क्या देश की वर्तमान राजनीतिक परिस्थितियों में कॉमरेड हरकिशन सिंह सुरजीत की कमी खल रही है? 1989 के बाद से जब देश में गठबंधन की राजनीति का दौर शुरू हुआ था तो हर चुनाव से पहले सबकी निगाहें तीसरे मोर्चे और उसका ख़ाका तैयार करने वाले हरकिशन सिंह सुरजीत पर रहती थी। सालों तक सीपीएम के महासचिव रहे सुरजीत ने उस दौर में रामो-वामो (राष्ट्रीय मोर्चा और वाम मोर्चा) जैसा गठबंधन बनाकर दो धुर विरोधी राजनीतिक विचारधारा वाली पार्टियों को एक छतरी में ला खड़ा किया था। लेकिन आज अनुकूल मौसम दिखाई पड़ रहा है, लेकिन तीसरे मोर्चे की नींव नहीं पड़ती दिख रही। इसमें सवाल यह उठ रहे हैं कि क्या तीसरा मोर्चा या फ़ेडरल फ़्रंट अब इस दौर की राजनीति में प्रासंगिक नहीं रहे? क्योंकि आज देश में वैसे ही दो बड़े गठबंधन हैं एक सत्ताधारी बीजेपी का एनडीए और दूसरा विपक्ष का यूपीए। अब इन दोनों गठबंधनों के बाद तीसरे गठबंधन का प्रयोग सफल होगा या नहीं और होगा तो कैसे? इस पर चर्चाएँ शुरू हो गयी हैं।
क्या अब प्रासंगिक नहीं रही तीसरे मोर्चे की कल्पना?
- चुनाव 2019
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- 15 May, 2019

आज अनुकूल मौसम दिखाई पड़ रहा है, लेकिन तीसरे मोर्चे की नींव नहीं पड़ती दिख रही। इसमें सवाल यह उठ रहे हैं कि क्या तीसरा मोर्चा या फ़ेडरल फ़्रंट अब इस दौर की राजनीति में प्रासंगिक नहीं रहे?