महाराष्ट्र में क्या फिर मराठा आरक्षण का आन्दोलन भड़केगा? यह सवाल इसलिए खड़ा हो रहा है क्योंकि मुंबई के आज़ाद मैदान में मराठा आरक्षण के दायरे में आने वाले मेडिकल विद्यार्थी पिछले एक सप्ताह से आन्दोलन कर रहे हैं। सोमवार को इन आन्दोलनकारी विद्यार्थियों से राष्ट्रवादी कांग्रेस के नेता अजित पवार ने भेंट की और यह कहा कि सरकार की ग़लती की वजह से यह बाधा खड़ी हुई है। वहीं महाराष्ट्र नव निर्माण सेना के प्रमुख राज ठाकरे ने इस मुद्दे को अलग रंग देते हुए कहा कि मराठा आरक्षण की घोषणा होने पर जो लोग पेड़े बाँट रहे थे अब कहाँ हैं?
दरअसल, यह मामला शुरू हुआ मेडिकल प्रवेश को लेकर। बताया जाता है कि राज्य सरकार ने मराठा आरक्षण को लेकर नोटिफ़िकेशन फ़रवरी 2019 में जारी किया और इसकी सूचना भी नीट प्रबंधन को देर से दी। इस बात को आधार मानते हुए हाई कोर्ट की नागपुर बेंच ने इस पर प्रवेश पर रोक लगा दी। इसकी अपील सरकार ने जब सुप्रीम कोर्ट में की तो उसने भी हाई कोर्ट के आदेश को मान्य करते हुए इस वर्ष मेडिकल शिक्षा प्रवेश प्रक्रिया में मराठा आरक्षण को लागू नहीं करने का निर्देश दिया है। जिसे लेकर मराठा छात्रों में काफ़ी रोष है। रविवार को मराठा समाज के कार्यकर्ताओं की बैठक भी मुंबई में हुई। उस बैठक में इस बात पर रोष जताया गया। इन कार्यकर्ताओं में इस बात को लेकर भी रोष था कि सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के कारण दंत चिकित्सकों के स्नातकोत्तर डिग्री में आरक्षित 213 स्थानों के प्रवेश रद्द कर दिए गए हैं। इस बैठक में मराठा क्रांति मोर्चा के समन्वयक वीरेन्द्र पवार भी उपस्थित थे। इन लोगों की नाराज़गी इस बात को लेकर भी है कि सरकार ने इस मामले में देरी क्यों की।
सरकार की सफ़ाई
आरक्षण के इस संवेदनशील मुद्दे पर सरकार ने भी अपनी सफ़ाई देने में देरी नहीं की। राज्य के वरिष्ठ मंत्री चंद्रकांत पाटिल ने कहा कि इस वर्ष मराठा आरक्षण का लाभ मेडिकल शिक्षा में छात्रों को नहीं मिल पाएगा लेकिन, वे सभी छात्र सामान्य कोटा से प्रवेश ले सकेंगे। पाटील ने बताया कि क़रीब 300 छात्र हैं जिन्हें मराठा आरक्षण का लाभ मिल सकता है। इनमें से 200 से अधिक छात्रों को संभवत: सामान्य कोटा में स्थान मिल जाएगा। जबकि बचे हुए छात्रों के लिए हम केंद्र सरकार से अपील कर सीटें बढ़ाने की माँग करेंगे। महाजन ने बताया कि राज्य सरकार ने मराठा आरक्षण का क़ानून 30 नवम्बर 2018 को बनाया है जबकि नीट ने यह परीक्षा प्रक्रिया 3 नवम्बर को शुरू की। लेकिन सरकार ने नीट को नोटिफ़िकेशन फ़रवरी 2019 में भेजा है, इसको लेकर बहस शुरू हो गयी। महाराष्ट्र में मराठाओं की जनसंख्या क़रीब 24 फ़ीसदी है।
5 महीने बाद प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं इसलिए चुनाव पूर्व विपक्षी दलों को यह मुद्दा बैठे-बिठाये मिल गया। साल 2018 में इस मराठा आरक्षण आन्दोलन ने सरकार की नींद उड़ा दी थी। लाखों की संख्या में युवा सड़कों पर उतरे थे।
इस आन्दोलन का पहला चरण मूक मोर्चों के रूप में था लेकिन बाद वाले चरण हिंसक रूप धारण कर लिए थे। सरकार ने इस आरक्षण की घोषणा करते समय अपनी ख़ूब पीठ थपथपाई थी, लेकिन उस समय भी यह सवाल उठाये जा रहे थे कि क्या यह संभव हो पायेगा? क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत से नीचे रखी है और फ़िलहाल 49.5 प्रतिशत आरक्षण लागू है। महाराष्ट्र सरकार के समक्ष इसे लागू कराने की एक बड़ी चुनौती है। अभी तो यह मुद्दा सिर्फ़ मेडिकल प्रवेश में आरक्षण का ही है।
1882 में शुरू हुई थी आरक्षण की माँग
आरक्षण पर विवाद का महाराष्ट्र से बहुत पुराना नाता है। डॉ. भीमराव आम्बेडकर से पहले भी आरक्षण की माँग महाराष्ट्र से उठायी गयी है। सबसे पहले 1882 में ज्योतिबा फुले ने हंटर आयोग को ज्ञापन दिया था कि सरकारी नौकरियों में कमज़ोर वर्गों को उनकी संख्या के अनुपात में आरक्षण मिले। 1902 में कोल्हापुर के महाराजा छत्रपति शाहूजी महाराज ने पिछड़े वर्गों को नौकरी में 50 फ़ीसदी आरक्षण दिया, ताकि उनकी ग़रीबी ख़त्म हो और राज्य के प्रशासन में उनकी भागीदारी हो। यह भारत में आरक्षण दिये जाने का पहला सरकारी आदेश था। उसके बाद जब आज़ादी का आन्दोलन आगे बढ़ने लगा तब पुणे में महात्मा गाँधी और आम्बेडकर के बीच एक समझौता हुआ जिसे पुणे पैक्ट कहा जाता है। इस समझौते में आरक्षण के वर्तमान स्वरूप की नींव रखी गयी और जब संविधान बना तो उसे संवैधानिक रूप दे दिया गया। लेकिन पहले यह आरक्षण समाज के ग़रीब और पिछड़े वर्गों तक ही सीमित था लेकिन अब इसका दायरा जाट, मराठा या सवर्ण जातियों तक फैल गया है।
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