पिछले कई दिनों से तब्लीग़ी जमात और दिल्ली के हज़रत निज़ामुद्दीन स्थित उसका मरकज़ तमाम मीडिया चैनलों और अख़बारों की सुर्ख़ियाँ बना हुआ है। कई चैनलों ने मरकज़ को कोरोना वायरस का एपी सेंटर क़रार दे दिया है। मीडिया का एक बड़ा हिस्सा तब्लीग़ी जमात को विलेन साबित करने पर भी तुला हुआ है।
अल्पसंख्यक मामलों के केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नक़वी ने भी तब्लीग़ी जमात को आतंक का स्रोत क़रार दे दिया है। वहीं उत्तर प्रदेश के शिया वक्फ बोर्ड के चेयरमैन वसीम रिज़वी ने तब्लीग़ी जमात के सदर को फाँसी की सज़ा देने की माँग की है। ऐसे में सवाल यह है कि तब्लीग़ी जमात क्या है?
तब्लीग़ी जमात की शुरुआत
तब्लीग़ी जमात की स्थापना 1927 में एक सुधारवादी धार्मिक आंदोलन के तौर पर हुई थी। मौलाना मुहम्मद इलियास कांधलवी ने इसकी शुरुआत की थी। यह धार्मिक आंदोलन इसलाम की देवबंदी विचारधारा से प्रभावित और प्रेरित है। मौलाना मुहम्मद इलियास उत्तर प्रदेश के मुज़फ़्फ़रनगर ज़िले के कांधला गाँव में पैदा हुए थे।
मौलाना इलियास के वालिद मुहम्मद इस्माइल थे और माँ सफ़िया। एक स्थानीय मदरसे में उन्होंने एक चौथाई क़ुरआन का हिफ़्ज़ किया यानी मौखिक तौर पर याद किया। बाद में अपने पिता के मार्गदर्शन में दिल्ली के निज़ामुद्दीन में क़ुरआन को पूरा याद किया। उसके बाद अरबी और फ़ारसी की शुरुआती किताबों को पढ़ा। बाद में वह रशीद अहमद गंगोही के साथ रहने लगे। 1905 में रशीद गंगोही का निधन हो गया। 1908 में मौलाना मुहम्मद इलियास ने दारुल उलूम में दाख़िला लिया।
मेवात से ही क्यों शुरू हुई तब्लीग़?
हरियाणा के मेवात इलाक़े में बड़ी संख्या में मुसलिम रहते थे। इनमें से ज़्यादातर ने काफ़ी बाद में इसलाम धर्म स्वीकार किया था। लिहाज़ा उन पर हिंदू रीति-रिवाज़ हावी थे। उनके नाम भी आधे हिंदू और आधे मुसलमान हुआ करते थे। मसलन, मुहम्मद रमेश या फिर राकेश अहमद। तब वहाँ के मुसलमान बस नाम के ही थे। रोज़े नमाज़ से दूर थे। यहाँ तक कहा जाता है कि तब्लीग़ का काम शुरू होने से पहले तक मेवात के लोग सही से कलमा तक पढ़ना नहीं जानते थे।
ईसाई मिशनरी के ख़िलाफ़ था तब्लीग़ी आंदोलन
20वीं सदी में उस इलाक़े में मिशनरी ने काम शुरू किया। बहुत से मेव मुसलमानों ने मिशनरी के प्रभाव में आकर इस्लाम धर्म का त्याग कर दिया था। यहीं से इलियास कांधलवी को मेवाती मुसलमानों के बीच जाकर इसलाम को मज़बूत करने का ख्याल आया। उस समय तक वह सहारनपुर के मदरसा मज़ाहिरुल उलूम में पढ़ा रहे थे। वहाँ से पढ़ाना छोड़ दिया और मेव मुसलिमों के बीच काम शुरू कर दिया।
मुहम्मद इलियास कांधलवी ने 1927 में तब्लीग़ी जमात की स्थापना की ताकि गाँव-गाँव जाकर लोगों के बीच इसलाम की शिक्षा का प्रचार-प्रसार किया जाए।
मरकज़ क्या होता है?
तब्लीग़ी जमात के लोग पूरी दुनिया में फैले हुए हैं। बड़े-बड़े शहरों में उनका एक सेंटर होता है जहाँ जमात के लोग जमा होते हैं। उसी को मरकज़ कहा जाता है। वैसे भी उर्दू में मरकज़ जो है वह इंग्लिश के सेंटर और हिंदी के केंद्र के लिए इस्तेमाल होता है।
जमात क्या होती है?
