सवर्ण आरक्षण मोदी सरकार के लिए एक बड़ी मुसीबत बनने जा रहा है। पिछड़े तबके के नेता और राजनीतिक दल इस पर बड़े आंदोलन की तैयारी कर रहे हैं। राष्ट्रीय जनता दल ने पिछड़ों के लिए 50% आरक्षण की माँग की है। वह अब इस मसले पर बिहार के गाँव-गाँव में आंदोलन की तैयारी कर रही है। आरजेडी नेता और लालू यादव के पुत्र तेजस्वी यादव ने ऐलान किया है कि पार्टी ‘बेरोज़गारी हटाओ और आरक्षण बढ़ाओ’ का नारा लेकर बिहार के कोने-कोने में जायेगी। तेजस्वी का आरोप है कि सवर्णों को बिना माँगे आरक्षण दे दिया गया और आनन-फ़ानन में संसद के दोनों सदनों से पास भी हो गया, जबकि पिछड़ों की माँग पर मोदी सरकार के कान पर जूँ भी नहीं रेंग रही है। तेजस्वी ने ट्विटर पर लिखा है, ‘देश के बहुजन वर्षों से 50% आरक्षण की सीलिंग बढ़ाने की माँग कर रहे थे लेकिन अन्यायी जातिवादियों ने नहीं बढ़ाया और न ही बढ़ने दिया लेकिन सवर्ण आरक्षण बिन माँगे चंद घंटों में दे दिया। नागपुरिये जातिवादियों को आपके वोट से डर नहीं लगता। समझिये यह आरक्षण समाप्ति की शुरुआत है।’
तेजस्वी की नाराज़गी इस बात पर है कि बिना किसी भी तैयारी के सवर्ण आरक्षण को लागू कर दिया गया है। तेजस्वी मानते हैं कि सवर्ण आरक्षण एक बड़ी साज़िश का हिस्सा है। और यह सब दलितों, पिछड़ों और आदिवासियों को सामाजिक न्याय के नाम पर जो आरक्षण दिया गया है, उसको ख़त्म करने की दिशा में उठाया गया एक क़दम है।
- तेजस्वी लिखते हैं, ‘हम सवर्ण आरक्षण लागू करने के तरीक़े का विरोध कर रहे हैं। बिना किसी पद्धति, जाँच, आयोग, सर्वे और सर्वेक्षण के इन्होंने मात्र चंद घंटों में संविधान से छेड़छाड़ कर संशोधन कर दिया। जातिवादी मोदी सरकार द्वारा जल्जबाज़ी में लागू किये गये इस आरक्षण का हश्र नोटबंदी जैसा होगा।’
हिंदू समाज में दलितों-पिछड़ों के साथ सदियों से सौतेला बर्ताव किया गया है। दलितों को अछूत माना गया और उनके साथ जानवरों से भी बदतर व्यवहार किया जाता रहा है। बाबा साहेब आंबेडकर ने इसी वजह से कहा था कि वह पैदा तो हिंदू हुए हैं, लेकिन हिंदू मरेंगे नहीं। उन्होंने जीवन के अंतिम दिनों में बौद्ध धर्म अपना लिया था।
एससी-एसटी के पैरोकार
आंबेडकर आज़ादी के बाद संविधान निर्माण की ड्राफ़्ट कमेटी के चेयरमैन थे। उनका कहना था कि संविधान के तहत दलितों को बराबरी और समता का अधिकार तो मिला लेकिन बंधुत्व का व्यवहार नहीं मिलता। क़ानून के सामने सब बराबर होने के बाद भी दलितों को नीची नज़र से देखा जाता है और उनके साथ अछूत जैसा बर्ताव किया जाता है। लिहाज़ा सही मायने में सामाजिक समता लाने के लिये दलितों को विशेष सुविधा देकर उन्हें समाज की मुख्यधारा में लाने का काम होना चाहिए। इस वजह से संविधान सभा ने दलितों को दस साल तक नौकरियों और शिक्षा में आदिवासी तबक़े के साथ 22.5% आरक्षण का प्रावधान किया। आंबेडकर के बाद पिछड़ों के नेता राममनोहर लोहिया ने पिछड़ों को भी आरक्षण देने की माँग की। उनका नारा था ‘सैकड़े में साठ’ यानी पिछड़ों को आबादी में उनकी हिस्सेदारी के हिसाब से साठ फ़ीसदी आरक्षण मिलना चाहिए।
