छह फ़रवरी को कृष्ण बलदेव वैद के निधन से भारतीय, ख़ासतौर से हिंदी साहित्य के एक और युग का अंत हो गया। वह भारत के पहले प्रयोगधर्मी रचनाकार थे। 27 जुलाई, 1927 में पंजाब के डिंगा कस्बे (अब पाकिस्तान का हिस्सा) में जन्मे वैद विभाजन के बाद हिंदुस्तान आ गए थे। 1949 में पंजाब विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी में एमए की और 1961 में हार्वर्ड विश्वविद्यालय से पीएचडी की थी। भारत के विभिन्न कॉलेजों-विश्वविद्यालयों में पढ़ाने के बाद न्यूयॉर्क स्टेट यूनिवर्सिटी और ब्रेंडाइज यूनिवर्सिटी के अंग्रेज़ी विभाग में रहे। अंग्रेज़ी में पढ़ाई की और पढ़ाया लेकिन लिखने के लिए हिंदी को चुना। हिंदी में लिखते हुए ऐसे भाषागत प्रयोग किए जो उनसे पहले या उनके बाद के किसी लेखक ने शायद ही किए। निर्मल वर्मा और कृष्णा सोबती (जिनसे उनका ताउम्र दोस्ती-दुश्मनी का रिश्ता रहा) भी उनकी तरह भाषा के प्रयोगधर्मी बड़े लेखक थे। लेकिन कृष्ण बलदेव वैद ने यह काम अलग क़िस्म की विलक्षणता के साथ तथा सप्रयास किया।