एबीपी-सी वोटर द्वारा जारी किये गए ओपिनियन पोल पर नज़र डालें तो केरल की पिनराई विजयन की वामपंथी सरकार के लिए अच्छी ख़बर है। सर्वे का मानना है कि पिनराई सरकार प्रदेश में दोबारा बहुमत हासिल करने में सफल होगी। केरल में आगामी 6 अप्रैल को विधानसभा की 140 सीटों के लिए चुनाव होंगे और 2 मई को मतगणना होगी।
क्या कांग्रेस जो स्थानीय चुनाव में कमतर प्रदर्शन के बाद से नई रणनीति बना कर कोशिशों में जुटी है, कोई बढ़त नहीं हासिल करेगी? राहुल गाँधी की केरल यात्राएँ और मछुआरों के साथ समुद्र में गोते खाना बेकार जाएगा? बीजेपी के स्टार प्रचारक योगी, स्मृति ईरानी, तेजस्वी सूर्या या फिर दिग्गज शाह और मोदी का जादू केरल में फिर नहीं चलेगा? क्या बीजेपी को LDF की सरकार बने रहने में फ़ायदा है और कांग्रेस की हार में उसकी जीत है क्योंकि कांग्रेस मुक्त भारत का उनका अभियान इससे सफल होता है?
एक और मुश्किल है कांग्रेस के लिए ईसाई और मुसलिम समुदाय के बीच के सम्बन्धों में सामंजस्य बनाए रखना जिसको उल्टा रुख देने की कोशिश में भारतीय जनता पार्टी लगी हुई है।
सबरीमला मंदिर में हर उम्र की महिलाओं को प्रवेश दिए जाने पर कांग्रेस ने अपना स्टैंड मुलायम कर विजयन सरकार को आड़े हाथों लिया और इसका फ़ायदा लोकसभा 2019 में कांग्रेस को होता दिखा जब यूडीएफ़ ने 20 लोकसभा सीटों में से 19 सीटें हासिल कीं। हालाँकि हाल के स्थानीय निकाय चुनाव में विजयन ने फिर बढ़त हासिल की जिसका मुख्य श्रेय मुख्यमंत्री पिनराई विजयन के काम को दिया जाता है।
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देश का राजनीतिक पटल जिस तरह व्यक्ति पूजा के दौर में है उसमें पड़ोसी राज्य तमिलनाडु के ईडाप्पड़ी ने भी अपने आप को जननायक के रूप में प्रोजेक्ट किया तो वाम की परंपरा से हटकर विजयन की इमेज पर बात हो रही है और उनके कार्यकाल में पूरे हुए कोच्ची मेट्रो प्रोजेक्ट या पेंशन में बढ़ोत्तरी पर उनकी तारीफ हुई है। साथ ही सीएए या किसान आंदोलन में उन्होंने बोल्ड रुख अपनाया। हालाँकि कोरोना मामलों में बढ़ोतरी, गोल्ड स्कैम और लाइफ़ मिशन स्कैम के कारण मुख्यमंत्री पर प्रचार के दौरान सवाल उठेंगे, ख़ासकर स्कैम में उनके मुख्य सचिव सिवशंकर की गिरफ़्तारी को लेकर। विकास कार्यक्रमों में तेज़ी और जोस मणि को एलडीएफ़ में शामिल करना उनकी उपलब्धि होगी जिससे त्रावणकोर में ईसाई समुदाय के वोटों में बढ़ोतरी हो सकती है या फिर मणि सी कप्पन के यूडीएफ़ में चले जाने से होने वाला नुक़सान कम हो सकता है।
बहुत कुछ निर्भर करता है कि चुनाव में मुद्दे क्या बनते हैं। हाल में सबरीमला मामले में प्रदर्शनकारियों पर से मुक़द्दमे वापस लेकर विजयन ने अपने विरोधियों के मुँह बंद करने और हिन्दू विरोधी छवि को साफ़ करने की कोशिश ज़रूर की है पर विपक्ष इसको किस तरह इस्तेमाल करता है और जनता हाल के डीप सी फिशिंग जैसे कई निर्णयों में प्रदेश सरकार के असमंजस को कैसे देखती है। लेकिन एलडीएफ़ कार्यकर्ता काफ़ी उत्साहित हैं और यह उनके प्रचार में दिखता है जिसमें बहुत से युवा छात्र जुड़े हुए हैं।
