वह 1981 की एक सर्द सुबह थी। मैं इंदौर में ‘नई दुनिया’ के संपादकीय विभाग में काम करता था। एक दिन ऑफ़िस पहुँचा तो देखा कि वीआईपी रूम खुला हुआ है। आम तौर पर वह कक्ष तभी खुलता था जब इंदौर में कोई राष्ट्रीय शिखर पुरुष आया करता था। मैंने हमारे साथी सुबोध होल्कर से पूछा, ‘कौन है? सुबोध ने बताया, धर्मवीर भारती आए हैं। धर्मयुग वाले। रज्जू बाबू से मिलने आए हैं। रज्जू बाबू घर से आने वाले हैं। उनका इंतज़ार कर रहे हैं। मैंने पूछा कि कुछ चाय-वाय उनके पास पहुँची है या नहीं? सुबोध ने कहा, ‘महेंद्र सेठिया हैं उनके साथ। मैं भी कक्ष में बिना पूछे दाख़िल हो गया। सामने गहरे रंग का सफारी सूट पहने भारती जी बैठे थे। महेंद्र जी उन्हें ‘नई दुनिया’ के बारे में कोई जानकारी दे रहे थे। मैं एक सेकंड उन्हें देखता रहा -तो ये हैं गुनाहों का देवता के लेखक। मैं आगे बढ़ा तो महेंद्र सेठिया ने मेरा परिचय उनसे कराया।
डॉक्टर धर्मवीर भारती यानी 'गुनाहों का देवता' और 'रेत की मछली' की याद
- श्रद्धांजलि
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- 26 Dec, 2019

आज डॉ. धर्मवीर भारती होते तो वह तिरानवे साल के होते। वह एक विख्यात कवि, लेखक, कथाकार और सामाजिक चिंतक थे। उन्हें 1972 में साहित्य में योगदान के लिए पद्मश्री पुरस्कार दिया गया। आज उन्हें किस रूप में याद किया जाए...
इसके बाद डॉक्टर भारती से बातचीत शुरू हो गई। देर तक गपशप। मैं प्रभावित था। हिन्दुस्तान की सबसे लोकप्रिय पत्रिका का संपादक। इतना सहज। तनिक देर में राजेंद्र माथुर आ गए। उनके साथ भारती जी पहली मंज़िल पर उनके कक्ष में चले गए। बाद में अभय छजलानी भी चर्चा में शामिल हो गए। मैं अपनी डेस्क पर आ गया।