उपन्यास की शुरुआत तरबूज की फांक-सी लाल है और वहीं दीवार पर खून से लिखा हुआ है पिशाच। एक बड़े कवि, विचारक और पेंटर का कत्ल हुआ है। जगह पर बढ़ती हुई भीड़ है। सफेद और स्याह चेहरों पर विस्मय है। चीलों-सी स्पर्धा में पारंगत रिपोर्टर लड़कियां हैं। फटे हुए इश्तेहार की तरह फड़क रहे पुलिस अफसर हैं और कवि के निजी संबंधों में पेचकस घुमाने की गुंजाइश तलाशते हुए अपने-अपने स्टूडियो में बैठे टीवी के कर्ता-धर्ता हैं। कवि की हत्या का दुख उन्हें भी है, लेकिन शायद एक कप चाय के ठंडे हो जाने के दुख से कम।
'पिशाच' पुस्तक समीक्षा: शब्दों में सोए हुए पत्थर चौंक उठे हैं!
- साहित्य
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- 22 Aug, 2021

वरिष्ठ पत्रकार और लेखक संजीव पालीवाल का नया उपन्यास ‘पिशाच’ आया है। यह उपन्यास एका से छपकर आया है। पढ़िए उपन्यास की समीक्षा।
ये सारे दृश्य वरिष्ठ पत्रकार और लेखक संजीव पालीवाल के नए उपन्यास ‘पिशाच’ से हैं।
यह उपन्यास एका से छपकर आया है। इस उपन्यास में भी संजीव पालीवाल टीवी की उसी दुनिया में उतरे हैं, जो उनके पहले उपन्यास ‘नैना’ की दुनिया थी, जहाँ खबर साबुन की तरह झाग छोड़ती है, जहां रिश्ते मुहावरा बदलने की फिराक में नजर आते हैं और टीवी एंकर के कान हमेशा चीख से सटे रहते हैं।