पिछड़ों के आरक्षण पर हंगामा
लोहिया पिछड़ों की राजनीति के मौलिक पैरोकार थे। पिछड़ों को आरक्षण के मसले पर बनी काका कालेलकर कमेटी ने पिछड़ों को 50% आरक्षण देने की सिफ़ारिश की। काका की रिपोर्ट को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। 1977 में जनता पार्टी की सरकार बनने के बाद बी. पी. मंडल की अध्यक्षता में एक और कमेटी बनी। इस कमेटी ने पिछड़ों को 27% आरक्षण देने की वकालत की। लगभग एक दशक तक इस सिफ़ारिश को तवज्जों नहीं दी गयी, पर 1990 में वी. पी. सिंह ने मंडल कमीशन की सिफ़ारिश को लागू कर पिछड़ों को नौकरियों और शिक्षा में 27% आरक्षण दे दिया। जिसपर काफ़ी हंगामा हुआ। हालाँकि आरक्षण बना रहा।
- तेजस्वी यादव के पिता लालू यादव ने मंडल की राजनीति जमकर की और पिछड़ों को अपने साथ गोलबंद कर पंद्रह साल सरकार चलायी। इस वक़्त वह भ्रष्टाचार के आरोप में जेल में हैं। पार्टी की कमान बेटे तेजस्वी के हाथ में है। तेजस्वी लिखते हैं, ‘अब आर पार की लड़ाई होगी। निजी क्षेत्र में भी आरक्षण लागू करना होगा। आरक्षण बढ़ाकर 90% करना होगा।’
तेजस्वी इशारों-इशारों में यह आरोप भी लगाते हैं कि सवर्ण जातियाँ दलितों-पिछड़ों को आगे नहीं बढ़ने देतीं और नौकरियों और उन्होंने शिक्षण संस्थानों पर क़ब्ज़ा कर रखा है।
- ‘सत्य हिंदी’ ने गुरुवार को एक रिपोर्ट छापी थी। जिसमें दिल्ली विश्वविद्यालय के एक प्रफ़ेसर सूरज यादव ने उच्च शिक्षण संस्थानों में आरक्षण लागू करने में जो कोताही बरती गयी है उसका विवरण दिया है। उनके आँकड़े हैरतअंगेज़ हैं। और वह इस ओर इशारा कर रहे हैं कि कहीं न कहीं यह कोशिश रही है कि दलितों, पिछड़ों और आदिवासियों को उनके हक़ के अनुसार सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में जगह न मिले। उनके आँकड़े बताते हैं कि स्थिति बहुत निराशाजनक है और तकलीफ़देह भी।
जेल जाएँ या गोली लगे, लड़ेंगे : तेजस्वी
तेजस्वी यादव और उनकी पार्टी बिहार में इस वक़्त विपक्ष में हैं। पिता लालू यादव जेल में हैं और परिवार के कई सदस्यों के ख़िलाफ़ आयकर विभाग, प्रवर्तन निदेशालय और सीबीआई की जाँच चल रही है। उनको लगता है कि मोदी सरकार जान-बूझकर उनके परिवार को फँसा रही है। लिहाज़ा वह लंबी लड़ाई के मूड में हैं। वह लिखते हैं, ‘हमने लड़ाई की ठान ली है।अब चाहे जेल जाएँ या गोली लगे। लड़ेंगे।’ उधर ऐसा ही कुछ रुख़ समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव का भी है। उनके पिता मुलायम सिंह यादव भी लोहिया के समर्थक रहे हैं। और उन्होंने मंडल कमीशन के बाद जम कर पिछड़ों की राजनीति की है। अखिलेश का कहना है कि आरक्षण की सीमा को 50% से बढ़ाकर 69% किया जाना चाहिए।
तेजस्वी और अखिलेश यादव युवा नेता हैं। दोनों को यह साबित करना है कि वह अपने पिता की विरासत के सही हक़दार हैं। मोदी सरकार इन दोनों नेताओं की माँगों को हल्के में नहीं ले सकती। ख़ासतौर से तेजस्वी यादव के तेवर काफ़ी तीखे हैं।
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