दलितों, पिछड़ों और आदिवासियों के साथ कब तक अन्याय होता रहेगा? कब उनके साथ सही में इंसाफ़ होगा? कब यह बहस ख़त्म होगी कि मेरिट सिर्फ़ ऊँची जातियों में ही होती है? कब सामाजिक असमानता का दौर ख़त्म होगा? कब उनकी हज़ारों साल की यंत्रणा सही में दूर होगी? इस ऐतिहासिक यंत्रणा और पिछड़ेपन को दूर करने के लिए ही संविधान में दलितों, आदिवासियों को सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में आरक्षण की बात संविधान सभा में की गई थी। लेकिन ऐसा लगता है कि देश में ऐसी व्यवस्था बन गई है कि तमाम कोशिशों के बाद भी उनको पूरा आरक्षण नहीं मिल पाता।