कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी बृहस्पतिवार को जब केरल के वायनाड में अपना पर्चा दाख़िल करने पहुँचे तो उनकी रैली में इंडियन यूनियन मुसलिम लीग (आईयूएमएल) के हरे रंग के झंडे भी लहरा रहे थे। इसे लेकर ख़ासा विवाद शुरू हो गया है। ख़ास तौर पर बीजेपी ने इसे मुद्दा बना लिया है।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक ट्वीट कर मुसलिम लीग को वायरस बताया है। बता दें कि इसलामी झंडे का रंग हरा होता है। बस, इसी को लेकर सोशल मीडिया से लेकर चुनावी सभाओं तक में बीजेपी नेताओं ने इसे हिंदू-मुसलमान का रंग देने की कोशिश की। सवाल यह है कि ठीक लोकसभा चुनाव के मौक़े पर आख़िर हर बात को हिंदू-मुसलमान का रंग देने की कोशिश क्यों हो रही है।
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बिहार के बेगूसराय से लोकसभा का चुनाव लड़ रहे केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने भी राहुल की रैली का एक वीडियो पोस्ट करते हुए तंज कसा कि यह राहुल गाँधी का नया भारत है। गिरिराज सिंह का इशारा भी रैली में मुसलिम लीग के हरे झंडों को लेकर था।
मुसलिम लीग के हरे झंडे को लेकर सोशल मीडिया पर भी अफ़वाहों का दौर जारी हैं। सोशल मीडिया पर यह प्रचार किया जा रहा है कि कांग्रेस ने राहुल गाँधी को जिताने के लिए वायनाड में कट्टरपंथियों से हाथ मिला लिया है और देश के विभाजन की कोशिश की जा रही है। कांग्रेस को पाकिस्तान परस्त तो कहा ही जा रहा है।
अब बात करते हैं कि आख़िर मुसलिम लीग के झंडे कांग्रेस की रैली में कैसे पहुँचे और इन्हें लेकर विवाद क्यों हुआ। केरल में कांग्रेस के नेतृत्व में यूडीएफ़ (यूनाइडेट डेमोक्रेटिक फ़्रंट) की सरकार चल रही है। इंडियन यूनियन मुसलिम लीग (आईयूएमएल) इस सरकार में सहयोगी है, इसलिए ही उसके कार्यकर्ता रैली में शामिल हुए थे।
लोकसभा चुनाव के तहत आचार संहिता लगी हुई है। चुनाव आयोग के नियमों के मुताबिक़, जाति, धर्म, भाषा, क्षेत्र के आधार पर कोई भी व्यक्ति भड़काऊ भाषण नहीं दे सकता। लेकिन जब से राहुल गाँधी के वायनाड से चुनाव लड़ने की ख़बर आई है, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और बाक़ी नेता यह प्रचारित करने में जुटे हुए हैं कि वायनाड में मुसलिम वोटर अधिक होने के चलते ही राहुल गाँधी वहाँ चुनाव लड़ने गए हैं।
कुछ दिन पहले ही महाराष्ट्र के वर्धा में एक रैली को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि एक पार्टी (कांग्रेस) के नेता ऐसी सीट से चुनाव लड़ने से डर रहे हैं, जहाँ हिंदू अधिक संख्या में हैं और वे ऐसी सीटों से चुनाव लड़ने जा रहे हैं, जहाँ अल्पसंख्यक मतदाता अधिक हैं।
इसके बाद प्रधानमंत्री ने जनता से पूछा था कि क्या आज तक हिंदू आतंकवाद की कोई एक भी घटना हुई है। उन्होंने कहा कि हिंदुओं को आतंकवादी बताने के लिए लोग कांग्रेस को कभी माफ़ नहीं करेंगे।
कुल मिलाकर कोशिश यह की जा रही है कि 2019 के लोकसभा चुनाव को बेरोज़गारी, किसानों की ख़राब हालत, अर्थव्यवस्था की दुखद स्थिति जैसे अहम मुद्दों से हटाकर राष्ट्रवाद, देशप्रेम, देशभक्ति और पाकिस्तान विरोध पर केंद्रित कर दिया जाए। और कुछ मामलों में आगे बढ़ते हुए जबरन इसे हिंदू-मुसलमान तक ले जाया जाए, जिससे धार्मिक आधार पर ध्रुवीकरण हो और चुनाव में वोटों की फसल काटी जा सके।
बता दें कि पिछले लोकसभा चुनाव से ठीक पहले पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुज़फ़्फ़रनगर में भी जाट-मुसलमानों के दंगों को लेकर धार्मिक आधार पर ध्रुवीकरण की कोशिश में बीजेपी को बड़े पैमाने पर कामयाबी मिली थी और वह उत्तर प्रदेश की 80 सीटों में से अपने दम पर 71 सीटें जीतने में सफल रही थी।
सवाल यह भी है कि धार्मिक आधार पर ध्रुवीकरण की कोशिशों पर आख़िर चुनाव आयोग चुप क्यों है और सख़्त कार्रवाई करने से क्यों हिचक रहा है? चुनाव आयोग को आचार संहिता के उल्लंघन से जुड़े मामलों में सख़्त कार्रवाई करनी चाहिए जिससे वह निष्पक्ष और स्वतंत्र चुनाव कराने के अपने वादे पर खरा उतर सके और राजनीतिक दलों को किसी भी तरह के ध्रुवीकरण का मौक़ा न मिले।
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