दलितों, पिछड़ों और आदिवासियों के साथ कब तक अन्याय होता रहेगा? कब उनके साथ सही में इंसाफ़ होगा? कब यह बहस ख़त्म होगी कि मेरिट सिर्फ़ ऊँची जातियों में ही होती है? कब सामाजिक असमानता का दौर ख़त्म होगा? कब उनकी हज़ारों साल की यंत्रणा सही में दूर होगी? इस ऐतिहासिक यंत्रणा और पिछड़ेपन को दूर करने के लिए ही संविधान में दलितों, आदिवासियों को सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में आरक्षण की बात संविधान सभा में की गई थी। लेकिन ऐसा लगता है कि देश में ऐसी व्यवस्था बन गई है कि तमाम कोशिशों के बाद भी उनको पूरा आरक्षण नहीं मिल पाता।

क्या यह नाइंसाफ़ी मज़बूत सवर्ण जातियों के ख़िलाफ़ की जा सकती है? वी. पी. सिंह ने मंडल कमीशन लागू कर सवर्णों के हिस्से की 27% सीटें पिछड़ों को दी थी। पूरे देश में आग लग गई थी। देश भर में ख़ुद को जलाने का दौर शुरू हो गया था। ख़ुद वी. पी. सिंह का राजनीतिक करियर ख़त्म हो गया।
पत्रकारिता में एक लंबी पारी और राजनीति में 20-20 खेलने के बाद आशुतोष पिछले दिनों पत्रकारिता में लौट आए हैं। समाचार पत्रों में लिखी उनकी टिप्पणियाँ 'मुखौटे का राजधर्म' नामक संग्रह से प्रकाशित हो चुका है। उनकी अन्य प्रकाशित पुस्तकों में अन्ना आंदोलन पर भी लिखी एक किताब भी है।