आईसीआईसीआई बैंक की पूर्व सीईओ चंदा कोचर के ख़िलाफ़ अपने पति दीपक कोचर को फ़ायदा पहुँचाने के मामले में एफ़आईआर दर्ज़ होने के बाद सीबीआई के एसपी सुधांशु धर मिश्रा का तबादला कर दिया गया है। मिश्रा अब राँची में काम करेंगे। सुधांशु धर ने 22 जनवरी को इस मामले में एफ़आईआर दर्ज़ की थी।
तारीफ़ के बजाय मिली फटकार
एफ़आईआर में चंदा कोचर, उनके पति और वीडियोकान ग्रुप के मालिक वी. एन. धूत और बैंक के ढेरों सीनियर अफ़सरों के नाम एफ़आईआर में डाले थे और उनके ख़िलाफ़ जाँच की बात की थी। सीबीआई के इस अफ़सर को तारीफ़ मिलने के बजाय जेटली की जमकर फटकार मिली।
जेटली इन दिनों बीमार हैं। वह इलाज कराने न्यूयार्क गए हुए हैं। वित्र मंत्रालय की ज़िम्मेदारी उनसे लेकर रेल मंत्री पीयूष गोयल को दे दी गई है। जेटली फ़ेसबुक पर काफ़ी सक्रिय हैं। उन्होंने फ़ौरन ही एसपी के एफ़आईआर दर्ज़ करने पर पर एक पोस्ट लिख मारी और एसपी की ऐसी-तैसी कर दी।
जेटली ने कहा था, ‘इंवेस्टिगेटिव एडवेंचरिज़्म’
25 जनवरी को जेटली ने लिखा, ‘हजारों किमी दूर बैठे हुए जब मैं आईसीआईसीआई का केस देखता हूँ तो मुझे ध्यान आता है कि बजाय केस पर फ़ोकस करने के, यह मामला कहीं जाता हुआ नहीं दिखता है। अगर हम बैंकिंग सेक्टर के हर बड़े आदमी का नाम एफ़आईआर में डाल देंगे, सबूत या सबूत के बिना, तो फिर हम क्या हासिल करना चाह रहे हैं, क्या हम वाक़ई में नुक़सान नहीं कर रहे हैं?” फिर उन्होंने इसे ‘इंवेस्टिगेटिव एडवेंचरिज़्म’ कहा।
जेटली के लिखने के बाद रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण और वित्त मंत्री पीयूष गोयल ने उनके ट्वीट को री-ट्वीट कर दिया। इस का एक ही संदेश जाता है। सरकार सीबीआई की इस हरक़त से नाराज़ है। अगले ही दिन सुधांशु धर का तबादला कर दिया गया।
इंडियन एक्सप्रेस ने अफ़सर के तबादले की ख़बर छापी है। एक्सप्रेस ने जब जेटली की टिप्पणी पर सरकार की टिप्पणी माँगी तो सरकार की तरफ़ से कहा गया कि यह एक वरिष्ठ आदमी की सलाह थी। इसे सीबीआई के काम में दख़लंदाज़ी नहीं माना जाना चाहिए। सरकार के एक वरिष्ठ अफ़सर ने जेटली की तरफ़दारी की। उन्होंने कहा, ‘जेटली ने सही बात कही है। सिर्फ़ पूर्वानुमान के आधार पर ही सब को नहीं घसीटा जा सकता। बिना सबूत के बैंक के बोर्ड मेम्बर्स को नहीं लपेट सकते। अगर ऐसा हुआ तो कोई फ़ैसला ही नहीं लेगा।’ इन अफ़सर का यह भी कहना है कि सरकार का इस केस से कोई लेना-देना नहीं है। सरकार हमेशा ही सीबीआई से कोसों दूर रहती है।
रिश्वत लेने का है आरोप
चंदा कोचर पर यह आरोप है कि उन्होंने आईसीआईसीआई बैंक की सीईओ रहते हुए वीडियोकान समूह को 3250 करोड़ रुपये का क़र्ज़ दिया। इसके छह महीने के बाद वीडियोकान समूह के वी. एन. धूत ने चंदा कोचर के पति दीपक कोचर की एक कंपनी को 64 करोड़ रुपये दिए। दीपक कोचर ने यह कंपनी धूत के साथ मिलकर बनाई थी। और धूत ने इस कंपनी को पैसा आईसीआईसीआई बैंक से क़र्ज मिलने के छह महीने बाद दिया था। इंडियन एक्सप्रेस ने ही सबसे पहले यह ख़बर छापी थी।
आईसीआईसीआई बैंक के बोर्ड ने अपनी जाँच में चंदा कोचर को बेग़ुनाह पाया। पर सीबीआई ने कोचर के ख़िलाफ़ जाँच जारी रखी और आख़िरकार चंदा को इस्तीफ़ा देना पड़ा।
सीबीआई के काम में खुली दख़लंदाज़ी
