'जान को ख़तरा'
शुजा का कहना है कि उसकी जान को भी ख़तरा है और कुछ दिनों पहले उस पर भी हमला हुआ था। उसने यहाँ तक कहा है ईवीएम की धाँधली का राज़ सामने न आए इसलिये उसकी टीम के कई सदस्यों को मार दिया गया। शुजा ने यह भी कहा है कि 2015 में दिल्ली विधानसभा के चुनाव में भी बीजेपी ने धाँधली करने की योजना बनाई थी पर उसकी टीम ने ऐसा होने नहीं दिया और उलटे आम आदमी पार्टी के लिए चुनाव में गड़बड़ी की। फिर उसने कहा कि 'ब्रेक्सिट' के लिए हुए जनमत संग्रह में भी धाँधली की गई थी। यूरोपीय संघ से ब्रिटेन के बाहर निकलने को ही 'ब्रेक्सिट' कहा जाता है।राजनीतिक भूचाल
शुजा की बातें काफी हद तक हास्यास्पद लगती है और उसकी बातों पर सहज ही यक़ीन नहीं किया जा सकता है। लेकिन उसके झूठे-सही दावों के बाद देश की राजनीति में भूचाल ज़रूर आ गया है। चुनाव आयोग ने शुजा के दावों को बकवास क़रार दिया और कहा कि वह उसके खिलाफ क़ानूनी कार्रवाई करेगा। न्यूयॉर्क में अपना इलाज करा रहे वित्त मंत्री अरुण जेटली काफी गुस्से में है। उन्होंने पूरे मामले को कांग्रेस पार्टी का पागलपन बताया है। शुजा की प्रेस कांफ्रेंस में कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल मौजूद थे।
बीजेपी ने कांग्रेस पर आरोप लगाया कि शुजा की प्रेस कांफ्रेस के पीछे कांग्रेस का दिमाग है, सिब्बल को राहुल और सोनिया गांधी ने भेजा है, कांग्रेस ने ऐसा कर देश के नाम पर बट्टा लगाया है।
ईवीएम में गड़बड़ी मुमकिन नहीं?
ईवीएम धाँधली पर चुनाव आयोग का साफ़ कहना है कि इन मशीनों में गड़बड़ी नहीं की जा सकती है। हाल के दिनों में ईवीएम पर सबसे पहले गंभीर आरोप पंजाब विधानसभा चुनावों में बुरी हार के बाद आम आदमी पार्टी ने लगाए थे। बाद में पार्टी के प्रवक्ता सौरभ भारद्वाज ने विधानसभा में ईवीएम मशीन को हैक कर के दिखाया था। उनका दावा था कि वह किसी भी ईवीएम के मदर बोर्ड को तीस सेकेंड में बदल कर किसी भी पार्टी के पक्ष में वोट डलवा सकते हैं। चुनाव आयोग ने तब भी 'आप' के दावों को खारिज कर दिया था। इसके बदले में उसने जून 2017 में सारे राजनीतिक दलों को चुनौती दी कि वो उसके द्वारा आयोजित किये गये 'हैकाथन' में शामिल हो और मशीन में धाँधली कर के दिखाए।
2009 मे बीजेपी नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने बाक़ायदा प्रेस कांफ्रेस कर कहा था कि ईवीएम फूलप्रूफ नहीं है और मशीनों में छेड़छाड़ कर चुनावों को प्रभावित किया जा सकता है। पार्टी नेता जीवीएल नरसिम्हा राव ने ईवीएम में धांधली हो सकती है यi साबित करने के लिए एक किताब भी लिख डाली थी।
इस किताब की प्रस्तावना आडवाणी ने ही लिखी थी। यानी पार्टी आधिकारिक तौर पर ये मानती थी कि ईवीएम से चुनाव कराना ख़तरे से ख़ाली नहीं है।
ईवीएम धाँधली पर शोध
ईवीएम में धाँधली हो सकती है, यह बात प्रिंसटन विश्वविद्यालय के कुछ वैज्ञानिकों ने रिसर्च कर साबित किया था। सितंबर 2006 में प्रिंसटन के वैज्ञानिको ने तीन चीज़ें साबित की थी।- 1.वोटिंग मशीन मे आसानी से कोड डाल कर चुनाव में गड़बड़ी की जा सकती है और गड़बड़ी करने के बाद इस कोड को मशीन से ग़ायब भी किया जा सकता है ताकि चोरी पकड़ी न जा सके।
- 2.वोटिंग मशीन की मेमोरी कार्ड, जिसमें वोटों का हिसाब किताब रखा जाता है, उसे हटा कर नया मेमोरी कार्ड डाला जा सकता है।
- 3.इन मशीनों में वाइरस डाल कर भी वोटों की गिनती को मनचाहे तरीके से प्रभावित किया जा सकता है।
2009 में कैलीफ़ोर्निया, मिशिगन और प्रिंसटन विश्वविद्यालय ने दिखाया कि कैसे वोटिंग मशीन को हैक कर वोटों की चोरी की जा सकती है। वैज्ञानिक होवाव शैशम ने कहा कि हमारे हिसाब से पेपर बैलेट ही भविष्य है।
बैलेट ही भविष्य?
