यह सत्ता संघर्ष की एक ऐसी कहानी है जिसमें कोई एक किरदार न तो नायक है और न ही खलनायक। सब अपनी जगह जितने बड़े नायक हैं, उतने ही बड़े खलनायक भी। राजसत्ता का यह संघर्ष मान-सम्मान, बदला, छल, कपट, साज़िश, विद्रूपता, लालच, वीभत्सता और क्रूरता जैसे मानव जीवन के कई रंगों को रेखांकित करता है। यह एक ऐसी कहानी है जिसमें भाई भाई का न हुआ, बेटा बाप का न हुआ और बाप बेटों का नहीं हुआ। इसमें राजा बनने की चाह अपनों का ही सर क़लम करवाती है, जिसमें ख़ून के ही रिश्ते एक दूसरे के ख़ून को प्यासे हैं। यह कहानी है अब से क़रीब साढ़े तीन सौ साल पहले मुग़लकाल की। जिसमें दो बड़े किरदार हैं। औरंगज़ेब और दारा शिकोह।
क्या औरंगज़ेब ने अपने बड़े भाई दारा शिकोह का सिर क़लम किया था?
- साहित्य
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- 22 Mar, 2020

आज भी जब कभी मुग़ल काल के बादशाहों का ज़िक्र होता है तो औरंगज़ेब और दारा शिकोह बरबस ही आमने-सामने खड़े होते दिखते हैं। यह एक ऐसी कहानी है जिसमें भाई भाई का न हुआ, बेटा बाप का न हुआ और बाप बेटों का नहीं हुआ।
आज भी जब कभी मुग़ल काल के बादशाहों का ज़िक्र होता है तो औरंगज़ेब और दारा शिकोह बरबस ही आमने-सामने खड़े होते दिखते हैं। तीसरा बड़ा किरदार है शाहजहाँ, एक बेटे की जिसके तरफ़ झुकाव ने दूसरे बेटों को बाग़ी बना दिया। देश का एक बड़ा वर्ग औरंगज़ेब को हीरो के तौर पर बना देखता है, दूसरा दारा शिकोह को। दोनों ही एक दूसरे में अपने-अपने चश्मे के हिसाब से हीरो और विलेन ढूंढ लेते हैं। जिसके लिए औरंगज़ेब हीरो है उसके लिये मुग़लकाल के सारे बादशाह बौने नज़र आते हैं। वहीं दारा शिकोह को असली हीरो मानने वाले उसे बहुत बड़े दार्शनिक के रूप में पेश करते हैं।