रदेश भाजपा चुनाव अभियान समिति के प्रमुख भी हैं। वे लम्बे समय से प्रदेश की राजनीति में लौटने के लिए व्याकुल भी थे । कैलाश विजयवर्गीय की भी कमोवेश यही स्थिति है। केंद्रीय मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल के भाई जालम सिंह पटेल का टिकट काट दिया गया है। उनकी जगह पर पार्टी ने उन्हें नरसिंहपुर से टिकट दिया है। यहां वंशवाद आड़े नहीं आया।

इसके साथ ही केंद्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते को भी भाजपा ने टिकट दिया है। वह निवास सुरक्षित सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। जबलपुर से सांसद राकेश सिंह को भी पार्टी विधानसभा चुनाव लड़ा रही है। राकेश सिंह को जबलपुर पश्चिम सीट से टिकट दिया गया है।सासंद रीती पाठक को सीधी से पार्टी ने टिकट दिया है। सतना सांसद गणेश सिंह को बीजेपी ने सतना से ही टिकट दिया है। इसके साथ ही होशंगाबाद से सांसद उदय प्रताप सिंह को पार्टी गाडरवारा विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा रही है। उनके नाम की घोषणा कर दी गई है। 

भाजपा प्रत्याशियों की पहली सूची में 39 प्रत्याशी घोषित किये गए था । ये सभी वे सीटें थीं जो भाजपा पिछले विधानसभा चुनावों में हार गयी थी । इन प्रत्याशियों की घोषणा के बाद जो गर्द-गुबार पार्टी के भीतर उठना था वो उठकर शांत हो चुका है। दूसरी सूची तैयार करने में भाजपा को पसीना आ गया और पूरे दो महीने लगे। दूसरी सूची में सबसे ज्यादा चौंकाने वाली बाते ये है कि इसमें सबसे ज्यादा असंतुष्ट पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती का नाम दूर-दूर तक नहीं है । उनके विकल्प के रूप में प्रह्लाद पटेल को आगे लाया गया है। पार्टी के इस फैसले से जाहिर है की अब उसे उमा भारती की न जरूरत है और न कोई परवाह। उमा भारती अपनी ही सरकार के खिलाफ खड़ी होती रहीं है। पहले उनका विरोध शिवराज सिंह सरकार के विरोध तक सीमित था किन्तु अब नारी शक्ति वंदन विधेयक में पिछड़ों को आरक्षण की मांग को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ भी मोर्चा खोल दिया है। उमा भारती को इसकी सजा फौरन मिल भी गयी है। भाजपा ने उमा भारती को शून्य करने के लिए पिछले महीने ही उनके भतीजे को उनकी सहमति के बिना प्रदेश मंत्रिमंडल में शामिल कर लिया था। पार्टी ने इतनी कृपा जरूर की की पिछोर सीट से उनके धर्म भाई प्रीतम लोधी को विधानसभा का टिकट दे दिय। उमा जी अपने कम से कम दो दर्जन समर्थकों के लिए टिकिट मांग रहीं थी।

दूसरी सूची में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का नाम भी न आना चौंकाने वाला समझा जा रहा है। अन्यथा उनका नाम बुधनी से घोषित करने में कोई तकनीकी बाधा है ही नहीं। शिवराज सिंह इस सीट से ही प्रदेश की राजनीति में आये थे। लेकिन भाजपा कोई बात भाजपा ही जाने। भाजपा प्रत्याशियों की दूसरी सूची में केंद्रीय मंत्री और भाजपा की महाराज इकाई के प्रमुख ज्योतिरादित्य सिंधिया की समर्थक पूर्व मंत्री इमरती देवी का टिकट चौंकाने वाला जरूर है । वे कांग्रेस से भाजपा में शामिल होने के बाद हुए उप चुनाव में हार गयीं थीं, भाजपा की स्थानीय इकाई भी इमरती के खिलाफ थी किन्तु सिंधिया अपने नवरत्नों में से एक इमरती के लिए टिकिट पाने में कामयाब रहे ।  

