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प्रधानमंत्री पद पर शरद पवार के बयान का क्या है सियासी मतलब?

शरद पवार ने साफ़ तौर पर कहा है कि यदि राष्ट्रपति ने नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद की शपथ दिलवा भी दी तो उनकी सरकार का वही हाल होगा जो 1996 में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में बनी 13 दिन की सरकार का हुआ था। राष्ट्रवादी कांग्रेस के प्रमुख और चुनाव बाद महागठबंधन बनाने के संभावित मुख्य सूत्रधार शरद पवार का बयान क्या इशारा कर रहा है? 

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क्या शरद पवार यह कहना चाह रहे हैं कि चुनाव बाद सत्ता स्थापित करने के पर्याप्त आँकड़े नहीं होने के बावजूद नरेंद्र मोदी और बीजेपी राष्ट्रपति के आमंत्रण की मदद से प्रधानमंत्री पद की शपथ ले लेंगे और बाद में बहुमत साबित करने का समय लेकर एनडीए के अलावा दूसरी पार्टियों से समर्थन जुटाने या सांसदों की ख़रीद-फ़रोख़्त का खेल शुरू करेंगे? कर्नाटक में बीजेपी की सरकार बनाने का खेल हाल ही में पूरे देश ने देखा है इसलिए शरद पवार की शंका को नकारा नहीं जा सकता।
इस पर सिर्फ़ शरद पवार ही नहीं कुछ पत्रकारों ने भी सवाल उठाये हैं कि बहुमत से दूर रहने पर यदि बीजेपी सबसे बड़े दल के रूप में उभर कर आयी तो क्या वह आसानी से सत्ता बहुमत वाले गठबंधन के लिए छोड़ देगी?

कुछ दिन पहले वरिष्ठ पत्रकार और राज्यसभा में कांग्रेस के सांसद कुमार केतकर ने भी कई मराठी भाषा के टेलीविजन चैनलों में अपने साक्षात्कार में इन बातों का उल्लेख किया था। उन्होंने कहा था कि एनडीए को बहुमत नहीं मिलने और बीजेपी के सबसे बड़े दल के रूप में उभरने की स्थिति में नरेंद्र मोदी राष्ट्रपति की मदद से राष्ट्रपति से प्रधानमंत्री की शपथ लेकर बहुमत साबित करने के लिए 15 दिन का समय माँगेंगे। इन 15 दिनों में छोटी पार्टियों के सांसदों को ख़रीदने और उन पार्टियों को तोड़ने का खेल चल सकता है। उल्लेखनीय है कि बीजेपी के नेतृत्व वाला गठबंधन बहुमत से दूर रहेगा, इस तरह के अनुमान बीजेपी के नेताओं के बयानों के साथ-साथ बहुत से स्वतंत्र मीडिया और वेब मीडिया के पत्रकारों के आकलन में आने लगे हैं।

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मोदी और गठबंधन सरकार

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी अपनी एक जनसभा में यह बात कह दी कि उनको गठबंधन की सरकार चलाने का ख़ूब अनुभव है। मोदी ने गठबंधन की कौन-सी सरकार चलाई है, यह तो वह स्वयं ही स्पष्ट करें क्योंकि जो सरकार वह केंद्र में चला रहे हैं वह गठबंधन से ज़्यादा बीजेपी की पूर्ण बहुमत वाली सरकार नज़र आती है। 

शरद पवार का यह बयान उन छोटे दलों के नेताओं को एक संदेश के रूप में भी देखा जा रहा है कि मतदान के बाद अपने सांसदों को संभालने का काम भी कम महत्वपूर्ण नहीं होगा।

इस बयान में वह यूपीए के घटक दलों के साथ-साथ उन पार्टियों तक भी यह संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं कि सत्ता परिवर्तन के लिए वह अभी एकजुटता दिखाएँ। पवार के बयान के साथ-साथ तृणमूल कांग्रेस की तरफ़ से जो इशारे दिए जा रहे हैं उनसे भी ये संकेत साफ़ निकलकर आ रहे हैं कि बीजेपी से मुक़ाबला करने के लिए क्षेत्रीय दलों को तीसरे मोर्चे या फ़ेडरल फ़्रंट की लाइन पर सोचने की बजाय यूपीए को ही मज़बूत बनाना चाहिए।

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संजय राय
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