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केरल विधानसभा की रेस का सबसे नया लेकिन सबसे तेज़ दौड़ने वाला घोड़ा है बीजेपी जिसने पहली बार प्रदेश विधानसभा में अपना प्रतिनिधि भेजा 2016 में। लेकिन सालों से दक्षिण में पैर जमाने की कोशिश में लगी भारतीय जनता पार्टी के लिए 2018 का सबरीमला मामला प्रदेश में अपनी पहचान बनाने का एक अच्छा मौक़ा था। प्रदेश की एलडीएफ़ सरकार जहाँ सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय को लागू किये जाने के लिये प्रतिबद्ध रही, वहीं आरएसएस और दूसरे हिंदूवादी संगठनों के लिए बढ़त का सुनहरा मौक़ा था। मामला अब दोबारा सर्वोच्च न्यायालय में है और बीजेपी का अब तक ईकाई में आने वाला वोट प्रतिशत बढ़कर 10 और 15 प्रतिशत के बीच हो गया है। बीजेपी का स्थानीय चुनाव में कुछ बेहतर प्रदर्शन और पालक्काड में म्युनिसिपलिटी गठन करना कुछ नए इशारे करता है और दूसरे दलों को भी अपनी स्ट्रैटेजी बदलने के लिए मजबूर करता है।
बीजेपी के पास संसाधनों की बहुलता और प्रदेश में नया होने से कोई पुराना बुरा इतिहास नहीं है इसीलिए खोने के लिए कुछ नहीं लेकिन पाने के लिए बहुत कुछ है। देश में उनकी मुख्य प्रतिद्वंद्वी पार्टी कांग्रेस है और कांग्रेस की हार केरल में उनके लिए नए रास्ते खोल सकती है।
आरएसएस कार्यकर्ता और चंद नेता केरल में बीजेपी की कमान थामे हैं और तमिलनाडु की तरह केरल में भी पार्टी को तलाश है कुछ नामचीन स्थानीय चेहरों की। मेट्रोमैन श्रीधरन या पूर्व डीजीपी जैकब और अब्दुल्लाकुट्टी की आमद कितना सफल होती है और राष्ट्रीय ख़बर बनने के अलावा उनका कुछ स्थानीय महत्व भी होता है, यह चुनाव तय करेगा क्योंकि अभी भी केरल और तमिलनाडु को लेकर ट्विटर पर जो ट्रेंड चलते हैं उसमें बीजेपी समर्थकों के ज़्यादातर नाम उत्तर भारतीय दिखते हैं जो यहाँ वोट देने नहीं आएँगे। नेताओ के आपसी टकराव भी चिंता का विषय हैं।
बीजेपी प्रदेश में अपनी रणनीति बदलती आयी है और स्थानीय निकायों में मुसलिम समुदाय को बेहतर प्रतिनिधित्व दिया था और घोर हिंदुत्व बातों पर शांति रखी थी पर अपेक्षा के अनुकूल परिणाम न मिलने पर नया समीकरण बनता दिख रहा है ईसाई समुदाय को साथ लेकर चलने का। केरल के जैकब और ऑर्थोडोक्स समूहों के बीच लगभग एक सदी से चल रहे मालंकारा चर्च विवाद में प्रधानमंत्री के हस्तक्षेप और आश्वासन के बाद ऐसी अटकलें लग रही हैं।
सेंट थॉमस द्वारा 52 ईस्वी में स्थापित मालंकारा चर्च और उससे जुड़े हज़ार से ज़्यादा पूजा स्थलों में एंट्री और रख-रखाव को लेकर जैकब और ऑर्थोडॉक्स समूह आमने सामने हैं जिनसे हाल में मोदी ने मुलाक़ात की थी और बताया जाता है कि दोनों समूहों को आश्वासन दिया था।
साथ ही लव जिहाद के मामले पर कई बीजेपी शासित राज्यों में क़ानून बनने के बाद बाद अब बीजेपी केरल में हिन्दू ईसाई समुदायों के बीच मुसलिमों द्वारा लव जिहाद के ख़िलाफ़ खड़े होने की बात उठा रही है। केरल में बीजेपी को गौवध, मीट बैन, तेल और गैस के बढ़ते दामों और कट्टर हिंदुत्व के चलते विपरीत ध्रुवीकरण का सामना भी करना पड़ सकता है। यदि बीजेपी को प्रदेश की राजनीति में तीसरा स्तम्भ बनना है तो उन्हें विधानसभा में बीस पच्चीस सीट लाना होगा। क्या यह अभी संभव है?
प्रदेश में लगभग 55 प्रतिशत हिन्दू, 26 प्रतिशत मुसलिम और 18 प्रतिशत ईसाई हैं। ऐसे में किसी भी समुदाय को पूरी तरह नकारा नहीं जा सकता है। देश का सबसे ज़्यादा साक्षर प्रदेश या दूसरे शब्दों में सबसे ज़्यादा पढ़े-लिखे माने जाने वाले मलयाली मतदाता दलों के वादों के पीछे के सच पर कितना विश्वास करते हैं या फिर धर्म या संप्रदाय से उठकर प्रत्याशी के व्यक्तित्व को कितना महत्व देते हैं, यह परिणाम बतायँगे।
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