वरिष्ठ पत्रकार और चर्चित लेखक हेमंत शर्मा की एक और किताब छप कर बाज़ार में आ गई है। हमेशा की तरह उनकी किताब के शीर्षक ‘एकदा भारतवर्षे’ से उसके कथ्य के पांडित्यपूर्ण होने की झलक मिलती है। इस पुस्तक की सामग्री उनकी पिछली किताबों से एकदम भिन्न शैली की है।
‘एकदा भारतवर्षे’ - ‘भारत’ में ‘भारत’ को खोजती हेमंत की नई किताब
- साहित्य
- |
- |
- 13 Oct, 2020

जब आप इस पुस्तक से विचरते हैं तो आप अपने माता-पिता, परिजनों और समाज के बीच बिताए बचपन के उन क्षणों में होते हैं जिनमें कभी माँ या पिता की सलाह, परिवार/ रिश्ते में किसी बड़े के सौजन्य या प्राथमिक कक्षाओं के किसी शिक्षक ने आपको भेजा रहा होगा। जहाँ तमाम लोग ऊँचे आसन पर विराज कर कुछ कह रहे होंगे और नीचे बैठे लोग चुपचाप सुन रहे होंगे। शरारती बच्चों को चुप कराया जा रहा होगा...
हेमंत लिक्खाड़ हैं। तय करके किसी भी सीमा में कोई भी लक्ष्य समय से पहले पूरा कर सकते हैं। इस किताब को भी उन्होंने ऐसे ही पूरा किया है। निजी मित्रों में (काफ़ी बड़ी संख्या है) वाट्सऐप संदेश दिया कि अमुक दिन से रोज़ एक कथा लिखूँगा जो बाद में पुस्तकाकार रूप में प्रकाशित की जाएगी और लिखने लगे, एक सौ चौदह कथाएँ हैं इस संकलन में जो रोज़ एक-एक कर सुबह लिखी गईं। यानी कुल चार महीने से भी कम समय में बिना किसी दैनंदिन काम में गतिरोध डाले पुस्तक संपूर्ण! जिसके फ़्लैप पर प्रो. पुष्पेश पंत, प्रसून जोशी और असग़र वजाहत चमक रहे हैं। पुस्तक मरहूम डा. नामवर सिंह को समर्पित है जबकि अंतर्वस्तु पितृसत्तात्मकता की रक्षा करती हुई द्रौपदी में दोष और सीता प्रकरण में राम को निर्दोष साबित करने की परंपरा का पालन करती है। यह हेमंत की विलक्षणता है जो उनकी एक आलीशान कृति ‘द्वितीयोनास्ति’ के शीर्षक में व्यक्त होती है।