उर्दू में इस्तेमाल होने वाले जमात शब्द का मतलब किसी एक ख़ास मक़सद से इकट्ठा होने वाले लोगों का समूह है। तब्लीग़ी जमात के संबंध में बात करें तो यहाँ जमात ऐसे लोगों के समूह को कहा जाता है जो कुछ दिनों के लिए ख़ुद को पूरी तरह तब्लीग़ी मिशन को समर्पित कर देते हैं। इस दौरान उनका अपने घर, क़ारोबार और सगे-संबंधियों से कोई संबंध नहीं होता है। वे गाँव-गाँव, शहर-शहर, घर-घर जाकर मुसलमानों के बीच इसलाम की बुनियादी शिक्षा का प्रचार करते हैं। इस दौरान इसलामी शिक्षा के मुताबिक़ ज़िंदगी गुज़ारने के तौर-तरीक़े सीखने और सिखाने का दौर चलता है।
जमात का एक मुखिया होता है जिसको अमीर-ए-जमात कहा जाता है। जमात से जुड़ने का एक नियम यह है कि हर साथी महीने में कम से कम 3 दिन, तीन महीने में 10 दिन, साल में 40 दिन और ज़िंदगी में 4 महीने तब्लीग़ी जमात के मिशन को अनिवार्य रूप से देंगे। बाक़ी लोग एक निश्चित समय के लिए जुड़ते हैं। कोई तीन दिन के लिए, कोई 40 दिन के लिए, कोई चार महीने के लिए तो कोई साल भर के लिए शामिल होते हैं। इस अवधि के समाप्त होने के बाद ही वे अपने घरों को लौटते हैं और रोज़ाना के कामों में लगते हैं। सबसे ख़ास बात यह है कि जमात में जाने वाले लोग अपना ख़र्च ख़ुद उठाते हैं वह किसी पर निर्भर नहीं होते हैं और न ही इसके लिए चंदा करते हैं।
तब्लीग़ी जमात के सिद्धांत
तब्लीग़ी जमात के सिद्धांत छह बातों पर आधारित हैं। इन्हें छह बातें, छह सिफ़आत और छह नंबर भी कहा जाता है। वे सिद्धांत इस तरह हैं...
- मुकम्मल ईमान यानी पूरी तरह अल्लाह पर यक़ीन रखना।
- दिन में पाँच वक़्त पाबंदी से नमाज़ पढ़ना।
- इल्म ओ ज़िक्र यानी धर्म से संबंधित बातें करना।
- इकराम-ए-मुसलिम यानी मुसलमानों का आपस में एक-दूसरे का सम्मान करना और मदद करना।
- इख़्लास-ए-नीयत यानी नीयत का साफ़ रखना।
- रोज़मर्रा की ज़िंदगी में इसलामी उसूलों को व्यावहारिक रूप से अमल में लाना।
तालीम और फ़ज़ाइल-ए-आमाल
फ़ज़ाइल-ए-आमाल जिसका मतलब है- अच्छे कामों के फ़ायदे या ख़ासियतें। फ़ज़ाइल-ए-आमाल तब्लीग़ी जमात के बीच पवित्र किताब है। उस किताब में उनके छह सिद्धांत से संबंधित बातें है। दोपहर की नमाज़ के बाद तब्लीग़ी जमात से जुड़े लोग एक कोने में जमा हो जाते हैं। वहाँ कोई एक व्यक्ति फ़ज़ाइल-ए-आमाल पढ़ता है और बाक़ी लोग ध्यान से सुनते हैं। सऊदी अरब समेत कई इसलामी देशों में फ़ज़ाइल-ए-आमाल पर पाबंदी है। लिहाज़ा पिछले कई साल से तब्लीग़ी जमात ने मुंतखीब अहादीस नाम की किताब को अपने मिशन में शामिल किया है।
तब्लीग़ी जमात का मरकज़
भारत में दिल्ली के हज़रत निज़ामुद्दीन में बंगले वाली मसजिद में तब्लीग़ी जमात का मरकज़ है। दुनिया भर में तब्लीग़ी जमात के बीच इस मरकज़ की हैसियत तीर्थस्थल जैसी है। 6 मंजिली इमारत में क़रीब 10 हज़ार लोग एक साथ रह सकते हैं। हर साल सालाना जलसा होता है। इस साल भी 13 से 15 मार्च के बीच जलसा हुआ।
पाकिस्तान से तब्लीग़ी जमात की दूरी
एक और ख़ास बात यह है तब्लीग़ी जमात ने पाकिस्तान से दूरी बनाए रखी है। न तो पाकिस्तान के लोग भारत में तब्लीग़ी जमात में शामिल होने के लिए आते हैं और न ही भारतीय लोग पाकिस्तान जाते हैं। बाक़ी दुनिया भर से भारत में और भारत से दुनिया भर में तब्लीग़ी जमात में लोगों का आना-जाना लगा रहता है।
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