उन्होंने अपने एक और समर्थक मोहन सिंह राठौर को भी भितरवार सीट से टिकिट दिलवा दिया। हालांकि इस सीट पर भाजपा के ही अनेक खांटी नेताओं की नजर थी । राठौर एक कमजोर प्रत्याशी हैं। सिंधिया की इस कामयाबी के अलावा उन्हें तोमर, पटेल और विजयवर्गीय की तरह विधानसभा के मैदान में न उतारकर भी भाजपा नेतृत्व ने संकेत दे दिया है कि वे केंद्रीय राजनीति के पात्र हैं। उनका मध्यप्रदेश की राजनीति में उतना ही दखल रहेगा जितना की एक केंद्रीय मंत्री का होना चाहिए। आपको याद होगा कि 2018 में मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 230 सदस्यीय विधानसभा में बहुमत से दो कम 114 सीटें मिलीं थीं। वहीं, बीजेपी के खाते में 109 सीटें आई थीं, वहीं बसपा को दो जबकि अन्य को पांच सीटें मिली थीं। तब कांग्रेस ने बसपा, सपा और अन्य का साथ लेकर सरकार बनाई थी और 15 साल बाद राज्य में सत्ता पाई कमलनाथ ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। दिसंबर 2018 से मार्च 2020 तक कांग्रेस की सरकार चली। लेकिन 15 महीने पूरे होते-होते कमलनाथ सरकार की सत्ता से विदाई तय हो गई और ज्योतिरादित्य सिंधिया की अगुवाई में में कांग्रेस के दो दर्जन विधायक भाजपा के साथ हो गए और फिर बीजेपी ने सत्ता में वापसी की। शिवराज सिंह चौहान फिर मुख्यमंत्री बन गए थे ।

 भाजपा की दूसरी सूची के बाद जो तीसरी सूची आएगी उसमें अनेक मौजूदा मंत्रियों के नाम काटने की आशंका जताई जा रही है । इसीलिए शायद उन सीटों पर प्रत्याशियों की घोषणा अब तक नहीं की गयी है। पिछले दिनों भोपाल में भाजपा के महाकुम्भ में प्रधानमंत्री मोदी की मुद्रा से ये अनुमान लगाया जा रहा है कि वे मुख्यमंत्री शिवराज की कार्यशैली से शायद खुश नहीं है। उन्होंने इतनी बड़ी रैली में न शिवराज सिंह चौहान का नाम लिया और न उन्हें अगली बार के मुख्यमंत्री के रूप में प्रस्तुत किया। बहरहाल ये प्रधानमंत्री की अपनी अदा है । उनके मन की बात सिर्फ वे ही जानते हैं। तीसरी सूची में अनेक वर्तमान सांसदों कि जगह उनके परिजनों को चुनाव मैदान में मौक़ा दिया जा सकता है। 

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अब तक आयी दोनों सूचियों की एक ख़ास बात ये है कि अभी तक भाजपा के नेताओं की दूसरी पीढ़ी यानि उनके बाल-बच्चों को विधानसभा के लिए प्रत्याशी नहीं बनाया गया है जबकि केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, ज्योतिरादित्य सिंधिया, पूर्व संसद प्रभात झा, पूर्व मंत्री माया सिंह, पूर्व मंत्री यशोधरा राजे, सांसद विवेक शेजवलकर, खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जैसे तमाम नेता अपने-आपने बेटे-बेटियों के लिए विधानसभा चुनाव का टिकट चाहते हैं और खुद पीछे हटने के लिए तैयार हैं किन्तु उनके प्रस्तावों पर पार्टी ने अभी तक कोई फैसला नहीं किया है। 

(राकेश अचल के फ़ेसबुक पेज से) 

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क़मर वहीद नक़वी
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