उपन्यास की शुरुआत तरबूज की फांक-सी लाल है और वहीं दीवार पर खून से लिखा हुआ है पिशाच। एक बड़े कवि, विचारक और पेंटर का कत्ल हुआ है। जगह पर बढ़ती हुई भीड़ है। सफेद और स्याह चेहरों पर विस्मय है। चीलों-सी स्पर्धा में पारंगत रिपोर्टर लड़कियां हैं। फटे हुए इश्तेहार की तरह फड़क रहे पुलिस अफसर हैं और कवि के निजी संबंधों में पेचकस घुमाने की गुंजाइश तलाशते हुए अपने-अपने स्टूडियो में बैठे टीवी के कर्ता-धर्ता हैं। कवि की हत्या का दुख उन्हें भी है, लेकिन शायद एक कप चाय के ठंडे हो जाने के दुख से कम।