शैशम का कहना था कि अगर इलेक्ट्रॉनिक मशीन का इस्तेमाल करना ही है तो फिर पेपर का रिकार्ड अलग से रखना चाहिए। उनका इशारा वीवीपैट की तरफ था। भारत के वोटिंग मशीन पर भी एक रिसर्च पेपर 2010 में पेश किया गया था। हरि प्रसाद, एलेक्स हालडरमैन और राप गांगरिज्प ने एक टेक्निकल पेपर निकाला और यह दावा किया कि भारत की वोटिंग मशीन में छेड़छाड़ संभव है।जानकारों का कहना है कि मशीन का हार्डवेयर एक कंपनी में बनता है और इसके साफ्टवेयर में कोड दूसरी कंपनी में डाला जाता है। इस कोड को डालने के बाद न तो इस पढ़ा जा सकता है और नही इस पर दुबारा लिखा जा सकता है। ऐसे में इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि जो कोड भेजे गये वही कोड मशीन में डाले गए। अगर साफ्टवेयर में कोड डालने वाली कंपनी से मिली भगत कर ली जाए तो ऐसा कोड डाला जा सकता है जो वोट किसी को भी डाला जाए, मिले किसी मनचाही पार्टी को ही।
जर्मनी में ईवीएम असंवैधानिक
वोटिंग मशीन में गड़बड़ी की आशंका की वजह से दुनिया के अत्यंत विकसित देशों में ईवीएम से चुनाव नहीं कराए जाते। जर्मनी, इटली, नीदरलैंड, अमेरिका जैसे देशों में वोटिंग मशीन से वोट नहीं पड़ते है। चुनाव बैलेट पेपर से होते हैं। जर्मनी में कोर्ट ने ईवीएम के प्रयोग को असंवैधानिक क़रार दिया है। 2008 में नीदरलैंड की सरकार ने ईवीएम का इस्तेमाल नहीं करने का फ़ैसला किया। मशीनों को लेकर शिकायतें मिली थी। करोड़ों रुपए ख़र्च करने के बाद आयरलैंड नें ईवीएम से चुनाव कराने से इनकार कर दिया। ब्रिटेन दुनिया के सबसे पुराने लोकतंत्र में से एक है, पर उसकी संसद ने 2016 में तय किया कि वह वोटिंग मशीन का इस्तेमाल नहीं करेगी। फ़्रांस में भी ईवीएम से चुनाव नहीं होता। इटली में आज भी बैलेट पेपर ही लोकप्रिय है। अमेरिका के कुछ राज्यों में ईवीएम का इस्तेमाल होता है, पर राष्ट्रीय चुनाव पेपर पर ही होते हैं। हालाँकि ब्राज़ील, वेनेज़ुएला, एस्टोनिया जैसे दो दर्जन से अंधिक देश है जहाँ ईवीएम से चुनाव कराए जाते हैं।
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