एक ओर उत्तर प्रदेश और गुजरात जैसे सूबे, जहां बड़ी संख्या में मुसलमान रहते हैं, वहां बीते विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने किसी मुसलिम को टिकट नहीं दिया और स्थानीय निकाय के चुनावों में भी वह उन्हें ज़्यादा अहमियत नहीं देती। दूसरी ओर, केरल के स्थानीय निकाय के चुनावों में उसने 100 से ज़्यादा मुसलिम नेताओं को चुनाव मैदान में उतारा है।