यह पूरा घटनाक्रम कई सवाल खड़े करता है। पहला सवाल, बीमारी के बावजूद जेटली कैबिनेट मंत्री हैं। वह बिना मंत्री हुए भी शक्तिशाली हैं। ऐसे में क्या जेटली का सार्वजनिक तौर पर एक अफ़सर के काम पर सवाल खड़े करना सही है? उनके बाद उनकी बात को रक्षा मंत्री और वित्त मंत्री भी सही ठहराते हैं, और वह भी ख़ुलेआम। यह सीबीआई के काम में खुली दख़लंदाज़ी है।
जब देश के तीन-तीन कैबिनेट मंत्री किसी अफ़सर के काम पर इतनी सख़्त टिप्पणी करते हैं तो संदेश साफ़ होता है - वह कह रहे होते हैं कि तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई, और जब अगले दिन उस अफ़सर का तबादला हो जाता है तो संदेश और गहरा जाता है कि अगर अपने मन से ज़्यादा काम किया तो सज़ा भी मिलेगी। हक़ीक़त में सीबीआई एक स्वायत्त संस्था है और वह सरकार के ख़िलाफ़ भी जाँच करने के लिए स्वतंत्र है।
जेटली, निर्मला सीतारमण और पीयूष गोयल का इस तरह अफ़सर के काम पर टिप्पणी करना, सीबीआई के सारे अफ़सरों को एक तरह से धमकी है कि ज़्यादा उड़ोगे तो ठीक कर दिए जाओगे।
क्या जेटली ने देखे हैं सबूत?
दूसरा सवाल, जेटली को कैसे पता चला कि सीबीआई ने जिन लोगों के नाम एफ़आईआर में डाले हैं उनके ख़िलाफ़ केस नहीं बनता है? यह जानकारी तो सिर्फ़ जाँच अधिकारी के पास ही होगी। ऐसे में जेटली यह कैसे कह सकते हैं कि बैंक के इतने बड़े लोगों के नाम एफ़आईआर में नहीं डालने चाहिए? इन तमाम बड़े लोगों के नाम डालने का काम अगर अफ़सर ने किया है तो उसके पास कुछ न कुछ कारण होंगे। क्या यह सबूत जेटली ने देखे हैं जिसके आधार पर वह कह रहे हैं कि इनके नाम एफ़आईआर में नहीं डालने चाहिए?
अगर जेटली ने सबूत नहीं देखे हैं तो उन्हें बोलने का कोई हक़ नहीं है। और अगर देखे हैं तो यह उसी तरह का अपराध है जैसे मनमोहन सिंह के जमाने में अश्विनी कुमार ने किया था। कोयला घोटाला मामले में अदालत में चार्जशीट पेश करने के पहले कानून मंत्री के तौर पर अश्विनी कुमार ने फ़ाइल देखी थी और उन्हे इस्तीफ़ा देना पड़ा था।
लूट की छूट दे दें क्या?
तीसरा सवाल, जेटली की टिप्पणी पर सरकार के एक बड़े अफसर ने कहा कि इस तरह तो सारे अफ़सर फ़ैसले लेने बंद कर देंगे। इसका क्या मतलब है? यानी बड़े-बड़े बैंकों के बड़े अफ़सरों को लूटने की खुली छूट होनी चाहिए। क्योंकि अगर उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई की गई तो बाकी के अफ़सर या नौकरशाही काम करना बंद कर देगी। यह तर्क अजीब है। समझ के परे है। जेल जाने का डर उसे हो जो ग़लत काम कर रहा हो। जो ग़लत काम नहीं कर रहा है उसे क्या और क्यों डरना?
कांग्रेस ने भी धमकाया सीबीआई को
अफ़सर के तबादले के बाद कांग्रेस ने हमला बोल दिया। वरिष्ठ नेता आनंद शर्मा ने कहा कि जेटली जाँच एजेंसी को धमकी दे रहे हैं। जाँच को प्रभावित किया जा रहा है। यहाँ यह बता दें कि एक दिन पहले ही आनंद शर्मा ने सीबीआई को धमकाया था।
हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा के घर पर ज़मीन घोटाले के मामले में सीबीआई ने छापा मारा था। इसके बाद आनंद शर्मा ने कहा था कि सीबीआई के अफ़सरों को समझ लेना चाहिए कि सरकारें स्थाई नहीं होती हैं। सरकारें बदलती हैं। सरकार बदलने के बाद ग़लत करने वाले अफ़सरों को परिणाम भुगतना पड़ेगा। उनके इस बयान की तीखी आलोचना हुई थी।
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