राकेश कायस्थ का उपन्यास 'रामभक्त रंगबाज़' कल सुबह ही मिला था और आज पढ़ कर ख़त्म किया- बस इसलिए नहीं कि इस उपन्यास का वास्ता मेरे बचपन और मेरे मोहल्ले से है, बल्कि इसलिए भी कि बहुत दिलचस्प ढंग से बुना गया यह उपन्यास उन सवालों पर बहुत गंभीरता से उंगली रखता है जिन पर बोलना इस खौलते हुए सांप्रदायिक समय में लगभग गुनाह बना दिया गया है। उपन्यास याद दिलाता है कि आज नफ़रत के जो छोटे-बड़े पौधे पूरे पर्यावरण को ज़हरीला बनाते दिख रहे हैं, उनको हवा और पानी मुहैया कराने का काम किन तत्वों और ताक़तों ने किया था- यह भी कि तब भी कुछ लोग उनका प्रतिरोध कर रहे थे और अब भी कर रहे हैं।
‘रामभक्त रंगबाज़’: इस खौलते सांप्रदायिक वक़्त में उंगली रखना भी गुनाह!
- साहित्य
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- 22 Nov, 2021

राकेश कायस्थ ने एक उपन्यास 'रामभक्त रंगबाज़' लिखा है। पढ़िए, राकेश कायस्थ के इस उपन्यास की समीक्षा, वरिष्ठ पत्रकार प्रियदर्शन की क़लम से...।
वैसे मेरे लिए इस उपन्यास में सुखद अचरज की वजहें और भी रहीं। मैं उम्मीद कर रहा था कि उपन्यास मेरे लिए बहुत कुछ प्रत्याशित होगा- यानी एक जानी-पहचानी ज़मीन से उठाए गए उन प्रसंगों से बना होगा जिनमें कुछ का मैं क़रीबी गवाह रहा और कुछ में साझेदार भी रहा। लेकिन राकेश ने यहां लेखकीय परिपक्वता दिखाई है।